Tuesday, May 7, 2024
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उत्तराखंड़ : क्या…? विधानसभा भंग कर नवम्बर में आम चुनाव की और बढ़ रहा है प्रदेश

(राजेन्द्र सिंह नेगी एवं एल. मोहन लखेड़ा की रपट)

धीरे-धीरे उत्तराखंड की राजनैतिक आईने में भाजपा की रणनीति स्पष्ट नज़र आने लगी है | संकेतों से स्पष्ट हो रहा है कि राज्य निर्माण के बाद पहली मर्तबा तय कार्यकाल से पूर्व ही विधानसभा भंग कर चुनाव कराने की दिशा में सूबे की राजनीति आगे बढ़ रही है | चूंकि भाजपा आलाकमान को भली भाँति एहसास है कि मात्र तीरथ सिंह रावत की सौंभ्य और ईमानदार छवि के दम पर अधिक समय तक जनआकांक्षाओं की हवा को फिर से एंटी इंकम्बेंसी के गुब्बारे में भरने से नहीं रोका जा सकता है, लिहाजा इससे पूर्व मतदाता उंगली उठाए, नवम्बर में चुनाव करवाकर भाजपा उसकी उंगली पर स्याही का निशान लगाने की तैयारी में है |
अब यहाँ सवाल उठना लाजिमी है कि वो कौन से कारण होंगे कि प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज भाजपा समय पूर्व चुनाव में जाने का जोखिम उठाएगी |
सर्व प्रमुख कारण है बमुश्किल एंटी इंकम्बेंसी के गुब्बारे से निकली जन आकांक्षाओं की हवा को फिर से भरने से रोकना- निसंदेह त्रिवेन्द्र रावत की विदाई ने विगत चार साल के ऐन्टी इंकम्बेंसी के प्रेशर को बहुत हद तक कम किया है | स्वाभाविक है कि त्रिवेन्द्र को नज़र से उतारने से उतरा भाजपा के प्रति जन नाराजगी का पारा धीरे धीरे समय के साथ फिर से ऊपर चढ़ेगा | लिहाजा पार्टी आलाकमान स्पष्ट है कि जितनी जल्दी चुनाव होंगे उतना बेहतर |
समय की कमी – मूलतः तीरथ सरकार के पास तकनीकी तौर पर एक वर्ष कार्यकाल भी नहीं है | ऐसे में कोई पूर्व करिश्माई व्यक्ति ही इतने कम समय में चुनावी वर्ष के मद्देनजर निर्णायक कार्यों को अंजाम देकर आम जनता में जोश भर सकता है | हालांकि तीरथ सिंह रावत की छवि ईमानदार आचार और सौंभ्य व्यवहार वाली तो है लेकिन व्यक्तित्व में करिश्मा पैदा करने में अभी इतना समय लगेगा, जितना समय उनकी सरकार के पास नहीं है | पार्टी थिंक टैंक एकदम स्पष्ट हैं कि आम जनता में नेतृत्व परिवर्तन से थमी राजनैतिक चर्चा के फिर से शुरू होने से पहले ही चुनाव में कूदा जाये |
तीरथ की ठहराव वाली कार्यशैली भी जल्दी चुनाव का इशारा है – जिस प्रकार एक माह बीतने के बाद भी मुख्यमंत्री ने अपनी निजी टीम तक का गठन तक नहीं किया और सभी दायित्व्धारियों को पदमुक्त करने में देरी नहीं दिखायी, वह साफ इशारा करता है कि पार्टी आलाकमान का उद्देश्य तीरथ के कार्यकाल को विवाद रहित रखते हुए किसी तरह समय को आगे बढ़ाना है | वही पार्टी नेताओं को लाल बत्ती की होड से हटाकर चुनावी मोड में लाना है |
तकनीकी तौर पर जल्दी चुनाव की रणनीति एक तीर से कई शिकार वाली साबित हो सकती है, चूंकि तीरथ के पास विधानसभा का सदस्य बनने के लिए अभी पांच महीने का समय और है, लिहाजा अंतिम महीने में विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश से एक और न तो सीएम को सदन का सदस्य बनना होगा और न ही उन्हे लोकसभा की सीट छोडनी पड़ेगी | ऐसा करना सीएम पद के तमाम दावेदारों को आगामी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर नयी संभावना बनाने का साफ इशारा भी है |
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