नई दिल्ली, ये बात बिल्कुल सच है कि मां से बड़ा कोई योद्धा नहीं होता। जिस नामुराद बीमारी से पूरी दुनिया लड़ रही है उस बीमारी से जंग में भी एक मां जीतकर लौटी है। इस महिला का नाम है वंदना। वंदना चावला कहती हैं कि मदर्स डे पर यह मेरे लिए बेटी की तरफ से सबसे बेहतर उपहार रहा जो कभी ना भूलने वाला है।
कोरोना फाइटर बनकर उभरी वंदना ने बताया कि शुरू के दस दिन तो बुखार रहा, इस दौरान कोरोनिल, गर्म पानी की भाप, विटामिन सी समेत कई दवाएं लेती रहीं। जब ठीक नहीं हुआ तो दोबारा जांच में कोरोना पॉजिटिव आया। तब पड़ोस में रहने वाले डॉ. सुमन अचानक से फरिश्ता बनकर आए और उन्होंने इलाज शुरू किया। अब पति और तीनों बच्चों के साथ स्वस्थ हूं। गर्म पानी पीना, खाने में ध्यान देना और परिवार के सदस्यों के साथ घर में ही रहती हूं। 15 दिनों से कोरोना संक्रमण की चपेट में रही वंदना चावला जीत गई हैं। दिल्ली मुखर्जी नगर की वंदना चावला जब तेज बुखार, सर्दी-खांसी की चपेट में आईं तो उनकी चौथी क्लास में पढऩे वाली नौ साल की बेटी वंशिका ने हौसला बुलंद रखा। यहां तक कि अपनी मां को छोटे भाइयों की जिम्मेदारी से मुक्त कर लाई जय और यीशु को नहलाना और खिलाने की जिम्मेदारी भी संभाल ली।
हाल ही में कोरोना को मात देने वाली लखनऊ की श्रुति ने एक मीडिया हाऊस से बातचीत में बताया कि उनका पूरा परिवार कोविड से जूझ रहा था। उस मुश्किल दौर में जिसने उम्मीद बंधाए रखी, वह थी मां। उन्होंने हर वक्त यह ध्यान रखा कि मैंने दवा ली या नहीं? हमेशा यह समझाती रहीं कि सब जल्दी ठीक हो जाएगा। हालांकि, मां को ही सबसे पहले लक्षण आए थे। उसके बाद बाकी सदस्य भी पॉजिटिव हो गए। उन्हें इस बात को लेकर बहुत ग्लानि हो रही थी। इसके लिए बार-बार खुद को दोष दे रही थीं। बावजूद इसके वह हमेशा साथ खड़ी रहीं। बीटेक की छात्रा श्रुति का कहना है कि मां की वजह से वह अपनी जिंदगी में कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ती हैं। हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करती हैं, जिससे कि मां को गर्व और खुशी हो। वह कहती हैं, ‘मां के प्यार को किसी भी रूप में आंका नहीं जा सकता है।
हर साल मई के पहले रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है। करीब 110 साल से चली आ रही इस परंपरा की शुरुआत एना जार्विस ने की थी। उन्होंने यह दिन अपनी मां को समर्पित किया और इसकी तारीख इस तरह चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आसपास ही पड़े। हालांकि, 1905 में एन रीव्स जार्विस की मौत हो गई और उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी बेटी एना जार्विस ने उठा ली। हालांकि, एना ने इस दिन की थीम में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने कहा कि इस दिन लोग अपनी मां के त्याग को याद करें और उसकी सराहना करें। लोगों को उनका यह विचार इतना पसंद आया कि इसे हाथोंहाथ ले लिया गया और एन रीव्स के निधन के तीन साल बाद यानी 1908 में पहली बार मदर्स डे मनाया गया(साभार उत्तम हिन्दू न्यूज)।
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