Saturday, May 4, 2024
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आर्थिक सामाजिक एवं मानवीय विकास : बदलती सड़कें, बदलते जीवन

(जय प्रकाश पांडेय)

किसी देश के आर्थिक सामाजिक एवं मानवीय विकास में अवसंरचना का महत्वपूर्ण स्थान है । सड़कें इस अवसंरचना का आधारभूत हिस्सा हैं । देश की आर्थिक सामाजिक और मानवीय अवसंरचना के विकासक्रम को सड़कों के विकास से पृथक नहीं देखा जा सकता । इसी आवश्यकता को समझते हुए भारत ने वर्ष 2014 से अभी तक अवसंरचनात्मक विकास के नए स्तर स्पर्श किए हैं । देश के अवसंरचनात्मक विकास में सड़कों के विस्तार विषयक कार्य राष्ट्र विकास में अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध हो रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं । और ऐसे में केंद्रीय परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी एवं उनकी टीम के द्वारा किए जा रहे नवीन प्रयासों पर चिंतन मनन और उन प्रयासों को वास्तविक धरातल में लाने में हम सबका सहयोग आवश्यक है । ये चिंतन मनन और नवोन्मेषी पहलों पर यदि राज्य सरकारें चिंतन करें तो न केवल अपने प्रदेश की राजधानियों से लेकर जिलों को गड्ढा मुक्त करेंगी साथ ही अपने यहां के निर्वासित जीवन जीने को अभिशप्त ग्रामीणों को भी सड़क से जोड़ सकेंगी। ग्रामीणों का सड़क से जुड़ना देश के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होगा । स्वतंत्र नागरिक समितियों के निर्माण के द्वारा और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर राज्य सरकारें इसको संभव कर सकती हैं ।

पिछले 8 वर्षों में प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर यह बात पूरी जिम्मेदारी से कही जा सकती है कि पूर्वोत्तर भारत, जम्मू कश्मीर,लद्दाख,अरूणांचल,उत्तराखंड और सीमावर्ती जिलों तक सड़क पहुंचाने का,सामरिक महत्व के लिए आवश्यक क्षेत्रों में सड़क पहुंचाने और न केवल सड़क,बल्कि नवीन तकनीक के इस्तेमाल से शानदार सड़क पहुंचाने का कार्य किसी ने किया है तो वह व्यक्तित्व है श्री नितिन गडकरी । वर्ष 2014 में राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम का गठन किया गया । उत्तर पूर्वी राज्यों,उत्तराखंड,जम्मू एवं कश्मीर,लद्दाख और अंडमान निकोबार में इसके माध्यम से राजमार्ग निर्माण संबंधी कदम प्रशंसनीय है। इससे पूर्व यूपीए के समय में वर्ष 2000 से 2014 तक 14 वर्षों में लगभग 27,282 किमी राजमार्गों का विस्तार किया गया । अटल जी के समय में 5 वर्षों में यह विस्तार जहां लगभग 16000 किमी तक किया गया वहीं वर्तमान सरकार द्वारा 4 वर्षों में 2014-2018 की समयावधि में 30,037 किमी के राजमार्ग विस्तार को देखा गया । लगभग 60000 किमी (साठ हजार किमी ) से अधिक के निर्माण कार्य वर्तमान में चल रहे हैं और अभी लगभग 50000 किमी (पचास हजार किमी) के नई घोषणाएं भी हुई हैं ।

हालांकि अपनी परतंत्र मानसिकता और अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की कमी को समझते हुए इस नाम और इसके कार्यों पर विमर्श समाज की मुख्यधारा से गायब है । यह भी संभाव्य है कि इसके पीछे भारतीय दर्शन की वह परंपरा है जो मानती आई है -अनुभसत्यम किम प्रमाणं, प्रत्यक्षम किम प्रमाणं!। देश में राष्ट्रीय राजमार्गों के नित नवीन निर्माण से नए भारत की अवसंरचना के सुधारों को आप सभी के प्रत्यक्ष अनुभवों के लिए भी ये राष्ट्रीय राजमार्ग आमंत्रित करते हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही समग्र भारत के लिए सड़कों की आवश्यकता को गंभीरता से लिया गया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता । सड़के किसके लिए ? इस सवाल के जवाब अक्सर शहरों तक सीमित रहे और उसमें भी बड़े राज्यों तक। केंद्रीय सचिवालय से चलने वाले हस्ताक्षरों और सत्ता पक्ष के संसद के भाषणों से सड़क संबंधी उपलब्धियां गायब थी और इस बात को समझने में हमें लगभग पूरे 50 साल लग गए की अवसंरचना के विकास क्रम में सड़कों की क्या भूमिका है और राष्ट्रीय एकीकरण में इनका क्या महत्व है । राज्य स्तरों पर कुछेक राज्यों ने इन आवश्यकताओं पर जरूर गौर किया । आर्थिक विकास के क्रम में सड़कों के महत्व को इस दशक में आम भारतीय ने भी मसमझा है । वोकल फिर लोकल और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के लिए अवसंरचना का जो खाका तैयार होता है उसमें सड़कें प्रमुख रूप से हैं इस बात को स्वीकार्यता मिली है।

स्वतंत्रता प्राप्ति से वर्ष 2014 तक श्री भुवन चंद्र खंडूरी ,श्री टी आर बबलू आदि दो नामों को छोड़ दिया जाए तो किसी भी संसद सदस्य को स्थाई कार्यकाल के रूप से इस मंत्रालय की जिम्मेदारी तक नहीं प्राप्त हुई। और इस मंत्रालय में 3 वर्ष से ऊपर का कार्यकाल भारतीय राजनीतिक इतिहास में आज तक उपरोक्त 2 नामों के अतिरिक्त
श्रीमान नितिन गडकरी का ही है ।
इसे क्या समझा जाए क्या यह मंत्रालय इतना लाभ का पद नहीं था या इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय के लिए जिजीविषा हमारे प्रतिनिधियों में नहीं थी ? या फिर आजाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती को कोई अपने माथे लेना नहीं चाहता था ।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और करोड़ों हिंदुस्तानियों के प्रेरणा पुंज श्री अटल बिहारी वाजपेई जी द्वारा अपने प्रधानमंत्री पद के 5 साल के कार्यकाल के दौरान लगभग 16000 किमी के राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया गया । उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भुवन चंद्र खंडूरी जी की भूमिका इस संबंध में नजरंदाज नहीं की जा सकती । राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्रोजेक्ट को शुरुवात करने वाले अटल जी ने ही पूरे भारत को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज, चार लेन एवम छह लेन अवधारणा को भारतीय चिंतन पटल के सम्मुख रखा। भारत के ग्रामों को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के भी जरिए जोड़ने का प्रयास अटल जी के ही समय शुरू हुआ हालांकि जनसंख्या को आधार बनाकर बनाई गई सड़कों के जाल से, अभी भी पहाड़ कोसों दूर है । आबादी संबंधी पात्रताएं यहां के वीरान होते गांव पूरी नहीं कर पाते । इसलिए ऐसे कई मामलों के बाद पंचायतों को और नगरपालिकाओं को भी सड़कों को बनाने के लिए राशियां उपलब्ध हुई लेकिन इन राशियों के बाद भी सीमांत पहाड़ी क्षेत्रों में स्थितियां अच्छी नहीं ।
आदरणीय के गांवों और माननीयों के घर तक पंचायत और नगरपालिका का धन व्यय होना आम बात है ऐसे में गड्ढों की याद किसी को याद आए तो वो है जनता । सामन्यतया पंचायतों या नगरपालिकाओं के भी पास भी सीमित बजट का होना इस समस्या को और बढ़ाता है फिर उसमें से भी प्रभुत्व आधारित बजट की मांग समावेशी विकास में बाधा पहुंचाती है ।

वर्ष 2014 के बाद अटल जी की अनेक महत्वपूर्ण संकल्पनाओं को अमली जामा पहनते देखना सुखद है । राजमार्गों के एकीकरण और भारत को सड़कों से जोड़ने के क्रम वाले भारत के स्वप्न को पूरा करने का श्रेय भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर पुरुष कहे जाने वाले श्री नितिन गडकरी जी को है इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन क्या कारण है कि इतनी सशक्तता से कार्य कर रही सरकार के बावजूद आज भी गांवों में सड़क न होने से जन, जंगल, जमीन, जानवर सब प्रभावित हैं ? क्या कारण है कि जनसंख्या और सड़कों का अनुपात भी प्रत्येक राज्यों में अलग अलग है? क्या कारण है कि आम जनता की परेशानी फ्लाईओवर या एक्सप्रेस हाईवे नहीं बल्कि तंग सड़कों में पड़े गड्ढे हैं । स्वच्छ भारत मिशन के बाद भी नालियों से सड़क में आते पानी , हर सुबह स्वच्छ वायु से संपर्क करते कूड़े के ढेरों से और कभी टेलीफोन की लाइंस तो कभी स्मार्ट सिटी के तहत लगे समाग्रियों के ढेरों से है । इन बातों पर परिचर्चा के लिए चाय के ढाबों में पाए जाने वाले विद्वत जन और देश में कुछ भी घटित होने के लिए प्रधानमंत्री को दोषी ठहराते लोगों को समझना होगा कि भारत में सड़कों का विभाजन किस प्रकार है । किस सड़क का निर्माण केंद्र स्तर पर होता है और किस स्तर का निर्माण राज्य,ग्राम,जिला स्तर पर । और ऐसी ही जन भागीदारी की आवश्यकता है भारत को जहां नागरिक अपने अधिकार समझें । अपने लिए आने वाली योजनाओं को समझे ,उनके मद में आने वाले धन एवं उसके निर्गमन को समझे।

विधायक निधि से सड़कों के निर्माण को तरसती आंखें कभी योजनाओं के पन्नों में झांककर यह देखने का प्रयास ही नहीं करती कि आखिर जिला सड़कों, ग्रामीण सड़कों और शहरी सड़कों का निर्माण करता कौन है ।
अधिकांश राज्यों के पीडब्लूडी विभागों की स्थिति जगजाहिर है । पीडब्लूडी विभागों के कार्य यदि अनुकूल होते तो कम से कम जिला मुख्यालय पहुंचने से पहले भारत में महिलाएं प्रसव से दम न तोड़ती । भारत के 5 -6 राज्यों को छोड़ दिया जाए तो भारत के अधिकांश क्षेत्रों की समस्या जिला सड़कों , ग्रामीण सड़कों और शहरी सड़कों के संबंध में है ।

आधारभूत संरचना के लिए सड़कों का जाल जिस तरह सक्रियता के साथ वर्तमान सरकार द्वारा प्रसार किया जा रहा है ऐसे में समन्वित प्रयास यह होना चाहिए कि,जिला सड़कों , ग्रामीण सड़कों और शहरी सड़कों की दिशा में भी राज्य सरकारें पहल करेंगी । गांवों को भी सड़कों से जोड़कर मुख्यधारा में लाने की पहल हों । पहाड़ों के सीमांत क्षेत्रों में भी मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की लहर सुनाई देगी तो झील झरनों और प्राकृतिक उपहार को भारत के अन्य नागरिक भी महसूस कर पाएंगे । राज्य सरकारों द्वारा राज्य के अंतर्गत आने वाली सड़कों के विकास क्रम को धन की कमी से अवरोधित होने से बचाने के लिए जनभागीदारी,सरकारी संस्थानों द्वारा किए जाने वाले सामाजिक खर्चों को व्यापकता दी जा सकती है ।

(लेखक जय प्रकाश स्वतंत्र स्तंभाकार, पूर्व बैंक अधिकारी एवं किरोड़ीमल महाविद्यालय,दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व महासचिव रहे हैं)

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