Saturday, April 26, 2025
Home Blog Page 1797

पिथौरागढ़ : आदमखोर मादा गुलदार को शिकारी जॉय हुकिल ने लगाया ठिकाने, क्षेत्रवासियों ने ली राहत की सांस

0

पिथौरागढ़, उत्तराखंड़ के पिथौरागढ़ जनपद के बेरीनाग में आदमखोर के आतंक का हुआ खात्मा। ग्रामीणों का घरों से बाहर निकलना हो दुश्वार हो गया था ।

गौरतलब है कि विगत 7 अक्टूबर की शाम 6:15 बजे बेरीनाग के भट्टी गांव निवासी भगतराम की 6 वर्षीय बेटी हिमानी को घात लगाकर बैठा गुलदार घर के आंगन से उठाकर ले गया ,परिवारजनों द्वारा शोरगुल मचाए जाने पर आस-पड़ोस के लोग एकत्र हुए और गुलदार के पीछे भागे घर से करीब 100 मीटर दूर बच्ची का शव बरामद हुआ। उक्त घटना से बच्चे के परिजनों समेत पूरे गांव में दहशत व आक्रोश बना हुआ था।
ग्रामीणों के आक्रोश को दृष्टिगत रखते हुए वन विभाग द्वारा क्षेत्र में पिंजरा लगाने के साथ ही गुलदार को आदमखोर घोषित कर शिकारियों की टीम को बुला लिया था। राज्य के मशहूर शिकारी जॉय हुकिल 4 नवंबर से घटनास्थल के आसपास डेरा डाले हुए थे, रविवार रात उन्हें सफलता मिली।

राज्य के मशहूर शिकारी जॉय हुकिल नेे बताया कि वह विगत 4 नवंबर से घटनास्थल के आसपास डेरा डाले हुए थे , उन्होंने बताया रविवार को घटनास्थल के आसपास सर्चलाइट के माध्यम से गश्त की जा रही थी कि रात्रि 9:20 पर उक्त गुलदार दिखाई दिया और पहली गोली में ढेर हो गया। उन्होंने बताया मारा गया गुलदार मादा है जिसकी उम्र लगभग 7 वर्ष है। बता दें कि जॉय हुकिल का यह 40 वां शिकार है।

उप प्रभागीय वनाधिकारी नवीन चंद्र पंत ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया कि क्षेत्र में पिंजरे लगाने के साथ ही मचान बनाकर गुलदार के मूवमेंट को ट्रेस किया जा रहा था। उन्होंने बताया पिछले कुछ दिनों से उक्त गुलदार घटनास्थल के आसपास दिखाई दे रहा था। उन्होंने बताया आदमखोर गुलदार मादा है। जो रविवार देर रात शिकारी की गोली से ढेर हो गया है । आज गुलदार के शव पोस्टमार्टम की कार्रवाई की जाएगी। वन क्षेत्राधिकारी चंदा मेहरा ने बताया कि पिछले एक माह से वन विभाग की टीम क्षेत्र में दिन-रात गश्त करने के साथ ही ग्रामीणों को जागरूक कर रही थी। इधर आदमखोर गुलदार के मारे जाने से क्षेत्रवासियों ने राहत की सांस लेते हुए वन विभाग व शिकारी जॉय हुकिल का तहे दिल से आभार जताया है।

महिला आश्रम में बच्चियों के साथ मनाई दीपावली

0

देहरादून। आज 9 नवंबर उत्तराखंड स्थापना दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन एवम् हर्षल फाउंडेशन द्वारा लक्ष्मण चैक स्तिथ महिला आश्रम में बेटियों के साथ दीपावली मनाई गई।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्रीमती कमली भट्ट, अध्यक्ष महिला मोर्चा बीजेपी, विशिष्ट अतिथि श्री रवीन्द्र सिंह आनंद, वरिष्ठ समाजसेवी, अतिथि श्रीमती बिमला गौड़, पार्षद का संस्था की ओर से पटका पहनकर एवम् पौधा देकर स्वागत किया गया। बेटियों को संस्था के द्वारा लंच बॉक्स, मिठाई, नमकीन एवम् फल दिए गए। साथ ही सर्दी से बचाव के लिए चप्पल दी गई।

दीवाली के लिए दिए, बत्ती, तेल , खील, आदि भी दी। इस अवसर पर कमली भट्ट ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि इस दीपावली सभी को प्रेम और सौहार्द का संदेश देना चाहिए। वहीं रविंद्र आनन्द ने कहा कि इस कोरोना काल ने हमें बहुत कुछ सिखाया है और एक बात की शिक्षा दी है कि प्रेम से रहें इसलिए इस दीपावली प्रेम का दीपक जला कर रौशनी फेैलाए। वहीं संस्था की अध्यक्ष रमा गोयल ने संस्था से जुड़ी सभी महिलाओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्था की ओर से समय समय पर इस तरह के आयोजन होते रहते है ।

इस अवसर पर रमा गोयल, मीनाक्षी, वर्षा गोयल, प्रिया गुलाटी, मोनिका, रीना गर्ग, मिथलेश गोयल, बबीता गुप्ता, राखी गुप्ता, रचना शर्मा, संगीता, अमिता गोयल, प्रवीण शर्मा, सरिता रानी, आश्रम की माता जी, पूनम जी आदि सब उपस्थित थे। आश्रम के द्वारा संस्था के कार्य को सराहा गया।

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस : “बीस साल” में आठ जन नौ बार मुख्यमंत्री….!

0

✒️प्रेम पंचोली

त्तराखंड राज्य अब एक लंबा सफर पूरा कर चुका है। यानी 20 बरस में जहां चार मुख्यमंत्री होने थे वहां 9 मुख्यमंत्री बने हैं, अर्थात 8 जनों ने 9 बार इस प्रदेश की कमान संभाली है।

उत्तराखंड की जनता ने जिस सपने को देखा था वह राजनीतिक दल और व्यक्ति के अहम् में जूझता दिखाई दिया। हालात यह हो गई कि जिस विधानसभा को शिष्टाचार पूर्वक चलना था वहां सदन के अंदर राजनीतिक झगड़ों के निपटारे हुए। यहां तक कि 2 बार अपनी अपनी सरकार को बचाने के लिए फ्लोर टेस्ट तक हुए। इस तरह सरकारों की अंह की लड़ाई में न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ा। बता दें कि मुख्यमंत्री बनने की लड़ाई में राज्य के विकास यदि अवरुद्ध नहीं हुई तो अधूरे तो पड़े हुए ही हैं। उल्लेखनीय हो कि जिस राज्य की प्राकृतिक छटा लोगों को बरबस आमंत्रण देती है उस प्रकृति के संरक्षण के लिए भी यहां कोई खास कार्य दिखाई नहीं दिए। माना जाए यदि 20 बरस में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व दोहन के लिए विशेष योजना बनती तो इस राज्य में एक तरफ लोगों के हाथ में रोजगार होता है और दूसरी तरफ प्राकृतिक संसाधन पर्यटन व्यवसाय से राज्य का राजस्व बढ़ाते। मगर इस राज्य के ‘कर्णधार’ राजस्व कमाने के लिए शराब और कमीशन खोरी को हथियार बना रहे है।

इधर राज्य में कुमाऊँ की गरुड़ घाटी और गढ़वाल की यमुना घाटी कृषि के लिए बहुत विख्यात है। सरकारें आई और गई, लेकिन राज्य में कृषि विकास के लिए कोई खास कार्य सामने नहीं आ पाए। उदाहरण स्वरूप राज्य में जहां-जहां कृषि विकास केंद्र है वे सिर्फ रिपोर्ट लिखने तक या यूं कहें कि सेमिनार तक ही सिमट गए हैं।

उत्तराखंड़ के पूर्व मुख्यमंत्री और उनका कार्यकाल :

नित्यानंद स्वामी – नौ नवंबर 2000 – 20 अक्तूबर 2001
भगत सिंह कोश्यारी – 20 अक्तूबर 2001- 01 मार्च 2002
एनडी तिवारी – 02 मार्च 2002 – 07 मार्च 2007
बीसी खंडूड़ी – 08 मार्च 2007 – 23 जून 2009
रमेश पोखरियाल निशंक – 24 जून 2009 – 10 सितंबर 2011
बीसी खंडूड़ी – 11 सितंबर 2011- 13 मार्च 2012
विजय बहुगुणा – 01 फरवरी 2014- 27 मार्च 2016
हरीश रावत – 27 मार्च 2016- 18 मार्च 2017

इसके अलावा राज्य के 20 बरस के सफर में सरकारी रोजगार की कोई ठोस नीति सामने नहीं आ पाई है। सरकारी रोजगार के लिए रोजगार देना और व्यवस्थित कार्य को उस रोजगार प्राप्त व्यक्ति को देना जो जिस विभाग में सेवा दे रहा है के लिए स्थानांतरण नीति तक की माकूल आवश्यकता इस राज्य को थी, जो आज भी जस की तस पड़ी है। राज्य में आज भी यातायात की सुलभ व्यवस्था तक नहीं हो पाई है। उदाहरणतः उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों को संचालन में अंतर दिखाई देता है। इनका परिचालन अव्यावहारिक तरीके से किया जा रहा है। जैसे पहाड़ पर चलने वाली बसें छोटी या कम सीटों वाली होनी चाहिए, बड़ी और लंबी बसे दिल्ली आदि मैदानों संचालित करनी चाहिए थी, सो नही हो रहा है। जबकि छोटी व नई बसें मैदानों में या दिल्ली तक दौड़ाई जा रही है, कह सकते हैं कि 20 बरस में एक विभाग को व्यवस्थित न करना इस राज्य की नाकामी कही जा सकती है।
हां इतना जरूर हुआ है की बहुत सारे लोग विधानसभा जैसी पवित्र सदन के हिस्सा बन गए। बहुत सारे लोगों को प्रोटोकॉल की सुविधा मिल गई। बहुत सारे लोगों को राजनीतिक पार्टियों ने अहूदे वाले पद दिए। जो अपने-अपने पदों पर राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में खूब गरियान लग गए। मगर राज्य में यातायात की सुलभ व्यवस्था और चिकित्सा, शिक्षा के लिए ठोस कार्यक्रम सामने नहीं आ पाए हैं। जबकि अधिकांश विकास के काम निर्माणाधीन है या आरंभ किए जा चुके हैं पर 20 बरस में पूरे नहीं हो पाए हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण डोबरा चांठी पुल है। 2003 में जब टिहरी बांध की अंतिम टनल बंद कर दी गई थी, टिहरी डूब चुका था, प्रताप नगर के लोग एक तरफ झील के कारण बंद हो चुके थे, इसलिए डोबरा चांठी पुल की मांग उठी। यानी 17 बरस बाद डोबरा चांठी पुल बनकर तैयार हुआ। फलतः विकास के काम समय पर पूरा ना होना ही राज्य का पिछड़ना ही साबित हुआ है।

अनियंत्रित बाइक बिजली के पोल से टकराई, दो की मौत

0

हरिद्वार, जनपद हरिद्वार के रुड़की में शनिवार देर रात अनियंत्रित बाइक सड़क किनारे बिजली के पोल से जा टकराई। हादसे में बाइक सवार दो दोस्त गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने शव का पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम कराया। वहीं, युवकों की मौत से परिजनों में कोहराम मच गया। सिविल अस्पताल में रिश्तेदारों की भीड़ जुटी रही।

सिविल लाइंस कोतवाली क्षेत्र स्थित अशोक नगर (ढंडेरा) निवासी दीपक जोशी (30) पुत्र बसंत जोशी और जितेंद्र दत्त सेमवाल (31) पुत्र चंडी प्रसाद दोस्त हैं। शनिवार शाम दोनों बाइक से किसी काम से रुड़की आए थे। रात करीब दस बजे दोनों घर लौट रहे थे। जैसे ही वे ढंडेरा रेलवे फाटक के पास पहुंचे तो बाइक अनियंत्रित होकर सड़क किनारे बिजली पोल से जा टकराई। हादसे में दोनों गंभीर घायल हो गए और मौके पर आसपास के लोगों की भीड़ जमा हो गई।

उन्होंने सूचना पुलिस को दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने दोनों को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया। यहां डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने दोनों के परिजनों को हादसे की सूचना दी। मौत की खबर मिलते ही परिजनों में कोहराम मच गया। कोतवाली प्रभारी राजेश साह ने बताया कि दोनों शवों का पंचनामा भरकर रविवार को पोस्टमार्टम कराया गया, परिजनों ने बताया कि दीपक की शादी तय हो गई थी। इसी 30 नवंबर को शादी होनी थी, लेकिन हादसे में दीपक की मौत से परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट गया। परिजनों का रो-रोकर हाल है। उधर, मौत की सूचना मिलते ही दीपक की होने वाली ससुराल में भी कोहराम मच गया। मिली जानकारी मुताबिक जितेंद्र की शादी कुछ साल पहले ही हुई थी। उनका एक बच्चा भी है। जितेंद्र की मौत की सूचना मिलते ही पत्नी बेहोश हो गई। परिजनों का रो-रोककर बुरा हाल है। ढांढस बंधाने के लिए रिश्तेदारों का घर पर तांता लगा है। दो युवकों की मौत से हर कोई गमजदा है

टिहरी : डोबरा चांठी पुल जनता को समर्पित, डेढ़ दशक पुराना सपना हो गया पूरा

0

✒️चन्द्रशेखर पैन्यूली

टिहरी, वर्ष 2020 नवम्बर माह की 8 तारीख प्रतापनगर के इतिहास में सदैव के लिए स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गयी, इधर डोबरा चांठी पुल का मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा किया गया उद्घाटन, उधर प्रतापनगर और गाजणा की लगभग 2 लाख की जनसंख्या का करीब डेढ़ दशक पुराना सपना हुआ पूरा, पुल उद्घाटन में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल,राज्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत,सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह,विधायक प्रतापनगर विजय पँवार,विधायक टिहरी शक्ति लाल शाह,विधायक टिहरी धन सिंह नेगी,जिला पंचायत अध्य्क्ष सोना सजवाण आदि प्रमुख नेता मौजूद रहे, पुल के उद्घाटन के लिए सम्पूर्ण क्षेत्रवासियों को बहुत बहुत बधाई। आज के दिन यानि डोबरा-चांठी पुल के बारे में कहाँ से लिखूं क्या लिखूं कुछ समझ नही आ रहा है,क्योंकि इस पुल के उद्घाटन के साथ ही हमारी वर्षों पुरानी मांग जो पूरी हुई है,एक ऐसी मांग जिसके लिए हमारे क्षेत्र के लोगों ने बड़ी तपस्या की, बड़ी प्रतीक्षा की, बहुत आन्दोलन किये,धरना ,प्रदर्शन,रैलियां, भूख हड़ताल, क्रमिक अनशन आदि सभी कुछ किए, आज जब पुल उदघाटन हो गया है तब मन खुश भी है और भावुक भी,कि आखिर 21वी सदी में हमारा प्रतापनगर क्षेत्र अब विकास की मुख्यधारा में शामिल हो ही गया,

आखिर हमारे क्षेत्र से जिला मुख्यालय नई टिहरीऔर प्रदेश की राजधानी देहरादून के लिए सफर आसान और सुगम हुआ है,अब जबकि पहले स्यांसु भैंगा के रास्ते लम्बगांव जाने में लगभग 20 किमी अधिक का सफर तय करना होता था लम्बगांव जाने के लिए तो वहीं टिहरी डैम से होकर पीपलडली,रजाखेत धारकोट होते हुए तकरीबन 30 किमी अधिक फेर से लम्बगांव पहुंचते थे,वो भी इन दोनों रूटों से सिर्फ छोटे वाहन ही आते जाते थे,बड़ी बस या बड़े मालवाहक ट्रक या तो उत्तरकाशी, सकुरणा होते हुए वाया धौंत्री लम्बगांव पहुंचते थे या फिर घनसाली,चमियाला,केमुण्डा खाल होते हुए लम्बगांव पहुंचते थे,इस पुल के बनने से अब ये सब फेर खत्म होकर हमारा आवागमन का मार्ग सरल हुआ है।आवागमन बहुत दूर से या लम्बा होने के कारण प्रतापनगर क्षेत्र में तमाम कर्मचारी नौकरी करने को तैयार नही होते थे या यहाँ से ट्रांसफर करने में लगे रहते थे,क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं के खराब हालात होने के कारण यदि किसी भी इमरजेंसी में या दुर्घटना होने पर किसी मरीज को ऋषिकेश, नई टिहरी ले जाना होता था तो आवागमन लम्बा होने के कारण कई बार रास्ते में ही इलाज के अभाव में मरीज दम तोड़ देते थे,अब किसी भी आकस्मिक सेवा में पुल बन जाने के बाद जल्द नई टिहरी या ऋषिकेश देहरादून पहुंचा जा सकेगा।

इस पुल के बन जाने से प्रतापनगर या गाजणा के लोगों को जो अतिरिक्त दूरी तय करनी होती थी उससे छुटकारा मिला है तो वहीं दूरी और समय कम होने के कारण ऋषिकेश, चम्बा नई टिहरी के किराए मालभाड़े में भी कमी होनी ही चाहिए इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों,क्षेत्रीय विधायक समेत सभी प्रतिनिधियों को जल्द पहल करनी चाहिए, जब लम्बगांव से ऋषिकेश की दूरी और समय घटा है तो किराया भी कम होना ही चाहिए।

अब जरा बात करता हूँ इस पुल के अस्तित्व में आने की,आखिर देश के सबसे बड़े संस्पेंशन ब्रिज जिसकी मुख्य लम्बाई 440 मीटर ,तो वहीं एकतरफ यानि डोबरा की तरफ 260 मीटर आरसीसी तो चांठी की तरफ 25 मीटर स्टील गार्डर भी है,कुल मिलाकर पुल 725 मीटर लम्बा है जिसको बनने में तकरीबन 300 करोड़ रुपये खर्च हुए ऐसी खबरें हैं।इस पुल के निर्माण की मांग टिहरी बांध की टनल बन्द होने के बाद झील के बन जाने के बाद जोर शोर से उठने लगी,2006 में जब भलड़ियाना मोटर पुल जो कि प्रतापनगर क्षेत्र को भारी वाहनों के या छोटे वाहनों के आने जाने का एकमात्र विकल्प था जब वो पुल डूबा तब क्षेत्र के लोग एकदम से विकास की मुख्यधारा से कट गए,तब क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों और नागरिकों को भी महसूस हुआ कि ये तो हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हो गया कि हमारे आवगमन के साधन खत्म हो गए और हमारे लिए आर पार जाने के लिए कोई पुल तक है ही नही,पहले जब भलड़ियाना पुल था तो भलड़ियाना, डांग, बैलगॉव,उप्पू ,सिराईं के लोग मोटना,ग्वाड़, रौलाकोट,चांठी आदि गॉव में सुबह शाम आवगमन करते थे,इतना आसान था कि यदि सुबह की चाय मोटना या ग्वाड़ में पी तो नास्ता भलड़ियाना जाकर करते थे यानि पैदल ही बमुश्किल 30 मिनट ही लगते थे,लेकिन ज्यों ही पुल डूबा भागीरथी के आर पार के बहुत नजदीक के गॉव भी बहुत दूर हो गए,ऐसी स्थिति आने पर 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व नारायण दत्त तिवारी और तत्कालीन प्रतापनगर विधायक स्व फूल सिंह बिष्ट के कार्यकाल में डोबरा चांठी पुल की नींव पड़ी थी जिसको तब 90 करोड़ में और डेढ़ वर्ष में बन जाना था लेकिन तबसे शुरू हुआ ये 14 वर्षों का बनवास आज जाकर खत्म हुआ, ये पुल प्रतापनगर में हर विधानसभा चुनाव में मुख्य चुनावी मुद्दा भी होता रहा है कई बड़े बड़े धुरंधरों ने इसके जल्द निर्माण के तमाम दावे समय समय पर किये।2006 में भलड़ियाना पुल डूब जाने के बाद लम्बे समय तक प्रतापनगर की जनता ने भलड़ियाना में नाव से आर पार करके सफर किया

तब जब पीपलडॉली,स्यांसु झूला पुल बने तब से अभी तक एक लम्बे फेरे से प्रतापनगर के लोग वहीं से आवगमन करते रहे हैं, बड़े वाहन का पुल न होने से हमारे क्षेत्र में न तो रोडवेज और न ही विश्वनाथ या कोई बड़ी बस सेवा ऋषिकेश देहरादून या दिल्ली से आती थी,अब जबकि पुल आज से शुरू हो गया है अब जल्द हमारे क्षेत्र को देहरादून से 2 रोडवेज जिनमे एक प्रतापनगर तो एक रजाखेत तक जाएगी की शुरुआत होने की खबर भी है तो वहीं देहरादून से विश्वनाथ सेवा सीधे प्रतापनगर के लिए शुरू हो रही है।हम क्षेत्रवासी चाहते है पांचवें धाम सेम मुखेम के लिए एक रोडवेज सेवा दिल्ली से तो गाजणा के कमद तक देहरादून से एक रोडवेज बस संचालित हो,तो वहीं भैंतलाखाल और आबकी तक भी रोडवेज सेवाओं की शुरुआत हो,वहीं श्रीनगर गढ़वाल से घनसाली ,चमियाला ,केमुण्डाखाल होते हुए सेम मुखेम के लिए एक रोडवेज सेवा चले।

अब पुनः इस डोबरा चांठी पुल के निर्माण की तरफ आता हूँ,बातें और यादे तो बहुत है इसके निर्माण की लेकिन सम्भवत उतना सब न मैं लिख सकूंगा और साथ ही बहुत लंबा भी हो जाएगा,मुझे वो दिन भी याद है जब 2006 में भलड़ियाना पुल डूबने के बाद नाव सेवा की शुरुआत की गई तत्कालीन विधायक स्व फूल सिंह बिष्ट जी समेत कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने नाव संचालन की शुरुआत की,तब देवी सिंह पँवार,विजय राणा,सब्बल सिंह राणा,मुरारीलाल खण्डवाल जिला पंचायत के प्रभावशाली सदस्य प्रतापनगर क्षेत्र से हुआ करते थे तो उदय रावत,राकेश राणा,विजय पोखरियाल ,राजीव सेमवाल, केशव रावत आदि युवा कांग्रेस के प्रभावशाली नेता हुआ करते थे,नाव की शुरुआत के साथ क्षेत्र के लोगों को लगने लगा कि टिहरी बांध की झील हमारे लिए कालापानी की सजा हो चुकी है हम एकदम से अलग थलग पड़ चुके हैं, तो 2006 में लम्बगांव के शहीद स्थल पर एक बड़ा आंदोलन हुआ भूख हड़ताल हुई,तब मैं इंटरमीडिएट का छात्र था और राइका लम्बगांव में जनरल मॉनिटर हुआ करता था,जो तब आंदोलन हुआ था उसकी मुख्य मांग प्रतापनगर को ओबीसी करवाने और डोबरा चांठी पुल सहित प्रतापनगर में शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क,बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को सुदृढ करना ही था,

उस आंदोलन में रोशनलाल सेमवाल ,देवी सिंह पँवार,चंद्रभानु बगियाल,सोहनपाल पँवार,बलवीर असवाल,गैणा सिंह बगियाल आदि कई नेता प्रमुख रूप से रहे मुझे भी कई दिनो तक आन्दोलन में शामिल होने का अवसर मिला,तब तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर सुभाष कुमार लम्बगांव आए थे।तब डिग्री कॉलेज लम्बगांव के छात्र नेताओं जिनमे सोहन रांगड़,भूपेश कंडियाल,प्रदीप रावत,विक्रम बिष्ट आदि लोगों ने प्रतापनगर, गाजणा की समस्याओं को लेकर आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई,हमारे इंटर कॉलेज के मित्रों जिनमें दीपक,अनुज,राकेश, विनय,धनवीर,
आशीष,अभिषेक,पंकज ,अमित आदि थे तब हमने इस आंदोलन को बड़ा समर्थन लम्बगांव में दिया, असल मे स्कूल और बाजार को बंद करवाने की जिम्मेदारी हमारी ही हुआ करती थी,उसके बाद पुल निर्माण शुरू हुआ आमने सामने खम्बे खड़े हुए तब हमें लगा जल्द पुल बन जायेगा,लेकिन वर्षो तक यही खम्बे रहे, उसके बाद एक इंजीनियर समेत मजदूर की दुर्भाग्यपूर्ण मौत ट्रॉली टूटने से हुई,फिर सुनने में आया कि पुल का डिजाइन फेल हो गया,कभी कार्य को रोके जाने की खबर आई,कभी कुछ तो कभी कुछ आखिर आज वो पल आ ही गया जब तमाम लोगों की उम्मीदें साकार हुई,तमाम आंदोलनकारियों के संघर्षों की जीत हुई है।

आज तमाम लोग श्रेय ले रहे हैं लेकिन ये न भूलें इस पुल के लिए लम्बगांव,डोबरा,भामेश्वर मंदिर ही नही बल्कि देहरादून, दिल्ली तक आंदोलन हुए जो बराबर मीडिया की सुर्खियां बनी और राष्ट्रीय मीडिया तक मे डोबरा चांठी पुल आया, मुझे याद है जब मैं दिल्ली में पत्रकारिता में कार्यरत था तब दिल्ली के गढ़वाल भवन से लेकर,नोएडा तक मे हम प्रतापनगर के लोगों ने डोबरा चांठी पुल के लिए आंदोलन किये विभिन्न केंद्रीय नेताओ मंत्रियों से मिले जिनमे बीसी खंडूरी,हरीश रावत,प्रदीप टम्टा,भगत सिंह कोश्यारी,माला राज्य लक्ष्मी शाह आदि को कई बार ज्ञापन दिए,दिल्ली में डोबरा चांठी पुल के संयोजक प्रतापनगर के निवासी राजेश्वर पैन्यूली, प्रताप थलवाल, राजपाल पँवार,दुर्गा सेमवाल,भगवान सिंह पोखरियाल,विजय रावत,प्रकाश बिष्ट,ममता काला,पंकज पैन्यूली आदि लोगो के साथ समय समय पर आंदोलन किये।आज के समय भले ही लोग भूल जाएं कि इस पुल के मुद्दे को प्रमुख रूप से किसने उठाया या स्वयं को ही श्रेय दें,लेकिन नई टिहरी,लम्बगांव, उत्तरकाशी, घनसाली ,ऋषिकेश आदि के पत्रकारों को भली भांति पता है कि किसने डोबरा चांठी पुल निर्माण हेतु तमाम RTI या विभिन्न जानकारियों को एकत्रित करके पुल निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,खैर ये राजनीति का एक हिस्सा होता है कि जब जिसका समय हो वो प्रभावशाली होता है,2006 में टिहरी के सांसद दिवंगत महाराजा मानवेन्द्र शाह थे उनके निधन के बाद विजय बहुगुणा सांसद बने जिनके प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनाव के बाद से अभी तक माला राज्य लक्ष्मी शाह टिहरी से सांसद है,तो उत्तराखंड में भी तब नारायण दत्त तिवारी के बाद ,बीसी खंडूरी,रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा,हरीश रावत और अभी त्रिवेन्द्र सिंह रावत मुख्यमंत्री है,2006 के बाद क्षेत्र में 2007 से 12 तक विजय पँवार गुड्डू तो 2012से 17 तक विक्रम नेगी विधायक रहे तो वहीं 2017 से अभी विजय पँवार विधायक है,वहीं 2006 में प्रतापनगर की प्रमुख विजयलक्ष्मी थलवाल के बाद 2008 से 2013 तक पूरण चंद रमोला,तो 2014 से 2019 तक रेशमा बगियाल प्रतापनगर में ब्लॉक प्रमुख रही,तो 2019 से आज तक प्रदीप रमोला ब्लॉक प्रमुख है,तब से अब तक सैकड़ो प्रधान,बीडीसी सदस्य ,जिला पंचायत सदस्य अपने अपने कार्यकाल में आते रहे हैं,कुल मिलाकर डोबरा चांठी पुल ने प्रदेश तमाम बड़े बड़े दिगज्ज नेताओं के कार्यकाल को देखा है,तमाम समय पर कई आंदोलनों का गवाह रहा है,और तमाम राजनीतिक दलों नेताओ को देखते हुए अब जाकर आज ये पुल जनता के लिए विधिवत उदघाटन के साथ खुल चुका है,

जिससे क्षेत्र में हर्ष और खुशी का माहौल है।2006 के बाद क्षेत्र में तमाम जनप्रतिनिधियों ने समय समय पर डोबरा चांठी पुल के लिए आंदोलनों में भाग लिया,उन सभी आंदोलनकारियों को भी बधाई जिन्होंने जगह जगह और समय समय पर डोबरा चांठी पुल निर्माण की मांग को उठाया,उन सभी महान इंजीनियरिंयों मजदूरों को भी नमन जिन्होंने दिनरात काम करके पुल को बनाया,और आज उन्ही के बनाये गए एक विशाल पुल के ऊपर हम सभी का आवागमन सम्भव हो सका है।आज प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी ,विधायक विजय सिंह पँवार जी समेत तमाम नेता जो उदघाटन समारोह में शामिल रहे वो सभी एक स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं, इस पुल के उदघाटन के साथ ही प्रतापनगर के लोगों का वनवास भी खत्म हुआ, आज हमारे क्षेत्र के लिए दीवाली और होली जैसा जश्न का दिन है

कश्मीर में घुसपैठ रोकने के दौरान सेना के कैप्टन समेत 3 जवान शहीद, 3 आतंकी भी ढेर

0

श्रीनगर- कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में रविवार रात पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ रोकने के लिए सेना और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स ने 3 आतंकवादियों को ढेर कर दिया। मुठभेड़ में सेना के कैप्टन समेत 3 जवान भी शहीद हो गए।

श्रीनगर में रक्षा प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने बताया कि सुरक्षाबलों ने 7-8 नवंबर की रात को सीमा पर घुसपैठ की कोशिश नाकाम कर दी। इसके बाद हुई गोलीबारी में कांस्टेबल सुदीप सरकार शहीद हो गए। एक आतंकी भी मारा गया। मौके से एक एके-47 राइफल और दो बैग मिले। करीब 4 बजे गोलीबारी बंद हो गई।इसके बाद सुबह 10:20 बजे फिर मुठभेड़ शुरू हुई। इसमें दो आतंकी मारे गए। सेना के तीन जवान शहीद हो गए। 2 अन्य घायल हैं। घायलों को मौके से निकाल लिया गया है। आतंकियों के साथ मुठभेड़ अब भी जारी है।