नई दिल्ली, देश में कोरोना वैक्सीनेशन को रफ्तार देने के लिए सरकार बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। इसके तहत अब सरकार देश के उन सुदूर इलाकों में अनमैंड एरियल व्हीकल (UAV) यानी ड्रोन के जरिये कोरोना वायरस की वैक्सीन पहुंचाने जा रही है, जहां के रास्ते दुर्गम हैं या जहां पहुंचना कठिन है। आईआईटी कानपुर की ओर से किए गए शोध में ऐसा संभव कहा गया है।
मौजूदा समय में देश में सरकार के लिए कोरोना वैक्सीन खरीदने का काम सरकारी कंपनी एचएलएल लाइफकेयर करती है। इसकी सहायक कंपनी एचएलएल इंफ्रा टेक सर्विसेज लिमिटेड ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की ओर से देश के दुर्गम इलाकों में कोरोना वैक्सीन पहुंचाने के लिए 11 जून को निविदाएं आमंत्रित की हैं। अभी सिर्फ तेलंगाना ही ड्रोन के जरिये कोरोना वैक्सीन पहुंचाने के आइडिया पर काम कर रहा था।
दुर्गम इलाकों में कोरोना वैक्सीन पहुंचाने के लिए देखे जा रहे इन ड्रोन के बारे में आईसीएमआर भी पूरा अध्ययन कर चुका है। इसके अंतर्गत इस काम के लिए वो ड्रोन इस्तेमाल होंगे, जो 35 किमी तक जा सकें। साथ ही 100 मीटर की ऊंचाई तक उड़न भर सकें। मीडिया के पास इस संबंध में दस्तावेज की कॉपी है, जो बताता है कि 22 जून तक इसके लिए बोलियां मंगाई गई हैं।
दस्तावेज में इस बात का जिक्र है कि आईसीएमआर ने आईआईटी, कानपुर के साथ मिलकर इस संबंध में एक शोध किया है। इसमें उसने यह देखा कि क्या ड्रोन के जरिये देश के दुर्गम इलाकों में कोरोना वैक्सीन पहुंचाई जा सकती है। आईसीएमआर का यह परीक्षण में सफल रहा।
दस्तावेज में इस बात का भी उल्लेख है कि आईसीएमआर ने ड्रोन के जरिये कोरोना वैक्सीन की सफल सप्लाई के लिए एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल तैयार किया है। इसके साथ ही आईसीएमआर दुर्गम इलाकों में वैक्सीन पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होने वाले ड्रोन का मॉडल भी तैयार करने पर काम कर रहा है।
जानकारी के मुताबिक ये ड्रोन आसमान में सीधे उड़ान भरने और 4 किलोग्राम वजनी सामान ले जा सकने में सक्षम होंगे। इसके साथ ही ये वैक्सीन को तय सेंटर पर पहुंचाकर वहां से वापस स्टेशन या केंद्र पर आने में भी सक्षम होंगे। ड्रोन की टेक ऑफ और लैंडिंग डीजीसीए की गाइडलाइंस पर आधारित होगी। इसमें पैराशूट आधारित डिलीवरी सिस्टम नहीं होगा।
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