Friday, September 20, 2024
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धाद हरेला माह में “तपता हुआ शहर और असंतुलित विकास” पर विमर्ष का आयोजन

‘सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविदों ने जतायी असंतुलित विकास पर चिंता’

देहरादून, सामाजिक संस्था धाद और दून लाइब्रेरी रिसर्च सेंटर द्वारा हरेला माह में देहरादून के बढ़ते तापमान, असंतुलित विकास और घटती हुई हरियाली पर विमर्ष का आयोजन दून लाइब्रेरी में किया गया।
मुख्य वक्ताओं में से एक पर्यावरणविद डॉ. रवि चोपड़ा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन एक ग्लोबल चिंता है और देहरादून का तापमान 43 डिग्री जाना भी उसी का परिणाम है, इससे बचने का तरीका पेड़-पौधे और हरियाली ही है। हमें ज्यादा से ज्यादा लोकल संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए और पेड़ लगाने के साथ साथ उसके रख रखाव का ध्यान भी रखना चाहिए।
एक प्रश्न का जवाब देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता रीनू पॉल ने कहा दून वैलि नदियों, रिजर्व फॉरेस्ट, नहरों, नाले और खेतों की सुन्दर संरचना थी जो आज हीट आइलैंड बनता जा रहा है। इसका एक कारण देहरादून के आसपास के वनों का विभिन्न परियोजनाओं के चलते काटन होना और शिवालिक रेंज का कटाव भी है।
सिटिजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा ने धाद संस्था को इस तरह के सत्र आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि इस तरह के और आयोजन किये जाने की जरूरत है ताकि समाज में पर्यावरण को लेकर एक समझ बन सके। विकास की परियोजनाओं के चलते पेड़ों का कटान तो जोर-शोर से किया जाता है पर उसकी ऐवज में जो पेड़ लगने हैं उनकी बात आज तक कोई नहीं कर रहा। साथ ही उन्होंने बताया कि सहस्त्रधारा रोड़ के जिन पेड़ों का प्रतिरोपण का काम किया गया वो भी आज मरुस्थल बन गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा ज्यादातर विकासशील देशों में हो रहा अनियोजित विकास पर्यावरण असंतुलन को जन्म दे रहा है और हम सबका विकास की इस धुरी पर घूमना एक बड़ी विडंबना है। विकास के इस असंतुलित और विनाशकारी मॉडल में उस समावेशी दृष्टिकोण की कमी है जो प्रकृति के हर अंग में संतुलन कायम करता है। इस वर्ष देहरादून में तापमान 43 डिग्री के पार जाना और दूसरी जगहों पर सूखा, अतिवर्षा, बाढ़ और भूस्खलन के साथ ही क्लाइमेट चेंज का एक बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा हो गया है। ऐसे में विचार करना जरूरी होगा कि आने वाले समय में हमारे विकास का मॉडल क्या हो? हमारी जीवनशैली में क्या बदलाव हो और हम एक नागरिक समाज के रूप में अपने शहर को इस आपदा से बचाने के लिए कैसी भूमिका निभाएं ?
धाद के सचिव तन्मय मंमगाई ने बताया कि संस्था हरेला माह के अंतर्गत दो अध्याय पहला हरेला वन जो उन शहरों की बात करता है जो असंतुलित विकास की पहली कड़ी बने हैं और दूसरा हरेला गाँव जो पहाड़ मे पलायन के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते खेतों और उत्पादकता की बात करता है। इसी क्रम में हमने इस बार सतपुलि संवाद में पौड़ी गढ़वाल के प्रगतिशील किसानों से भी बातचीत का सत्र आयोजित किया। सत्र का संचालन धाद की ओर से सुशील पुरोहित ने किया और प्रश्न हिमांशु आहूजा द्वारा पूछे गए।

इस अवसर पर डॉ एस एस खैरा, हर्ष मणि व्यास, सुरेश कुकरेती, अतुल शर्मा, सुरेंद्र अमोली, अवधेश शर्मा, गणेश उनियाल, उत्तम सिंह रावत, नरेंद्र सिंह रावत, ब्रिगेडियर के जी बहल, इरा चौहान, आशा डोभाल, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, चारू तिवारी, शिव प्रकाश जोशी, डॉ दयानंद अरोड़ा, विकास मित्तल, राजेंद्र विरमानी, आर के गुप्ता, राकेश अग्रवाल, महेंद्र ध्यानी, टी आर बरमोला, विजय भट्ट, मनोहर लाल, सविता जोशी, नरेंद्र उनियाल, बृज मोहन उनियाल, कमला कठैत, दयानंद डोभाल, साकेत रावत, इंदू भूषण सकलानी, आदि मौजूद थे I

 

पेरुमल मुरुगन और आधुनिक तमिल साहित्यिक परिदृश्य पर बातचीत

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सायं पेरुमल मुरुगन और आधुनिक तमिल साहित्यिक परिदृश्य विषय परएक वार्ता का आयोजन किया गया. इस सचित्र वार्ता में श्री निकोलस हॉफलैण्ड द्वारा युवा अध्येता अम्मार यासिर नक़वी से बातचीत की गई। इस बातचीत में दक्षिण भारतीय साहित्य के भौतिक, मानसिक परिदृश्यों पर विहंगम दृष्टि रखने का प्रयास हुआ। महत्वपूर्ण सवाल यह उठा कि क्या किसी समाज और उसके साहित्य के विकास को एक साथ समझा जा सकता है, और क्या साहित्य समाज में बदलाव का उतप्रेरक बन सकता है. निकोलस और अम्मार नकवी के मध्य इन सभी बिन्दुओं पर विमर्श किया गया। अम्मार नकवी ने तमिल क्षेत्र की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपराओं को उसकी संपूर्ण महिमा के साथ प्रस्तुत किया ।
चर्चा का प्रारंभिक बिंदु पेरुमल मुरुगन के लेखन पर केन्द्रित रहा। इमायम, सीएस चेलप्पा, बामा, सलमा, जानकीरमन जैसे लेखकों पर भी चर्चा की गई। महिला और दलित साहित्य पर भी संक्षेप में चर्चा की गई। अम्मार नकवी ने साहित्य की लोकप्रियता और प्रचार-प्रसार पर पुरस्कार और प्रकाशनों की क्या भूमिका है? इस पर भी खास बात की।
कुल मिलाकर इस बातचीत में तमिल संस्कृति और साहित्य का परिचय, साहित्यिक शैली के रूप में इसका विकास और संगम की समृद्ध विरासत, विश्व इतिहास में इसका अद्वितीय स्थान और इसकी निरंतरता और विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सार्थक बात की गई। अंग्रेजी अनुवाद की भूमिका, उसकी शैलियाँ, स्वरूप और सामने आने वाली चुनौतियाँ पर भी गहराई से विमर्श हुआ। इसके साथ ही औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत में जन साहित्य का विकास कैसे हुआ, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और साहित्यिक समाज की भूमिका पर भी चर्चा की गयी।
वार्ताकार अम्मार नक़वी पेशे से एक अकादमिक अनुवादक,लेखक, इतिहासकार, घुम्मकड़ और एक महत्वाकांक्षी शिक्षाविद हैं. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय जैसे संगठनों के साथ-साथ अमन प्रकाशन और परिवर्तन प्रकाश जैसे कुछ क्षेत्रीय प्रकाशनों के लिए लेखक, अकादमिक प्रशिक्षक, अनुवादक, शोधकर्ता और संसाधन व्यक्ति के रूप में में काम कर रहे हैं. उन्होंने बंगाल के दूरदराज के हिस्सों में ग्रामीण क्षेत्रीय पुस्तकालयों की स्थापना की।
कार्यक्रम की शुरुआत में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने अतिथियों वक्ता और उपस्थित प्रतिभागी लोगों का स्वागत किया और इस तरह की पहल को साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर अनेक युवा पाठक, लेखक, साहित्यकार व अन्य लोग उपस्थित थे।

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