देहरादून, उत्तराखंड़ में छात्रवृत्ति घोटाले में अब एक के बाद एक राज खुलते जा रहे हैं, छात्रवृत्ति घोटाले की विवेचना में एक और खुलासा हुआ है। विद्यार्थियों का भविष्य संवारने वाले दो सरकारी शिक्षकों ने फर्जीवाड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। घोटाले को अंजाम देने के लिए अध्यापक दिग्विजय सिंह ने एसडीएम और उदयराज ने तहसीलदार के फर्जी दस्तखत और मुहर लगाकर विद्यार्थियों के जाति, स्थायी प्रमाणपत्र बनाए और उनको सत्यापित कर रुपये भी हड़पे का काम किया । इस घोटाले में ऊधमसिंह नगर जिले के 13 थानों में यूपी और अन्य राज्यों के 60 शैक्षिक संस्थान और 70 दलालों के खिलाफ छात्रवृत्ति घोटाले के मुकदमे दर्ज हैं।
शैक्षिक संस्थानों ने एससी, एसटी और ओबीसी के तीन हजार विद्यार्थियों के नाम पर 14 करोड़ रुपये डकार लिए थे। एसआईटी की ओर से विद्यार्थियों के दस्तावेजों के भौतिक सत्यापन में घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद आरोपियों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया था। थानों में केस दर्ज होने पर जांच एसआईटी के बाद पुलिस क्षेत्राधिकारियों के पाले में चली गई है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, जसपुर में दर्ज मुकदमों की जांच में सामने आया है कि घोटाले के मुख्य आरोपी दिग्विजय सिंह ने एसडीएम और उदयराज ने तहसीलदार के फर्जी हस्ताक्षर किए और समाज कल्याण विभाग में दस्तावेज जमा कर दिए जहां तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारियों ने साठगांठ कर ड्राफ्ट से रुपये जारी कर दिए। जसपुर निवासी शिक्षक दिग्विजय सिंह राइंका सिमलखा बेतालघाट (नैनीताल) और काशीपुर निवासी उदयराज राउमावि रमैला चंपावत में तैनात थे। दोनों निलंबित हो चुके हैं।
एसआईटी प्रभारी ममता बोहरा ने बताया कि छात्रवृत्ति घोटाले की एसआईटी जांच में फर्जीवाड़ा सामने आ गया था। बाहरी राज्यों के शैक्षिक संस्थानों के नाम पर घोटाला करने के आरोपियों पर दर्ज केसों की विवेचना चल रही है, जिसमें सब कुछ फर्जी पाया जा रहा है। फर्जी विद्यार्थियों के साथ ही अधिकारियों के नाम पर फर्जी दस्तावेज भी बनाए गए हैं।
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