Tuesday, December 24, 2024
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राज्य आंदोलनकारी करेंगे 10 जुलाई को सीएम आवास का घेराव, कई संगठनों और राजनैतिक दलों ने दिया समर्थन

देहरादून, शहीद स्मारक कचहरी में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संयुक्त परिषद एवं संयुक्त राज्य आंदोलनकारी मंच द्वारा आयोजित बैठक में कई सामाजिक संगठन व राजनीतिक दल शामिल हुये और 10 जुलाई को सीएम आवास घेराव का समर्थन किया | बैठक संबोधित करते हुये उत्तराखंड आंदोलनकारी संयुक्त परिषद के संरक्षक नवनीत गुसाई, प्रदेश अध्यक्ष विपुल नौटियाल एवं जिला अध्यक्ष सुरेश कुमार द्वारा मांगों को लेकर जिसमें 10% क्षैतिज आरक्षण, मूल निवास चिन्हकरण, पेंशन पट्टा ल धारा 371 को लेकर उपस्थित संगठनों व राजनीतिक दलों के साथ मिलकर चर्चा की गई | जिसमें सभी संगठनों की सहमति द्वारा सीएम आवास घेराव का निर्णय लिया गया | जिसमें
उत्तराखंड़ महिला मंच की संयोजक निर्मला बिष्ट नेताजी संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष प्रभात डंडरियाल, कांग्रेस से सुरेंद्र अग्रवाल, उत्तराखंड क्रांति दल से विजेंद्र रावत, जनवादी महिला संगठन से इंदू नौडियाल, एसएफआई से लेखराज व अनंत आकाश व संयुक्त मंच से कांति कुकरेती अंबुज शर्मा व आंदोलनकारी व राष्ट्रीय उत्तराखंड पार्टी के बालेश बवानिया, जगमोहन रावत, सदीप पटवाल, सुशीला भट्ट, राजेश पांथरी, जगमोहन रावत, नरेंद्र नेगी, जित्ती चौहान, रामपाल, सुशील विरमानी, सुखबीर चौहान और लाखन चीलवाल हल्द्वानी से बैठक में शामिल हुए | सभी की सहमति से दस जुलाई को मुख्यमंत्री आवास के घेराव हेतु समर्थन देने के लिये पूरे प्रदेश वासियों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में भागीदारी करने की अपील की गयी, बैठक वक्ताओं ने कहा कि अगर सरकार आंदोलनकारियों की यह मांगे नहीं मानती तो आंदोलनकारी व सामाजिक संगठन उग्र आंदोलन करने को बाध्य होंगे |

 

संस्कृति या समाज की प्रगति में खेती के महत्व पर व्यापक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने में सक्षम रहा डा. सुषमा नैथानी का व्याख्यानखेती क्यों मायने रखती है, विषय पर दून पुस्तकालय व शोध केंद्र में हुई चर्चा  - Avikal Uttarakhand

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज सांय प्लांट जीनोमिक वैज्ञानिक, लेखिका और एसोसिएट प्रोफेसर सीनियर रिसर्च, ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी, सुषमा नैथानी का एक व्याख्यान का आयोजन संस्थान के सभागार में किया गया। यह व्याख्यान खेती क्यों मायने रखती है विषय पर केन्द्रित था।
डॉ. नैथानी का यह सारगर्भित व्याख्यान निश्चित तौर पर किसी भी संस्कृति या समाज की प्रगति में खेती के महत्व पर व्यापक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने में सक्षम रहा। समाज में खेती का काम कर रहे विविध किसानों , भूमि जोतों और कृषि पद्धतियों और इन सबके प्रभाव से जुड़ी कहानी पर डॉ. सुषमा नैथानी ने विस्तार से प्रकाश डाला।
व्याख्यान की अधिकांश बातचीत उनकी पुस्तक हिस्ट्री एंड साइंस ऑफ कल्टीवेटेड प्लांट्स पर आधारित थी। अपने व्याख्यान में डॉ. नैथानी ने बताया कि ग्रामीण समाज किस तरह किसान बना और वर्तमान औद्योगिक कृषि-आधारित सभ्यता तक किस तरह पहुंचे। अनेक मिथकों, ऐतिहासिक वृत्तांतों और वैज्ञानिक अवधारणाओं का उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि मानव ने अपने प्रयासों से कैसे जंगली पौधों से बड़े, स्वादिष्ट और अधिक पौष्टिक फल, सब्जियां और अनाज को आकार दिया और उसे विकसित किया। मानव सभ्यता के केंद्र में विभिन्न आर्थिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण फसलों का जिक्र करते हुए, उन्होंने फसल पौधों की उत्पत्ति, कृषि प्रतिरुपों के विकास, प्राकृतिक चयन बनाम पालतूकरण की मौलिक अवधारणाओं, प्रायोगिक और पद्धतिगत पौधों के प्रजनन और पौधों की जैव प्रौद्योगिकी पर भी प्रकाश डाला । उन्होंने जलवायु परिवर्तन, खेती के कम होते रकबे और अन्य सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के मद्देनजर दुनिया की बढ़ती आबादी को भोजन खिलाने की चुनौतियों और 21 वीं सदी और उसके बाद के एक स्थायी कृषि प्रणाली की आवश्यकता पर भी विस्तार से चर्चा की।
व्याख्यान से पूर्व दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया। व्याख्यान के समापन में निकोलस हाॅफलैण्ड ने संस्थान की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर साहित्यकार, नवीन नैथानी, राजेश सकलानी बिजू नेगी, राजेन्द्र गुप्ता, सुरेंद्र सजवाण, अरुण असफल, सूंदर सिंह बिष्ट और बिभूति भूषण भट्ट सहित शहर के अनेक बुद्धिजीवी, लेखक, साहित्यकार और बड़ी संख्या में पुस्तकालय के युवा पाठक उपस्थित रहे। व्याख्यान के बाद लोगों ने डॉ.सुषमा नैथानी से सवाल जबाब भी किये।

पुस्तक के बारे में :

हम सभी का खानपान से बेहद अंतरंग और प्राथमिक सम्बंध है. हम दुनिया के किसी भी हिस्से में हो, खानपान सम्बंधी चिंता हमारे मन में चाहे-अनचाहे बनी रहती है. बाजार से आटा, दाल, चावल, आलू, प्याज, फल-सब्जी, चाय, चीनी, कॉफी आदि उठाते समय हम सोचते रहते हैं कि अमुक चीज स्वास्थ्य पर कैसा असर डालेगीय उसमें पौष्टिक तत्वों की मात्रा कितनी है किसे उपयोग में और किसे उपवास में बरता जाना चाहिए आदि. लेकिन बहुतों को इस बात का अन्दाज नहीं होगा कि हम सबके खानपान सम्बंधी संस्कार, पूर्वाग्रह / चयन या दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों की खानपान से जुड़ी विशिष्ट पहचान के मूल में कृषि की एक लम्बी ऐतिहासिक यात्रा है, जिससे गुजरकर विभिन्न कृषि उत्पाद बाजार में सर्वसुलभ होकर हम तक पहुँचे हैं.
औद्योगिक क्रांति के बाद मानव आबादी का बड़ा हिस्सा खेती से अलग होकर अन्य कार्यों में लग गया, आज अमेरिका यूरोप के विकसित समाजों के एक फीसदी से भी कम लोग सीधे खेती से जुड़े हैं. भारत, चीन और अन्य एशियाई देशों में भी आबादी का 50ः से ज्यादा हिस्सा किसानी नहीं करता है. लेकिन कृषि और मनुष्य का सम्बंध जरा भी कम नहीं हुआ है. भले ही हम अन्न न उगाते हों /कई पीढ़ियों पहले हमारा परिवार किसानी छोड़ चुका हो / अन्न व खाद्य पदार्थों को पैदा करने वाले किसानों से भले ही हमारा सीधा वास्ता न हो तब भी कृषि उत्पादों पर हमारा जीवन, स्वास्थ्य, और समृद्धि टिकी हुई है और दस हजार वर्षों से चली आ रही कृषि-कथा ने हमारे अंतर्मन का एक बड़ा हिस्सा घेर रखा है. अन्न की टेढ़ी-मेढ़ी यात्रा को जानना अपने मन की इन्ही छिपी तहों के भीतर अनायास झाँक लेना है, और इस बहाने अपने अनगिनत पुरखों से रूबरू होना है जिनके जीवन के घनीभूत अनुभव पीढ़ी-दर-पीढ़ी छन-छनकर हमारे चेतन और अवचेतन पर अंकित हुए हैं. कृषि के इतिहास-भूगोल-विज्ञान की कथा के पन्ने पलटना एक बेहद निजी, मीठी गुफ्तगू में उतरना है, जिसका लुत्फ साझा करके दुगना होता जाता है. इस किताब को लिखते समय लेखिका की कोशिश रही है कि एक सामान्य हिंदी पाठक के लिए कृषि से सम्बंधित कुछ मोटी-मोटी तथ्यपरक वैज्ञानिक जानकारी, तथा कृषि की टेढ़ी-मेढ़ी ऐतिहासिक यात्रा को आसान भाषा में, बिना तकनीकी शब्दावली में उलझाए रखे। संवाद को प्राथमिकता देते हुए कई जगहों पर अंग्रेजी के सरल और हिंदुस्तानी जबान में शामिल हो रहे शब्दों के इस्तेमाल को वरीयता दी गई है, और हिंदी में गढ़ी हुई गूढ़, अबूझ तकनीकी शब्दावली को सयास छोड़ दिया गया है.
कृषि मानव सभ्यता का पहला उद्यम भी है. अब भी, दुनिया की गरीब आबादी के बड़े हिस्से की आजीविका कृषि पर निर्भर करती है. भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पचास फीसदी से ज्यादा लोग रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर हैं, और यहाँ की एक चैथाई राष्ट्रीय आय का स्रोत भी कृषि है. इसके अलावा, कृषिजन्य उत्पादों पर कई छोटे-बड़े कारोबार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर रहते हैं, और कृषि उत्पादों का निर्यात विदेशी मुद्रा कमाने का मुख्य जरिया है. अतरू कृषि की भूमिका देश के लिए राजनैतिक, सामरिक और आर्थिक महत्व की है. मानव सभ्यता के अलग-अलग चरणों में कृषि का तत्कालीन समाज की राजनीति, अर्थव्यवस्था, तथा ज्ञान-विज्ञान से जो गहरा और अंतरगुम्फित सम्बंध रहा है उसपर प्रचलित अकादमिक कवायद से इतर सार्वजनिक बातचीत की भी जरूरत है, ताकि हम अपने समय की कृषि-नीतियों, किसानों, बाजार और उपभोक्ता के अंतर्संबंधों की कोई संगत समझ बना सकें और फिर उसकी रोशनी में पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाते हुए वैश्विक जलवायु परिवर्तन से उपजी खाद्यान संकट की चुनौती का भविष्य में कोई हल ढूँढ सके.
कुल मिलाकर इस किताब में कृषि की शुरुआत से लेकर जैव-प्रौद्योगिकी से बनी जी॰ एम॰ (जेनेटिकली मोडिफायड या जीन सँवर्धित) फसलों तक के सफर के विवरण हैं. उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में दुनिया में औद्योगिक कृषि के मॉडल की गम्भीर समीक्षा शुरू हुई है और छोटे-बड़े स्तरों पर तरह-तरह के वैकल्पिक प्रयोग शुरू हुए हैं. पुस्तक के अंत में एक संक्षिप्त टीप चुनिंदा नए प्रयोगों पर दी गई है।

लेखिका के बारे में :

देहरादून की डॉ. सुषमा नैथानी अमेरिका के ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी में वनस्पति विज्ञान और पादप रोग विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर रिसर्च हैं। सुषमा नैथानी ने एम.एस. जैव प्रौद्योगिकी में और पीएच.डी. वनस्पति विज्ञान (पादप आण्विक जीवविज्ञान) में। वह एक आणविक जीवविज्ञानी और जीनोमिक वैज्ञानिक हैं . इनके तकरीबन 50 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। वह एल्सेवियर (2017-वर्तमान) द्वारा प्रकाशित करंट प्लांट बायोलॉजी जर्नल की प्रधान संपादक और प्लांट साइंस-प्लांट बायोटेक्नोलॉजी अनुभाग में फ्रंटियर की एसोसिएट एडिटर के रूप में कार्य करती हैं। वह अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक वैज्ञानिक पत्रिकाओं की समीक्षक हैं।वह एक अंग्रेजी-हिंदी द्विभाषी लेखिका, कवयित्री और प्रकृति प्रेमी भी हैं। वह 1998 में संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं। वह कोरवालिस, ओरेगॉन में रहती हैं। उनके कुछ हिन्दी आलेख कादम्बिनी, हंस, पब्लिक एजेंडा, पहाड़ सहित कई अन्य प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और कविता की एक पुस्तक उड़ते हैं अबाबील 2011 में प्रकाशित हुई थी। खेती के इतिहास और विज्ञान पर आधारित उनकी एक लोकप्रिय पुस्तक अन्न कहाँ से आता है नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुई है।

 

बिना प्रतिस्थानी के शिक्षकों की कार्यमुक्ति पर पंचायत प्रतिनिधि भड़के, सीईओ कार्यालय पर उठाए सवाल

“शिक्षा मंत्री माफी मांगते हुए त्याग पत्र दे, मुनस्यारी तथा धारचूला में शिक्षा का बुरा हाल”

पिथौरागढ, विकासखंड मुनस्यारी व धारचूला से बिना प्रतिस्थानी के शिक्षकों को कार्यमुक्त किए जाने पर सीमांत के पंचायत प्रतिनिधि भड़क गए है। पंचायत प्रतिनिधियों ने मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिलाधिकारी तथा निदेशक माध्यमिक शिक्षा के आदेशों का भी अनुपालन नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि सीमा क्षेत्र से शिक्षकों को कार्यमुक्त करने के लिए विभाग ज्यादा उतावला दिख रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जो शिक्षा मंत्री सीमांत क्षेत्र में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने में नाकाम रहे है, उन्हें तत्काल अपने पद से इस्तीफा देकर सीमांत के शिक्षक अभिभावकों एवं विद्यार्थियों से माफी भी मांगनी चाहिए।
सीमांत क्षेत्र में पिछले वर्ष 93 शिक्षकों का स्थानांतरण हुआ था। तब भी मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने जिलाधिकारी के आदेश को दबा दिया गया था।
शिक्षकों के कार्य मुक्त होने के बाद बिना परेशानी के कार्यमुक्त नहीं किए जाने का आदेश खंड शिक्षा अधिकारियों को भेजा गया। इस बात को लेकर मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय की खूब किरकिरी हुई। मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने इस बात का भी सबक नहीं लिया। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी शिक्षकों को बिना प्रतिस्थानी के ही कार्य मुक्त कर दिया गया है।
इस बात से नाराज सीमांत के पंचायत प्रतिनिधि मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय के खिलाफ लामबंद होने लगे है।
इस बार भी क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधियों ने समय से मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय तथा जिलाधिकारी को इस समस्या से अवगत करा दिया था।
जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया की पत्र का संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी रीना जोशी ने मुख्य शिक्षा अधिकारी को तत्काल प्रभाव से कदम उठाने के निर्देश दिए थे।
मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय में चालाकी दिखाते हुए जिलाधिकारी के पत्र को निदेशक माध्यमिक शिक्षा को भेजकर अपना पल्लू झाड़ लिया। उसके बाद फिर जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने जिलाधिकारी को दूसरा पत्र लिखा।इस पत्र के बाद भी मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने खंड शिक्षा अधिकारी मुनस्यारी तथा धारचूला को बिना प्रतिस्थानी के शिक्षकों को कार्यमुक्त नहीं किए जाने का कोई भी आदेश जारी नहीं किया।
ताज्जुब की बात यह है कि मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने जिलाधिकारी के पत्र का संज्ञान लेते दूसरी बार भी फिर निदेशक माध्यमिक को पत्र लिखकर खानापूर्ति कर दी।
बीते सप्ताह निदेशक माध्यमिक शिक्षा सीमा जौनसारी मुनस्यारी भ्रमण पर आई थी तब भी इस मामले को उनके सम्मुख उठाया गया। निदेशक माध्यमिक शिक्षा ने मुख्य शिक्षा अधिकारी अशोक कुमार जुकरियाया को स्पष्ट रूप से कहा था कि वह इस मामले में नोट शीट बनाकर जिलाधिकारी के माध्यम से खंड शिक्षा अधिकारियों को एक आदेश करवा लें।
ताकि बिना परेशानी के कोई भी शिक्षक कार्य मुक्त ना हो। मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय सोता रहा और शिक्षकों के स्थानांतरण का फरमान विद्यालय तक पहुंच गया। विद्यालयों ने फटाफट दर्जनों शिक्षकों को बिना प्रतिष्ठान के कार्य मुक्त कर दिया है ।
जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने बताया कि बीते वर्ष जिन 93 शिक्षकों का स्थानांतरण हुआ था उनके सापेक्ष मात्र 37 नये अध्यापक सीमा क्षेत्र में स्थित विकासखंड मुनस्यारी तथा धारचूला में पहुंचे है। उन्होंने कहा कि इस बार हुए बंपर स्थानतरण के बाद सीमांत विद्यालयों में शिक्षकों की कमी का आंकड़ा आसमान छूने लगा है ।
उन्होंने कहा कि मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय जानबूझकर आदेश को बनाने में देरी करता है ताकि शिक्षक कार्य मुक्त हो जाएं। इस सांठगांठ की भी जांच की मांग उठाई है।
उन्होंने कहा कि इस प्रदेश के शिक्षा मंत्री को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि वह सीमा क्षेत्र में शिक्षकों के रिक्त पदों पर तैनाती करने में विफल रहे है। उन्होंने यह भी कहा कि सीमा के पंचायत प्रतिनिध मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय के खिलाफ आंदोलन करेंगे।

 

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने हेतु भारत सरकार देगा पूरा सहयोग : सुधांशु पंत

स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की नियुक्ति हेतु यू कोट वी पे मॉडल की हुई सराहना

आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के तहत निर्माणाधीन चिकित्सा इकाइयों में तेजी लाने के दिए निर्देश

देहरादून, उत्तराखंड के स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने हेतु भारत सरकार देगा पूरा सहयोग यह बात सुधांशु पंत ओ.एस.डी. चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार की अध्यक्षता में आयोजित बैठक के दौरान कही। सचिवालय में आयोजित स्वास्थ्य अधिकारियों की समीक्षा बैठक में सुधांशु पंत ने राज्य के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की तैनाती हेतु स्वास्थ्य विभाग के यू कोट वी पे (you quote we pay) मॉडल की प्रशंसा करते हुए स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के मनोबल को बढ़ाने के लिए उच्चतम वेतन प्रदान करने के कार्य को अत्यधिक सराहा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स क्षेत्र के लोगों को आवश्यक चिकित्सा सुविधा देने का काम करेंगे जो कि सराहनीय है।

बैठक में ओ.एस.डी. सुधांशु पंत ने प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (पीएम-अभीम) योजना के यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज से उत्तराखंड के अधिक से अधिक लोगों को मिल रहे लाभ की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रदेश के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर जिनमें क्रिटिकल केयर ब्लॉक, मेडिकल कॉलेज व अन्य निर्माणाधीन कार्य में तेजी लाएं। उन्होंने चिकित्सा इकाइयों के निर्माण कार्य में तेजी लाने व दिसंबर 2023 तक निर्माण कार्यों को पूरा करने हेतु संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया।

इस दौरान सुधांशु पंत द्वारा उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोविड माहमारी के दौरान कोविड की रोकथाम हेतु किये गए प्रबंधन की सराहना की गई। उन्होंने कहा कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों व मैदानी इलाकों में कोविड टीकाकरण सहित अन्य मैनेजमेंट में अच्छा कार्य किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य संबंधित सरकारी योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि स्वास्थ्य संबंधित परियोजनाएं जो गतिमान है उसका विभाग द्वारा स्तत अनुसरण एवं अनुपालन किया जाये ताकि इन योजनाओं का लाभ राज्य के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।

बैठक में डॉ आर राजेश कुमार सचिव स्वास्थ्य, रोहित मीणा मिशन निदेशक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, अमनदीप कौर अपर सचिव स्वास्थ्य, डॉ विनीता शाह महानिदेशक स्वास्थ्य, डॉ आशुतोष सयाना निदेशक चिकित्सा शिक्षा आदि अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद रहे।

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