देहरादून, ‘स्पेक्स’ संस्था के सहयोग से दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में होली के प्राकृतिक रंगों को बनाने की एक विशेष कार्यशाला आयोजित की गयी. इसमें होली के दौरान सुरक्षित व प्राकृतिक रंगों के उपयोग के लाभ और रासायनिक रंगों के खतरों के बारे में बच्चों को जागरूक किया गया। इस अवसर पर हिमज्योति स्कूल के बच्चों ने कुछ सुंदर होली गीत भी प्रस्तुत किये।
‘स्पेक्स’ संस्था के डॉ. बृजमोहन शर्मा ने बताया कि होली के दौरान बाजार में अधिकतर चमकीले रंग आते हैं, जो कई तरह के रसायनों से बनते हैं, और स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक माने जाते हैं.इन रंगों से परहेज, प्राकृतिक रंगों के उपयोग तथा सामजिक जागरूकता पैदा करना इस एक दिवसीय कार्यशाला का उद्देश्य रहा है. कार्यशाला के जरिये बच्चे सब्जियों , फलों और फूलों द्वारा स्वयं रंग बनाने कि विधि के साथ -साथ स्वस्थ होली कैसे मनाये उसके बारे में सहज रूप से जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
डॉ. शर्मा ने आसान तरीकों से बच्चों को सुरक्षित होली मनाने में प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने की सलाह देते हुए कहा कि प्राकृतिक रंग का उपयोग स्वास्थ्य कि दृष्टि से आसान व अच्छा उपाय है। उन्होंने इस कार्यशाला में हरे, लाल, नीले, गुलाबी, केसरिया, और भूरे रंग बनाने की सरल विधियों को साझा किया गया।
बच्चों से कहा गया कि वे प्राकृतिक हरा रंग शुद्ध मेहंदी, पोदीना, धनिया,पालक आदि से लाल रंग, लाल चंदन, अनार के छिलके, चकुंदर आदि से व नीला रंग नील के पौधे से तथा केसरिया रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनाया जा सकता है l
बच्चों को रासायनिक रंगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के बारे आगाह करते हुए कहा कि हाल के अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि बाजार में मिलने वाले प्रमुख रंगों में जो घातक रसायनों का उपयोग होता है वह स्वास्थ्य से उचित रहते. उन्होंने बताया कि हरे रंग में मैलेकाइट ग्रीन और कॉपर सल्फेट,बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड,सिल्वर रंग में एल्यूमिनियम ब्रोमाइड,काले रंग में लेडऑक्साइड पीले रंग में मेथिल येलो,लाल रंग में रोडामिन बी और मरक्यूरिक सल्फाइट होते हैं.ये सभी धातकीय रसायन, त्वचा रोग, आंखों में जलन, अंधापन, कैंसर जैसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर सकते हैं और पानी और मिट्टी को भी प्रदूषित करते हैं।
कार्यशाला में उपस्थित बच्चों से डॉ. बृजमोहन शर्मा ने सुरक्षित होली मनाने के उपायों को अपनाने कि अपील करते हुए कहा कि वे होली के दिन अपने शरीर पर नारियल का तेल या क्रीम अवश्य लगाएं,बालों में तेल लगाना न भूलें,पूरे बाजू की शर्ट और पैंट पहनें, धूप के चश्मे का प्रयोग करें। प्राकृतिक और हर्बल रंगों से होली खेलें।रंग छुड़ाने के लिए हल्के गर्म पानी का प्रयोग करें।यदि कोई रंग न छूटे तो दही और बेसन का लेप लगाएं।
साथ ही डॉ. शर्मा ने होली से एक सप्ताह पहले किसी प्रकार का कोई ब्यूटी ट्रीटमेंट न कराने,आंख, कान, नाक या खुले घाव पर रंग न लगने देने,सिंथेटिक रंगों से दूर रहने जैसे सुरक्षा टिप्स भी दिये,
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्र शेखर तिवारी ने सभी बच्चों का स्वागत किया और डॉ. बृजमोहन शर्मा के इस तरह के वैज्ञानिक जागरूकता के कार्यक्रमों को सराहनीय बताया l
कार्यशाला में स्पेक्स के अध्यक्ष डॉ. बृजमोहन शर्मा, ग्रासरूट अवेयरनेस एंड टेक्निकल इंस्टीट्यूट फॉर सोसायटी के सचिव नीरज उनियाल,राम तीरथ मौर्या, बाल प्रभाग प्रभारी मेघा विल्सन, शोध सहायक सुंदर सिंह बिष्ट, डॉ. योगेश धस्माना, बिजू नेगी,सुनील भट्ट, कुल भूषण नैथानी सहित अन्य लोग मौजूद रहे l
कार्यक्रम में हिमज्योति स्कूल, आसरा ट्रस्ट औ रफऐल स्कूल के बच्चे अन्य बच्चे और उनके अभिभावक व युवा पाठकों ने उत्साह के साथ प्रतिभाग किया.
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