Friday, May 3, 2024
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कूर्मांचल सांस्कृतिक एवं कल्याण परिषद ने मनाया पंचमी का त्यौहार

देहरादून, कूर्मांचल सांस्कृतिक एवं कल्याण परिषद की सभी शाखाओं के सदस्यों ने हर्षोल्लास से पंचमी का त्यौहार मनाया। केंद्रीय सांस्कृतिक सचिव बबिता साह लोहनी ने बताया कि, प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले इस त्यौहार की शुरुआत भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) की पंचमी तिथि से होती है। इसे बिरूड पंचमी भी कहते हैं। इस दिन हर घर में तांबे के एक बर्तन में पांच अनाज(मक्का, गेहूं ,गहथ, ग्रूस (गुरुस) व कलू) को भिगोकर मंदिर के समीप रखा जाता है। इन अनाजों को सामान्य भाषा में बिरूडे या बिरूडा भी बोला जाता है। क्योंकि ये अनाज औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं व स्वास्थ्य के लिए भी अति लाभप्रद होते हैं। इस मौसम में इन अनाजों को खाना अति उत्तम माना जाता है। इसीलिए इस मौके पर इन्हीं अनाजों को प्रसाद के रूप में बांटा एवं खाया जाता है। महासचिव चंद्रशेखर जोशी ने बताया कि उत्तराखंड में सातों-आठों बहुत महत्व का त्यौहार माना जाता है। जो दो दिन शनिवार व रविवार को मनाया जाता है। परिषद की अनेक शाखाएं इस त्यौहार को रविवार को धूमधाम से मनायेगी।

बिरूड पंचमी :

बिरुड़े का अर्थ पांच या सात प्रकार के भीगे हुये अंकुरित अनाज से है. कुमाऊं में भाद्रपद मास की पंचमी को बिरुड़े भिगाये जाते हैं, सामान्य रूप से यह महिना अंग्रेजी के अगस्त या सितम्बर महीने की तारीख में पड़ता है |

भाद्रपद महीने की पंचमी को बिरुड़-पंचमी कहते हैं. इस दिन एक साफ़ तांबे के बर्तन में पांच या सात अनाजों को भिगोकर मंदिर के समीप रखा जाता है . भिगो कर रखने वाले अनाजों में हैं मक्का, गेहूं, गहत , ग्रूस(गुरुस), चना, मटर व कलों, सबसे पहले तांबे या पीतल का एक साफ़ बर्तन लिया जाता है. उसके चारों ओर गोबर से छोटी-छोटी नौ या ग्यारह आकृतियां बनाई जाती हैं जिसके बीच में दूब की घास लगाई जाती है. जो घर मिट्टी के होते हैं वहां मंदिर के आस-पास सफाई कर लाल मिट्टी से लिपाई की जाती है और मंदिर के समीप ही बर्तन को रखा जाता है |
कुमाऊं क्षेत्र में दालों में मसूर की दाल अशुद्ध मानी गयी है इसलिये कभी भी बिरुड़े में मसूर की दाल नहीं मिलायी जाती है. कुछ क्षेत्रों में जौं और सरसों एक पोटली में डालकर उस बर्तन में भिगो दिया जाता है जिसमें बिरुड़े भिगोए जाते हैं, सातों के दिन बिरुडों से गमारा (गौरा) की पूजा की जाती है और आठों के दिन बिरुडों से महेश (शिव) की पूजा की जाती है. पूजा किये गये बिरुडों को सभी लोगों को आशीष के रुप में दिया जाता है और अन्य बचे हुये बिरुड़े प्रसाद के रूप में पकाकर खाये जाते हैं |

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