Sunday, May 19, 2024
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भीड़ में खो गई ‘सल्यणा स्याली’ : सरकारी उदासीनता की शिकार गढ़वाली गायिका मंजू सुंदरियाल

देहरादून, उत्तराखंड संस्कृति विभाग में वर्ष 2013 में गायिका मंजू सुंद्रियाल का ‘ए’ ग्रेट कलाकार के रूप में पंजीकरण हुआ। वर्ष 2013 से संस्कृति विभाग ने उन्हें एक भी कार्यक्रम नहीं दिया। इससे पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद आकाशवाणी केंद्र में भी वहां ‘ए’ ग्रेट कलाकार के रूप में पंजीकृत थी। इस दौरान उन्होंने आकाशवाणी में क्षेत्रीय भाषा की कई कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुतियां दीं। मंजू सुंद्रियाल ने उत्तराखंड के प्रख्यात लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के साथ भी कई गीत गाए हैं। उनके साथ कई मंचीय प्रस्तुतियों में उन्हें देखा गया। नरेंद्र सिंह नेगी की सुप्रसिद्ध गढ़वाली गीतों की कैसेट सैल्यणा स्याली के टाइटल सॉन्ग को नरेंद्र सिंह नेगी के साथ मंजू ने अपनी आवाज दी है। जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के साथ भी उन्होंने कई वर्षों तक काम किया और मंचीय प्रस्तुतियां दी।

मूल रूप से जनपद पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली मंजू सुंद्रियाल वर्तमान में अपने परिवार के साथ देहरादून के डोभाल चौक में किराये के मकान में रहतीं है। विगत वर्ष उनके पति का देहांत हो चुका है। उनकी एक बेटी विवाहित है, जबकि दूसरी बेटी अविवाहित है। तमाम तरह की आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रही गायिका मंजू सुंदरियाल को गढ़वाल की गायकी में तमाम विधाओं में महारत हासिल है। मंजू बताती है कि वह स्वयं नहीं जानती कि उनके साथ ऐसा क्यों किया गया। पिछले आठ-नौ वर्षों से वहां गुमनामी की जिंदगी जी रहीं हैं। वह काम करती रही। लेकिन, जब उन्होंने अपना मेहनताना मांगा तो उन्हें साइड कर दिया गया।

संस्कृति विभाग का काम कला व कलाकारों को बढ़ावा देने के साथ-साथ उन्हें और उनकी कला को संरक्षण प्रदान करना भी है। लेकिन, विभाग एक ऐसे कलाकार की हत्या करने पर तुला हुआ है जो गढ़वाली गीतों के माध्यम से कला की सेवा कर रहा है। साथ ही वह कला ही उस कलाकार की आजीविका का भी साधन है। ऐसे में 13 साल से कोई कलाकार खाली बैठकर कैसे दिन काट रहा होगा आप समझ सकते हैं।

तमाम मौकों पर आपने उत्तराखंड की संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने का दावा करते नेताओं के भाषण सुने होंगे। लेकिन, जमीनी हकीकत क्या है यह उत्तराखंड के कलाकार भली-भांति जानते हैं। उत्तराखंड में किस प्रकार से कला और कलाकारों का सरंक्षण हो रहा है यह सरकारी उपेक्षा की शिकार मंजू सुंदरियाल के मामले को देखकर कहा जा सकता है( साभार सत्येन्द्र डंडरियाल की फेसबुक वाल से)।

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