Monday, November 25, 2024
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कवियत्री आरती गौड़ की एक सारगर्भित रचना : मन स्वंकुश ना हो…!

मन स्वंकुश ना हो तो
मानव होने का क्या लाभ
इसे छोड़ सब में माहिर होकर
क्या करोगे पाकर कोई भी खिताब.?

वो मन ही तो है जो
हमें नियंत्रण में रख
खुद कहीं और भटकता है
और इसके भटकन से
जीवन सारा दरकता है |

तहस नहस हो जाती हैं खुशियां
मन के बेबस हो जाने से
फिर कहाँ चैन मिलता है
कुछ भी पा जाने से |

खरे ना उतर पाते हैं हम
अपनी ही शर्तों के पैमाने पर
मन स्वंकुश ना हो तो
इल्जाम लगाते हैं हम जमाने पर |May be an image of 1 person and standing

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