Saturday, May 4, 2024
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लोक विधाओं की मर्मज्ञ डा. माधुरी बड़थ्वाल दीदी को “पद्मश्री” सम्मान

गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी और माधुरी बड्थ्वाल का “स्याली हे बसंती स्याली तन की गोरी मन की काली” गीत आज भी बेहद लोकप्रिय है |

(चन्द्र दत्त सुयाल)

उत्तराखंड लोक विधा- लोकगीत, माँगल संस्कार गीत, ढ़ोलसैल युक्त विधाओं की मर्मज्ञ, शोध- संकलनकर्ता आदरणीय दीदी डा. माधुरी बड्थ्वाल को भारत सरकार द्वारा उल्लेखनीय कार्यों के योगदान हेतु “पद्मश्री” अलंकरण सम्मान से सुशोभित करने पर उत्तराखंड की मातृशक्ति ही नहीं अपितु संपूर्ण लोक कला’ लोक साहित्य- लोक विधा और मांगल-संस्कार गीतों के जानकार’ जन-समुदाय’ कलाकार स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। डा. माधुरी दीदी के इस सफर पर कुछ लोग स्पष्ट जानकारी के अभाव में अपने-अपने मंतव्य अनुसार उन्हें भारत की प्रथम रेडियो उद्घोषिका और ना जाने क्या-क्या लिख रहे हैं, मैं माधुरी दीदी को विगत 32 वर्षों से जानता हूँ जबकि वास्तविकता यह है कि वह आकाशवाणी नजीबाबाद की प्रथम महिला संगीत संयोजक/ कंपोजर रही हैं, लोकगीतों- लोक विधाओं की शोध संकलनकर्ता के अतिरिक्त उन्हें लोक वाद्य ढोल की जानकारी भी भली-भांति है | जोकि ढोल विधा के मर्मज्ञ पंडित स्वर्गीय केशव अनुरागी के सानिध्य में उन्होंने सीखी हैं, दीदी की गायन शैली में भी विशेषज्ञता है, लोक गायन के अतिरिक्त वह शास्त्रीय गायन में भी प्रवीण हैं | आकाशवाणी द्वारा समय-समय पर उनके गाए लोकगीत सुने जा सकते हैं, जिनको उन्होंने ख्यातिलब्ध लोक गायकों के साथ युगल गाया है, एक प्रसिद्ध गीत -“गढ़ रतन” श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी के साथ “स्याली हे बसंती स्याली तन की गोरी मन की काली” बेहद लोकप्रिय हुआ है, माधुरी दीदी ने उत्तराखंड के अधिकांश नवोदित कलाकारों को अपने मार्गदर्शन का संरक्षण संवर्धन दिया है, आपकी प्रेरणा से उन्हें आकाशवाणी दूरदर्शन में सम्मानित ग्रेड भी प्राप्त हुआ है जबकि भली-भांति मुझे याद है कुछ फीमेल गायक कलाकारों को बोली भाषा बोलने में असहजता होती थी किंतु आप ने उन्हें शब्द उच्चारण, शब्द अर्थ बोलचाल का लहजा और गायन शैलियों के मूललोक मंत्र बताए हैं,

जो आज उनकी अपनी अपनी विधाओं में काम आ रहे हैं गढ़वाल उत्तराखंड के प्रत्येक क्षेत्र की लोक विधाओं में गीत संकलन और शोध कार्य किया आकाशवाणी नजीबाबाद से वरिष्ठ संगीत संयोजिका/ कंपोजर पद से सेवानिवृत्त होने पर आपने देहरादून में अपने निवास पर महिलाओं को लोकगीतों- मांगल संस्कार,थड़या, चौफला, झूमेलो, तांदी, खुदेड़, बाजूबंद, घस्यारी मेला गीत,लामड़, हारूल कृषि, ऋतु गीत, बारामासा आदि विभिन्न विधाओं पर प्रशिक्षित किया, जो आज संपूर्ण उत्तराखंड में विवाह संस्कार, उत्सव, प्रतियोगियों, कार्यशालाओं में अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हैं | आज प्रायः शादियों में मांगल समूहों द्वारा मांगल गायन परंपरा का रिवाज हो गया है। लोक संस्कृति, गायन, वादन, लोकनृत्यों का प्रशिक्षण बच्चे, युवा विशेषकर आम गृहणी महिलाएं तन, मन,धन से सशक्त होकर स्वावलंबी आत्म-सम्मानयुक्त जीवन यापन कर रही हैं। आज कई संगठन दल अपनी योग्यता क्षमता अनुसार प्रदर्शन कर रहे हैं जिसका श्रेय डा. माधुरी बड़थ्वाल दीदी को ही जाता है | डॉ. माधुरी बड़थ्वाल दीदी को इस सम्मान द्वारा विभूषित होने पर हम सभी लोक गायन, लोक कलाकारों की ओर से ह्रदय तल की अनंत गहराइयों से बधाईयां शुभकामनाएं ज्ञापित करते हैं |

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