देहरादून, प्रदेश के कृषि एवं सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी बृहस्पतिवार को मसूरी के स्मार्ट विलेज क्यारकुली भट्टा के ग्राम बसागाड़ में विजिट करने पहुंची केंद्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति पार्लियामेंट कमेटी के अध्यक्ष डॉ/ प्रोफेसर किरीत प्रेमजीभाई सोलंकी और उनके साथ में सभी कमेटी के सदस्यों का भव्य स्वागत किया।
इस अवसर पर पार्लियामेंट कमेटी के सदस्यों ने क्यारकुली भट्टा के ग्राम बसागाड़ में विद्यालयों और आगनवाड़ी केंद्रों का भी निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान पार्लियामेंट कमेटी के अध्यक्ष किरीत सोलंकी ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी द्वारा मसूरी में किए जा रहे विकास कार्यों की जमकर सराहना की। इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति के सर्वांगीण विकास के लिए लगातार प्रयासरत है।मंत्री जोशी ने कहा कि कमेटी की विजिट के बाद निश्चित रूप से इस कमेटी का लाभ उत्तराखंड की जनता को तो मिलेगा ही,लेकिन विशेष कर मसूरी की जनता को इसका लाभ मिलेगा ऐसा मेरा भरोसा है। उन्होंने बासागाड़ की आँगनबाड़ी एवं प्राथमिक विद्यालय का भी निरीक्षण किया।
इस अवसर पर कमेटी के सभी सदस्य, जिलाधिकारी सोनिका, सीडीओ झरना कमठान सहित कई लोग उपस्थित रहे।
एससी/एसटी की पार्लियामेंट कमेटी के अध्यक्ष का कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने किया स्वागत
खास खबर : प्रश्न पत्र लीक मामला, एसटीएफ ने की एक और गिरफ्तारी, अब तक 19 लोगों को किया जा चुका गिरफ्तार
देहरादून, उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पेपर लीक मामले में लगातार एसटीएफ की कार्रवाई जारी है। पिछले माह 22 जुलाई 2022 थाना रायपुर पर उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन चयन आयोग द्वारा आयोजित स्नातक स्तरीय परीक्षा में प्रश्नपत्र लीक आउट होने के मामले में दर्ज मुकदमे की विवेचना स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा की जा रही है। जिसमें स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा अब तक 19 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
विवेचना के दौरान अहम सबूतों के आधार पर पूर्व में हुए गिरफ्तार अभियुक्त हाकम सिंह के कहने पर कुछ छात्रों को विभिन्न स्थानों से लेकर पूर्व में गिरफ्तार टीचर तनुज शर्मा के घर ले जाने की पुष्टि हुई है।
विवेचना के दौरान अभियुक्त अंकित रमोला की तलाश में एसटीएफ टीम रवाना हुई उत्तरकाशी नौगांव से अंकित रमोला को पूछताछ हेतु एसटीएफ कार्यालय लाया गया था, जहां पूछताछ करने के बाद साक्ष्य की पुष्टि होने पर अंकित रमोला को उक्त मुकदमे में गिरफ्तार किया गया है।
गिरफ्तार अभियुक्त का नाम
अंकित रमोला पुत्र दीपक सिंह रमोला निवासी ग्राम सुनहरा पोस्ट ऑफिस नौगांव तहसील बड़कोट जिला उत्तरकाशी उम्र करीब 32 वर्ष
एसटीएफ ने कहा कि सभी ऐसे अभियार्थिओ को आगाह किया जाता है जो अनुचित साधनों से एग्जाम को क्लियर किया है वो स्वयं सामने आकर बयान दर्ज कराये अन्यथा जल्दी ही उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है।
‘डेंगू’ की रोकथाम के लिए जन सहभागिता है जरूरी : डॉ. आर राजेश कुमार
देहरादून, उत्तराखंड राज्य में डेंगू रोग को पूर्ण रूप से नियंत्रित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है। स्वास्थ्य विभाग उत्तराखंड द्वारा डेंगू संक्रमण काल प्रारंभ होने से पहले ही सभी इसके नियंत्रण हेतु सभी तैयारियां पूरी की गई।
विभाग द्वारा योजनाबद्ध तरीके से डेंगू की रोकथाम हेतु रणनीति तैयार की गई एवं उसके अनुसार डेंगू नियंत्रण गतिविधियों को राज्य से ले कर जिला स्तर तक संचालित किया गया। जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान तक प्रदेश भर में मात्र 19 डेंगू रोगी रिपोर्ट हुए हैं व वर्तमान में डेंगू रोग से कोई भी मृत्यु दर्ज नहीं हुई है।
डेंगू से बचाव के दृष्टिगत डॉ. आर राजेश कुमार, प्रभारी सचिव, स्वास्थ्य विभाग ने आम जनमानस से अनुरोध किया है कि डेंगू के संक्रमण की अवधि मानसून से ले कर लगभग अक्टूबर तक रहती है इस दौरान आम समुदाय को सतर्क एवं सावधान रहने की आवश्यकता है। अपने आस पास परिसर में मच्छर न पनपने दे एवं इससे बचाव हेतु सावधानियां बरतें।
डेंगू रोग की रोकथाम के लिए सभी विभागों की सहभागिता प्राप्त की गई है। सभी विभागों द्वारा अपने स्तर से डेंगू रोग के नियंत्रण के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का सम्पादन धरातल पर किया जा रहा है।
वर्तमान में राज्य में किसी भी डेंगू रोगी की सूचना प्राप्त होने पर उसके निवास स्थान के आसपास वृहद स्तर पर डेंगू निरोधात्मक गतिविधियां की जाती हैं ताकि डेंगू रोग को उस स्थान से फैलने से रोका जा सके।
जनपदों में जिलाधिकारी की निगरानी में समस्त डेंगू निरोधात्मक कार्यवाही की जा रही है।
विभाग कर्मियों, आशा कार्यकत्रियों एवं अन्य फ्रंटलाइन वर्करों की मदद से डेंगू संवेदनशील क्षेत्रों में सोर्स रिडक्शन गतिविधि यानी डेंगू के मच्छरों के पनपने के स्थानों को चिन्हित कर नष्ट किया जा रहा है व लोगों को डेंगू से बचाव पर जागरूक किया जा रहा है।
इस वर्ष देखने को मिला है की आम जनमानस द्वारा भी अपने घर व आस पास डेंगू रोग के मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जा रहा है। डेंगू की रोकथाम से जुड़े जनजागरूकता सामग्री को जिला स्तर पर विभिन्न जनपदों के साथ साझा किया गया है। उक्त के नियंत्रण हेतु गाँव के समुदाय द्वारा सामुदायिक गीत गा कर साथ ही नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जन समुदाय को डेंगू से बचाव के लिए जागरूक किया जा रहा है जिसमे जन सहभागिता भी देखने को मिल रही है।
विभाग द्वारा डेंगू रोगियों के उपचार के लिए चिकित्सालयों में डेंगू आइसोलेशन बेड आरक्षित किए गए हैं, औषधियों की उपलब्धता व जांच सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है।
हार्ट पेशेंट के लिये वरदान साबित होगी कैथ लैबः डॉ0 धन सिंह रावत
देहरादून, हृदय संबंधी रोगों की जांच एवं उपचार के लिये मरीजों को अब निजी अस्पतालों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, शीघ्र ही राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में कैथ लैब बनकर तैयार हो जायेगी और रियायती दरों पर हृदय रोगियों को सस्ता इलाज मिल सकेगा। सूबे में स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहत्तर बनाने के लिये प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में ‘लाइफ स्टाइल क्लीनिक’ का नया विभाग खोला जायेगा, जहां पर संबंधित सर्टिफिकेट कोर्स भी संचालित किये जायेंगे। इसके अलावा प्रदेश में सुपर स्पेशिलिस्ट चिकित्सकों का पृथक कैडर बना कर नया वेतनमान तय किया जायेगा।
यह बात सूबे के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ0 धन सिंह रावत ने आज राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में कार्डियक कैथ लैब के शिलान्यास कार्यक्रम में कही। डॉ0 रावत ने बताया कि अब हाईटेक तकनीकी से हृदय संबंधी रोगों की जांच एवं उपचार दून अस्पताल में किया जा सकेगा। जिसके लिये चार माह के भीतर अस्पताल में कैथ तैयार कर ली जायेगी, जिसके लिये सरकार ने 5 करोड़ की धनराशि स्वीकृत कर ली गई है। विभागीय मंत्री ने अधिकारियों को लैब निर्माण का कार्य शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिये ताकि आगामी 9 नवम्बर को राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर इसका शुभारम्भ किया जा सके। डॉ0 रावत ने बताया कि यह सूबे की पहली कैथ लैब है जो किसी सरकारी अस्पताल में स्थापित की जा रही है। उन्होंने बताया कि सरकार का मकसद निजी अस्पतालों की भांति सरकारी अस्पतालों में भी हाईटेक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराना है ताकि प्रदेश के लोगों को रियायती दरों पर उपचार मिल सके। दून अस्पताल में कैथ लैब खुलने से हार्ट संबंधी रोगियों को खासी राहत मिलेगी साथ ही हार्ट सर्जरी, वॉल्ब चेंज एवं हार्ट अटैक में बेहत्तर उपचार भी मिलेगा। इसके बाद रोगियों की निजी अस्पतालों पर निर्भरता भी कम होगी। डॉ0 रावत ने बताया कि सूबे में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत करने के उद्देश्य से प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में ‘लाइफ स्टाइल क्लीनिक’ का नया विभाग खोला जायेगा, जिसमें संबंधित सर्टिफिकेट कोर्स भी संचालित किये जायेंगे। इसके अलावा प्रदेश में सुपर स्पेशिलिस्ट चिकित्सकों का पृथक कैडर बनाने के साथ ही नया वेतनमान भी तय किया जायेगा। उन्होंने कहा कि राजकीय मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की कमी को पूरा करने के लिये चिकित्सा सेवा चयन आयोग के माध्यम से 339 स्थाई असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है। साथ ही 2600 स्टॉफ नर्सों की वर्षवार भर्ती प्रक्रिया को भी शीघ्र शुरू कर दिया जायेगा। डॉ0 रावत ने बताया कि राज्य में संस्थागत प्रसव की स्थिति में बेहत्तर सुधार हुआ है। इसके अलावा राज्य के मेडिकल कॉलेजों में पैरामेडिकल स्टॉफ की कमी को दूर करने के लिये करीब दो हजार पदों की स्वीकृति का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, जिसकी स्वीकृति मिलते ही भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी जायेगी।
इस अवसर पर मेयर दून नगर निगम सुनील उनियाल गामा, विधायक राजपुर खजान दास, महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ0 आशीष श्रीवास्तव, प्राचार्य दून मेडिकल कॉलेज डॉ0 आशुतोष सयाना, सीएमएस डॉ0 के0सी0 पंत, डॉ0 एन0एस0 खत्री, डॉ0 अमर उपाध्याय, डॉ0 अभिषेक चौधरी, महेन्द्र भंडारी, दीपक राणा, सुधा कुकरेती सहित अन्य विभागीय अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे।
आर्टिस्टिक फ्रीडम : हिंदू फोबिक फिल्में और नागरिक कर्तव्य
(जय प्रकाश पाण्डेय)
भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं । आज जब देश स्वतंत्रता के विजय जश्न को महसूस कर रहा है ऐसे में आर्टिस्टिक फ्रीडम के आधार पर हिंदूफोबिक फिल्मों के बढ़ते प्रचलन पर भी चर्चा आवश्यक हो जाती है । ओटीटी प्लेटफार्म के आने के बाद तो इस विषय पर गहन चिंतन वक्त की मांग बन चुका है । अक्सर फिल्म निर्माताओं द्वारा जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कल्पना तत्व के समावेश की बात कही जाती है वह स्वतंत्रता प्रायः मात्र हिंदू देवी देवताओं के चित्रण और हिंदुओं के पवित्र ग्रंथों और उनके त्यौहारों के ही आसपास सीमित रहती है । ऐसे में अत्यंत आवश्यक है कि धार्मिक-ऐतिहासिक विषयों पर फिल्म निर्माण हेतु कठोर नियमों बनाएं जाएं ताकि सामाजिक सौहार्द की भावना स्थापित रहे ।
हालांकि हिंदूफोबिक शब्द की कोई सर्वमान्य परिभाषा अभी नहीं है लेकिन हिंदूफोबिक फिल्मों से तात्पर्य ऐसी फिल्मों से है जिसमें हिंदुओं की सनातनी सांस्कृतिक,सामाजिक धरोहरों के विरुद्ध दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है । जहां सनातनी मान्यताओं का परिहास किया जाता है, सनातनी व्रत -त्योहारों का उपहास होता है और ये इतने योजनाबद्ध और बौद्धिक तरीके से होता है कि फिल्म को 3-4 बार देखने के बाद भी सामान्यजन इस बात को समझ नहीं पाता । कुछ फिल्मों में यह फोबिया गलत तथ्यों को पेश कर या अपने हिसाब से तथ्यों को बदलकर स्थापित किया जाता है। जिस फिल्मी क्षेत्र में फिल्मों की रेटिंग और समीक्षा से लेकर कास्टिंग तक और शोध के नाम पर इस तरह के संवेदनशील विषयों को दरकिनार कर दिया जाता है वहां देश की आबादी के एक बड़े वर्ग के अंदर इस फोबिया के विरुद्ध विरोध चलता रहेगा इसमें कोई शक नहीं है ।
सनातन संस्कृतियां अपने मूल संस्कारों को त्यागे बिना पुराने जर्जर हो चुके ताने- बाने को छोड़कर प्रगतिशीलता के साथ आगे बढ़ी हैं । सनातन संस्कृति ने वक्त के साथ प्रगतिशीलता को चुना और यही कारण हैं कि सनातन धर्म इतने प्राचीन समय से आश्चर्य,जिज्ञासा और समर्पण का विषय सबके लिए रहा है । लेकिन इस सच को फिल्मों में देखने के अवसर कम ही प्राप्त हुए हैं ।
संभवतः इसलिए की आजादी के बाद एक समय तक भारतीय सिनेमा में एक धर्म विशेष के लोगों का पैसा, एक धर्म विशेष के लोगों का प्रभुत्व और एक धर्म विशेष के लोगों का ही सिनेमा बना हुआ था जिसकी सीमाओं को तकनीकी क्रांति ने वर्तमान समय में तोड़ा है ।
हिंदुओं और उनकी मान्यताओं पर सुनियोजित तरीके से पिछले 75वर्षो में फिल्म जगत के अधिकांश स्थापित चेहरों ने हमले किए हैं और ये ऐसे सुनियोजित हमले रहें जिन्होंने सेक्युलरवाद का झुनझुना आम हिन्दू को पकड़वा दिया और सांस्कृतिक सनातनी मान्यताओं को विस्मृत कराने की कोशिश की । 80 के दशक की एक फिल्म में एक हिंदू पुजारी को एक हत्यारे के रूप में और एक हिंदू मंदिर को अपराध के जनक क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया है जो हिंदुओं के बारे में नकारात्मक पूर्वाग्रह पैदा करता है। इस फिल्म में एक किरदार का नाम कृष्णा रखा गया था और उन्हें सड़कों पर महिलाओं के साथ बदसलूकी करने की भूमिका के साथ एक बांसुरी दी गई थी। इतने घटिया चरित्र वाली ऐसी फिल्म में भगवान कृष्ण का नाम इस्तेमाल किया गया। क्या ऐसी स्थितियों को महज संयोग कहना सही होगा या फिर ये किसी अन्य चीजों की तरफ ईशारा कर रही हैं जिसके लिए स्तरीय शोध की अत्यंत आवश्यकता है।
हिंदूफोबिक फिल्मों का दूसरा स्तर वह है जहां ऐतिहासिक तथ्यों से तोड़- मरोड़ की जाती है और हिंदुओं के अतीत को पराजित, दीन हीन, मुस्लिम आक्रांताओं से हताश -निराश जाति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जाती है । पद्मावत से लेकर पृथ्वीराज तक की फिल्में इसी सीमा में आती हैं । ऐसी फिल्मों में कल्पना तत्व समावेशित करने का नुकसान यह है कि न ही ये इतिहास सम्मत रह पाती हैं और न ही लोक सम्मत ।
ऐतिहासिक फिल्मों का एक खास सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव लोगों के साथ होता है ऐसे में ऐतिहासिक विषयों पर कितनी स्वतंत्रता एक फिल्म निर्माता ले सकता है यह विषय अब तय होना चाहिए । इतिहास से गैर सम्मत और कल्पना के साथ बनाएं गए नैरेटिव को तो दिखाना ही नहीं चाहिए क्योंकि इससे न सिर्फ भावनाएं आहत होती हैं बल्कि गलत इतिहास की नींव भी रखी जाती है । जिस जगह इतिहास मौन हो जाता है, वहां कल्पना का विस्तार होना चाहिए। लेकिन अब हालत यह हो गई है कि फिल्में, धारावाहिक बनाने के पहले ही साफ लिख दिया जाता है कि धारावाहिक की सभी घटनाएं और पात्र काल्पनिक हैं। इस तरह का काम तो इतिहास के साथ मजाक ही कहा जा सकता है। ऐसा होना इतिहास और उस स्थान दोनों के लिए विध्वंसकारी है।
भारतीय सेंसर बोर्ड अभी भी सीमित शक्तियों के साथ फिल्मों के नियमन और कैटेगरी वर्गीकरण का कार्य ज्यादा करता आया है । इधर सेंसर बोर्ड ऐसे सीन और शब्दों की संख्या बढ़ाता जा रहा है जिन पर डिसक्लेमर या बीप आती है। फिल्मों में ऐसे डिस्क्लेमर और बीप का प्रयोग बढ़ा ही है ।
इस विषय पर अब सेंसर बोर्ड की भूमिका से ज्यादा नागरिकों की भूमिका सामने आती है । फिल्म निर्माताओं को समाज का आईना बनने के लिए, समाज के बिखरे कई अनसुने,अनजान किस्सों को स्क्रीन उपलब्ध कराने की तरफ आगे बढ़ना चाहिए । फिल्म निर्माताओं को भविष्य के भारत के विकासपरक नजरिए से चिंतनशील सृजन की तरफ आगे बढ़ना चाहिए न कि अंतर्मन में सामाजिक वैमनस्य को फैलाते सृजन की तरफ ।
वर्तमान समय में जहां ओटीटी प्लेटफॉर्म भी एक नए मंच के रूप में सामने आ रहे हैं वहां इस देश के नागरिकों को चाहिए कि किसी भी धर्म विशेष, संस्कृति विशेष पर नकारात्मक रवैया रखने वाली फिल्मों,धारावाहिकों आदि का सामूहिक बहिष्कार करें । यही नागरिक कर्तव्य का बोध न केवल हिंदूफोबिक फिल्मों/ धारावाहिकों के विस्तार को रोकने में सहायता देगा बल्कि सामाजिक सौहार्द्रता का वातावरण भी स्थापित करेगा, इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है । (लेखक स्वतंत्र स्तंभाकार एवं किरोड़ीमल महाविद्यालय,दिल्ली विश्विद्यालय के पूर्व महासचिव रहे हैं )
पूर्व सीएम खण्डूरी खराब स्वास्थ्य के कारण एम्स में भर्ती
ऋषिकेश, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूरी स्वास्थ्य खराब होने की वजह से एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया है । इससे पूर्व कल स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के चलते उन्हें एमएच देहरादून ले जाया गया था । जिसके बाद स्वास्थ्य में सुधार होता देख उन्हें घर ले आए थे। लेकिन आज सुबह फिर तबीयत खराब होने की वजह से उन्हें एम्स ऋषिकेश लाया गया है और डॉक्टरों ने उन्हें भर्ती कर दिया है। एम्स डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर उपचार कर रही है। अब तक मिली जानकारी के अनुशार उन्हें कमजोरी के कारण चलने और बोलने में काफी दिक्कत हो रही है।
बड़ी खबर : ईको सेंसिटिव जोन पर सरकार जायेगी सुप्रीम कोर्ट, विधायक हरीश धामी की सीएम से मुलाकात के बाद एक्शन, प्रमुख सचिव वन को दी जिम्मेदारी
देहरादून/पिथौरागढ़, क्षेत्रीय विधायक हरीश धामी की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से आज हुई मुलाकात के बाद सीएम ने पिथौरागढ़ जिले के ईको सेंसिटिव जोन के मामले में कहा कि राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनेगी। प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु को याचिका दायर करने की जिम्मेदारी दी गई है।
पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी, धारचूला, डीडीहाट के 111 गांवों को 1985 में अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य के भीतर लाकर इन गांवों का विकास रोक दिया गया था। धारचूला धामी ने अपने ही सरकार के खिलाफ विधानसभा में काली पट्टी बांध कर दस्तक दिया। उसी के बाद राज्य सरकार बैकफुट पर आई। सरकार ने तब जाकर 2014 में 110 गांवों को अभ्यारण्य से मुक्त किया। आठ साल के भीतर इन गांवों में मोटर मार्गों सहित विकास की गंगा बही।
आठवें साल में फिर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के एक मामले को सुनते हुए पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी, धारचूला, डीडीहाट तीन विकास खंडों के 123 गांवों को ईको सेंसिटिव जोन में शामिल करने का एक तुगलकी फरमान शासन को भेजा है।
ईको सेंसिटिव जोन लागू होने के बाद इन 123 गांवों का विकास फिर ठप हो जाएगा।
विधायक हरीश धामी ने आज एक शिष्टमंडल के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि उनके अपनी सरकार में विद्रोही बनकर अभ्यारण्य के दंश से मुक्ति दिलाई थी। फिर से क्षेत्र के विकास तथा आम आदमी की आजादी को छीनने का षड्यंत्र किया जा रहा है। विधायक ने कहा कि वे क्षेत्रीय जनता को साथ में लेकर इसके खिलाफ अंतिम क्षणों तक आंदोलन करने के लिए कूदेंगे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तथ्यों को सुनने के बाद आश्वासन दिया कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाकर अपना पक्ष रखेगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रमुख सचिव वन को जिम्मेदारी दे रहे है। उन्होंने कहा कि इस मामले को सरकार ने गंभीरता से लिया है।
शिष्टमंडल में मुनस्यारी के जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया, सामाजिक कार्यकर्ता राजू धामी मौजूद रहे।
पहाड़ के जीवन दर्शन पर बनी लघु फिल्म ‘पाताल ती’ की विश्व स्तर पर धूम
“स्टूडियो यूके 13 की टीम द्वारा सीमांत क्षेत्र भोटिया भाषा की लोक कथा पर बनाई गई लघु फिल्म ‘पाताल ती’ का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरना समस्त उत्तराखंड वासियों के लिए गौरवपूर्ण क्षण है”।
रेलवे ने दिया जोर का झटका, अब सीट ली तो 5 साल से छोटे बच्चे का देना होगा पूरा किराया
भारतीय रेल ने सीनियर सिटीजन का कंसेशन खत्म करने के बाद आम रेल यात्रियों को एक और तगड़ा झटका दिया है। अभी तक रेलवे में पांच साल तक के बच्चे मुफ्त सफर करते थे।
लेकिन अब आपके 5 साल से कम उम्र के बच्चों को भी पूरा किराया देना होगा। हालांकि यह व्यवस्था वैकल्पिक है। यदि आप 1 से 5 साल तक के बच्चे के लिए अलग सीट मांगते हैं तो आपको पूरा किराया देना होगा। वहीं आप यदि अलग सीट नहीं चाहते तो आप टिकट में सिर्फ उसका नाम दर्ज कर सकते हैं। आपको अलग से किराया नहीं देना होगा।
बता दें कि रेलवे 5 से 12 साल तक के बच्चों को यही दो विकल्प देता था, जिसमें अंतर यही था कि सीट न लेने की स्थिति में बच्चे का हाफ टिकट ही लगता था। रेलवे ने आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर इस व्यवस्था को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है।
अब सिर्फ 1 साल से छोटे बच्चे ही करेंगे फ्री में सफर
आईआरसीटीसी वेबसाइट पर रेलवे के नए नियम पर गौर करें तो अब सिर्फ 0 से 1 साल तक के बच्चे ही पूरी तरह से फ्री में सफर कर सकेंगे। भारतीय रेलवे द्वारा 06.03.2020 को जारी सर्कुलर संख्या 12 के अनुसार, यदि रेलवे में 5 वर्ष से कम उम्र का बच्चा यात्रा करता है तो रिजर्व बोगी में उसे रिजर्वेशन कराने की जरूरत नहीं है। 5 साल से छोटे बच्चे बिना टिकट के ट्रेन में यात्रा कर सकते हैं। अब उसे 12 साल के बच्चों की तरह सीट बुक कराने पर पूरा किराया देना होगा।
बच्चों के लिए भारतीय रेलवे टिकट बुकिंग नियम
रेलवे के नियम के अनुसार 6-11 वर्ष की आयु के बीच के बच्चे के लिए पूर्ण बर्थ ले रहे हैं, तो रेलवे को पूरा किराया देना होगा। अगर आप फुल बर्थ नहीं लेते हैं तो आपको टिकट की आधी कीमत ही देनी होगी। हालांकि, जब 5 साल से कम उम्र के बच्चों की टिकट के लिए भी आपको पूरा किराया देना होगा। पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम ने एक से चार साल की उम्र के बच्चों के नाम भरने के बाद बच्चे की बर्थ न लेने का कोई विकल्प नहीं रखा है।
बच्चे का नाम और उम्र दी तो लगेगा पूरा टिकट
हालांकि, जब 5 साल से कम उम्र के बच्चों की बात आती है, तो यात्री आरक्षण प्रणाली ने एक से चार साल की उम्र के बच्चों के नाम भरने के बाद बच्चे की बर्थ न लेने का कोई विकल्प नहीं रखा है। इसका मतलब ये है कि अब अगर आप रिजर्वेशन कराते वक्त अपने बच्चे जिसकी उम्र 1.4 साल के बीच है तो उसकी भी टिकट लेनी होगी। रेलवे या फिर आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर यह विकल्प हटा लिया गया जिसमें 1.4 साल तक के बच्चे मुफ्त यात्रा कर सकते थे।
भारतीय रेलवे ने हाल ही में बच्चों को लेकर एक खास पहल की थी। रेलवे ने दिल्ली से लखनऊ के बीच चलने वाली लखनऊ मेल की एसी थर्ड बोगी में बेबी बर्थ को शामिल किया था। रेलवे की इस पहल को यात्रियों से बहुत सराहना मिली थी।
Delhi Division, Northern Railways introduces 'Baby Berth' on a trial basis in selected trains for facilitating mothers to comfortably sleep along with their infants. pic.twitter.com/0Jn6nExjgg
— ANI (@ANI) May 10, 2022
खुशखबरी! सीएनजी का दाम 6 तो पीएनजी में हुई 4 रुपए की कटौती
नई दिल्ली ,। महानगर गैस लिमिटेड ने पाइप के जरिए सप्लाई की जाने वाली रसोई गैस पीएनजी और गाडिय़ों में फ्यूल के रूप में इस्तेमाल होने वाली सीएनजी की कीमतों में कटौती की है। नई कीमतें आज बुधवार से लागू हो गई हैं।
सीएनजी-पीएनजी की कीमतों में गिरावट सरकार के उस फैसले के बाद आई है, जिसमें घरेलू प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बढ़ाने पर जोर दिया गया था। एमजीएल की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया कि सीएनजी के दाम 6 रुपये प्रति किलोग्राम घटा दिए गए हैं, जबकि पीएनजी के रेट में 4 रुपये प्रति स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर (एससीएम) की कटौती की गई है। मुंबई में अब सीएनजी 80 रुपए किलो और पीएनजी 48.50 रुपए प्रति एससीएम पहुंच गई है।
एमजीएल ने कहा है कि कीमतों में कटौती के बाद ग्राहकों की बचत और बढ़ गई है। अगर वाहनों में इस्तेमाल होने वाले अन्य ईंधन के मुकाबले देखें तो सीएनजी के इस्तेमाल पर 48 फीसदी की बचत होगी, जबकि रसोई गैस में इस्तेमाल होने वाले अन्य साधनों की तुलना में पीएनजी पर खाना बनाना 18 फीसदी सस्ता रहेगा। इस तरह ग्राहकों की बचत भी बढ़ जाएगी।
एमजीएल ने अगस्त के पहले सप्ताह में सीएनजी और पीएनजी के रेट बढ़ा दिए थे, जो अप्रैल से अब तक छठी बढ़ोतरी थी। तब कंपनी ने पीएनजी के रेट 4 रुपये और सीएनजी के 6 रुपये बढ़ाए थे। इसी कीमत को एक तरह से अब वापस ले लिया गया है। कीमतों में कटौती का स्वागत करते रिक्शा यूनियन के नेता थंपी कुरियन ने कहा कि यह ऑटो रिक्शा चालकों के साथ मुंबईवासियों के लिए भी अच्छा फैसला है। इसके बावजूद हमें रिक्शा के मिनिमम किराये में 3 रुपये की बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। अभी मिनिमम किराया 21 रुपये है।