Thursday, September 19, 2024
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जौनसार में गीत नृत्य से लेकर पहनावा तक सभी आयाम विशेष है : नंदलाल भारती

‘यमुना घाटी के लोक रंग, लोकगायन व संगीत के परिप्रेक्ष्य में चर्चा का हुआ आयोजन’

देहरादून, यमुना घाटी के लोक रंग को लेकर रविवार को वरिष्ठ रंगकर्मी डा. नंदलाल भारती व यमुना घाटी के प्रसिद्ध लोक गायक अनिल बेसरी ने अपने गायन के साथ साथ अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की।
दून पुस्तकालय के सभागार में इन दोनों लोक कलाकारों के साथ यमुना घाटी के लोकगायन व संगीत के परिप्रेक्ष्य पर युवा लेखक व पत्रकार प्रेम पंचोली ने विस्तार से बातचीत की। उन्होंने कहा कि यमुना घाटी में अन्य जगहों की अपेक्षा पलायन कम हुआ है। इसीलिए रवाई क्षेत्र में खेती किसानी से लेकर गांव के तीज त्योहार आज भी जिंदा बने हुए हैं। लोक गायक अनिल बेसरी ने बताया कि रवाई क्षेत्र में एक खास बात है कि यदि समाज में कुछ गलत हो रहा हो तो उसका लोग गीत जुड़ा देते है।
वरिष्ठ रंगकर्मी और जौनसारी गीतकार नंदलाल भारती ने कहा कि जौनसार में गीत नृत्य से लेकर पहनावा तक सभी आयाम विशेष है। इन सभी अायामो के जौनसार क्षेत्र में लोक गीत है। उन्होंने कहा कि 30 साल पहले यदि कोई जौनसारी ड्रेस पहनकर बाजार आ गया तो लोग उनके पहनावे की मजाक बनाते थे, इसलिए लोगों ने अपनी संस्कृति से पलायन करना आरंभ किया। मगर जब उन्होंने 30 बरस पहले जौनसारी लोक संस्कृति के प्रचार प्रसार का जिम्मा उठाया तो भी उनका मजाक उड़ाया गया। पर वे अपने मिशन से हटे नही और आज स्थिति ऐसी हो गई है कि दूर शहर अथवा विदेश में भी कोई जौनसारी होगा तो वह अपने पहनावे को गर्व के साथ पहनता है। यहां के गांव में रिवाज है कि कोई भी कार्य बिना सहभागिता के संपन्न नहीं होगा, यमुना घाटी यानी रवांई, जौनसार, बाबर, जौनपुर आदि क्षेत्रों से मिलकर एक छोटा सा क्षेत्र है।
यहां के सभी नृत्य गीत रसीले और भावनात्मक है। जबकि यहां गाई जाने वाली हारूल के विभिन्न प्रकार है, जिसमें वीर रस एक खास प्रकार का हारूल गीत है।
दिलचस्प यह है कि यमुना घाटी के लोकगीतो के रचनाकार आज भी अज्ञात हैं। इन अज्ञात रचयिताओं द्वारा रचित लोकगीत संपूर्ण यमुना घाटी में गाए जाते हैं। आज के आधुनिक युग में इन गीतों को सैकड़ो कलाकारों ने ऑडियो वीडियो फॉर्मेट में प्रस्तुत किया है। यमुना घाटी के लोक नृत्य अपने आप में खास है। इसलिए कि यहां के लोकगीत लोक वाद्य यंत्रों के साथ ही गाए जाते हैं। जिसमें मुख्य रूप से थाली, खंजरी, ढोलक और ढोल, नगाड़ा एवम रणसिंघा प्रमुख है। आज के वाद्य यंत्रों को इनके साथ सम्मिलित करने में थोड़ा सा कठिनाई आ सकती है लेकिन परंपरागत वाद्य यंत्रों के साथ जब यमुना घाटी के लोकगीत प्रस्तुत होते हैं तो देखते ही एक आवाज आती है कि हम भी नृत्यकारों के साथ सम्मिलित होना चाहते है।
कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध लोकगायक अनिल बेसारी ने जौनसार, रवाईं और जौनपुर के इलाके में प्रचलित परंपरागत गीतों का भी गायन किया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवम शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने आमंत्रित कलाकारों व सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया।
कार्यक्रम में डॉ.नंदकिशोर हटवाल, डॉ.अतुल शर्मा, सुरेंद्र सजवाण, रंजना शर्मा, शूरवीर सिंह रावत, शैलेन्द्र नौटियाल, भारती आनन्द,शोभा शर्मा, aur अनेक लोक कलाकार, रंगकर्मी, संस्कृति कर्मी, लेखक व साहित्यकार और अन्य लोग उपस्थित थे।

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