हरिद्वार,9 दिसम्बर (कुल भूषण) गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के आर्यसमाज द्वारा पुण्यभूमि कांगड़ी ग्राम में आचार्य रामदेव के निर्वाण दिवस पर यज्ञ किया गया। यज्ञ के ब्रह्मा प्रो0 सत्यदेव निगमालंकार और प्रो मनुदेवबन्धु ने वैदिक परम्परा के अनुसार यज्ञ का कार्यक्रम सम्पन्न कराया।
गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 रूपकिशोर शास्त्री ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि बालिका शिक्षा के युग प्रवर्तक आचार्य रामदेव ने सर्वप्रथम पाठशाला देहरादून के राजपुर रोड़ पर खोली। उसके पश्चात् 1917 में आचार्य रामदेव ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार की भूमि खरीदी और हरिद्वार में भव्य विश्वविद्यालय बनाकर इतिहास के पन्नों में दर्ज कर दिया। उन्होंने कहा कि आचार्य रामदेव 18 भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान थे। अंग्रेजी भाषा में उनको एकाधिकार था। अंग्रेज भी उनकी भाषा को सुनकर दंग रह जाते थे।
गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो0 दिनेश चन्द्र भट्ट ने कहा कि आचार्य रामदेव ने भारत के इतिहास को दो कालखण्डों में लिखा है। आज भी पूरे देश में इतिहास की बात होती है तो उनकी पुस्तकों का चित्रण जरूर होता है। प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि आचार्य रामदेव जी का व्यक्तित्व इतना महान था और अपने समय में वह इतने प्रसिद्ध थे उनके बारे में आज हिंदुस्तान अखबार के संपादक के पृष्ठ पर जो सबसे नीचे वाला कॉलम होता है उसमें उसमें उनके द्वारा किए गए कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की।
भेषज विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष व मुख्यवक्ता प्रो सत्येन्द्र राजपूत ने कहा कि यह पूण्यभूमि एक ऐतिहासिक धरोहर है। यहां पर स्वामी श्रद्धानन्द ने गुरुकुल शिक्षा का शुभारम्भ किया था। 1902 में इस गुरुकुल कांगड़ी पुण्यभूमि की स्थापना की गयी थी। इस पूण्यभूमि से ही देश की आजादी के लिए स्वामी श्रद्धानन्द महाराज ने बिगुल बजाया था।
काँगड़ी गांव प्रधान ने कुलपति से मांग की कि काँगड़ी गांव के पास हाईवे पर स्वामी श्रध्दानंद प्रवेश द्वार बनाया जाये।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रो सोहनपाल आर्य डॉ विजेंद्र शास्त्री, डॉ योगेश शास्त्री ,प्रो प्रभात कुमार,डॉ श्वेतांक आर्य, डॉ दीन दयाल, पूर्व सम्पदा अधिकारी करतार सिंह, रामप्रकाश शर्मा,नवीन कुमार, अमित कुमार, रमेश चंद्र , दीपक आनंद, डॉ सचिन पाठक,धर्मेंद्र बालियान दीपक वर्मा, कर्मचारीगण, उपस्थित रहे। सामाजिक कर्मठ महिलाओं को आचार्य रामदेव का चित्र देकर सम्मानित की किया गया।कार्यक्रम का संचालन प्रो सत्यदेव निगमालंकार ने किया।
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