देहरादून, देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है यहां की प्राकृतिक नजारों के लुप्त उठाने के लिए देश विदेश के पर्यटक आती हैं लेकिन इन प्राकृतिक नजारों के साथ जो छेड़खानी हो रही हैं कहीं न कहीं पहाड़ की भूमि असुरक्षित हो रही हैं जिसका जीता जागता उद्दाहरण चमोली जनपद के जोशीमठ तपोवन में हुए हिमस्खलन दर्शाता है क्या कहीं विकास की होड़ में हम मानव के जीवन को असुरक्षित तो नहीं बना रहे हैं
जो हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति ने जो सौंदर्य कृत्य स्थल हमें दिए हैं कही विकास से जोड़कर हम उनको छती तो नही पहुंचा रहे हैं इस प्रकार के कई प्रश्न जहन में आते हैं।
इस सम्बंध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी का कहना है विकास के नाम पर कहीं न कहीं हम जो प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहे हैं वह आनेवाले समय के लिए कष्टदायक होगा, हम अपने विकास की होड़ में नदियों को रोककर परियोजनाओं को बना रहे हैं,
मजबूत चट्टानों को काटकर सुरंगों का निर्माण कर रहे हैं, पानी को रोककर नदी बेसिन में बसे लोगो को खतरा दे रहे हैं उससे हिमालय क्षेत्र के पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मानव जीवन के साथ यहा के पशु व वन्यजीव तथा प्राकृतिक वनस्पति असुरक्षित हैं। विकास के साथ परियोजना निर्माताओं को परियोजना के रुपरेखा तैयार करने के साथ बचाव के उपाय बनाने चाहिए ताकि मानव जीवन व कार्य मे लगे वर्कर्स को सुरक्षित किया जा सके और हिमालयी क्षेत्रों को कोई नुकसान न पहुंचे। कहा जिस प्रकार गाड़ियों में आपात कालीन द्वार होते है
उसी प्रकार डेम बनाने या सुरंग में लगे कार्य कर रहे मजदूरों के लिए आपात कालीन द्वार होना चाहिए कभी कोई आपदा जैसी घटना होती हैं तो उस द्वार से उन्हें बचाया जा सके। जोशीमठ धौलीगंगा व ऋषिगंगा परियोजना में भी आपात द्वार होता तो सायद इतने मानव जीवन की हानि नहीं होती और उन्हें बचाने में हमें सहायता मिलती। हमारी योजनाएं भविष्य को ध्यान में रखकर हो ताकि जोशीमठ तपोवन की घटना की पुनरावृत्ति न हो।
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