Saturday, May 18, 2024
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भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद् द्वारा सतत् भूमि प्रबंधन के लिए कृषि वानिकी पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

देहरादून, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद्, देहरादून विश्वबैंक द्वारा वित्त पोषित पारितंत्र सेवाएं सुधार परियोजना के तहत सतत् भूमिप्रबंधन के लिए कृषि वानिकी पर राष्ट्रीय कायर्शाला का आयोजन कर रही है।राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्देश्य उपयुक्त रणनीतियों/फ्रेम वर्क विकसित करना और कृषि वानिकी के विकास के लिए मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करने और भारत के राष्ट्रीय लक्ष्यों और अंतरार्ष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की प्राप्ति में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए सरकार को आवश्यक नीतिगत इनपुट प्रदान करना है। मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण और सतत् विकास लक्ष्यों का मुकाबला करना और भारत को एक अभिनव, संसाधन कुशल और कार्बन तटस्थ अथर्व्यवस्था की और स्थानांतरित करना है। राष्ट्रीय और अंतरार्ष्ट्रीय संगठनों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ, पयार्वरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार, पयार्वरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, राज्य के वनविभाग, देश के वानिकी और कृषि अनुसंधान संस्थान, गैर-सरकारी देश के विभिन्न हिस्सों से संगठन, विश्वविद्यालय, लकड़ी आधारित उद्योग और किसान कार्यशाला में भाग ले रहे हैं और स्थायी भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन के लिए कृषि वानिकी और कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त रूपरेखा तैयार करने में अपने अनुभव साझा कर रहे हैं।

डॉ. रेणु सिंह निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान ने कार्यशाला के मुख्य अतिथि और राष्ट्रीय कायर्शाला के सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया और स्वागत भाषण में राष्ट्रीय कार्यशाला की संरचना एवं कृषि वानिकी के महत्व पर जानकारी दी।
विश्व बैंक के वरिष्ठ पयार्वरण विशेषज्ञ डॉ. अनुपम जोशी ने कहा कि कृषि वानिकी देश के प्राकृतिक वन आवरण के संरक्षण के साथ-साथ देश के सकल घरेलू उत्पाद में वनऔर वृक्षों के आवरण के योगदान को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रकृति-आधारित समाधानों में से एक है।

कृषि वानिकी जलवायु परिवर्तन के चुनोतियों से निपटने में भूमि क्षरण को रोकने और जैवविविधता संरक्षण के लिए वन पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य सुधार में अहम् योगदान प्रदान करेगा।
भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद के महानिदेशक श्री अरुण सिंह रावत ने उद्घाटन सत्र के संबोधन में कहा कि वन क्षेत्र भारत में काबर्नडाई ऑक्साइड का शुद्ध सिंक है और भारत के कुल ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का 15% आॅफसेट करते है, और वन अपेक्षाकृत अन्य महत्वपूर्ण सिंक-लाभों के साथ कम लागत पर जलवायु परिवर्तन शमन अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि वानिकी देश के हरित क्षेत्र को बढ़ाने में वास्तविक गेम चेंजर है।

उन्होंने यह भी कहा कि कृषि वानिकी देश के हरित आवरण को बढ़ाने, किसानों की आय को दोगुना करने, लकड़ी आधारित उद्योगों की मांगों को पूरा करने के साथ-साथ राष्ट्रीय लक्ष्यों और अंतरार्ष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर निधार्रित योगदान (एनडीसी) वानिकी क्षेत्र लक्ष्य, भूमि क्षरण तटस्थता लक्ष्य, वैश्विक जैव विविधता लक्ष्य और सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करना है।उन्होंने स्थायी भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन में इस कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डाला।

 

श्री भरत ज्योति, निदेशक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी ने कार्यशाला के मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि वन पारितंत्र के प्राकृतिक संतुलन को बनाने में अहम् है और देश में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए कुछ परिवर्तनकारी कार्रवाई करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए बहुपाद्पीय कृषिकरण के सर्वोत्तम प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता है। जोकि एक सतत् विकास में अहम् योगदान प्रदान करेंगें।

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