(चन्दन सिंह बिष्ट) चंपावत, उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित मां वाराही धाम देवीधुरा में रक्षाबंधन पर प्रसिद्ध बग्वाल की रस्म अदा की गई। फल फूलों से खेली जाने वाली बग्वाल कोरोना के कारण इस बार भी लगातार दूसरी बार सांकेतिक रुप में खेली गयी | करीब आठ मिनट चल चली बग्वाल में 75 लोग घायल हुए। घायलों में अधिकतर रण बाँकुरे शामिल रहे।
कोरोना के कारण इस दफा बेहद कम रही दर्शकों की मौजूदगी
300 से अधिक रणबांकुरों ने किया बग्वाल मेले में प्रतिभाग
भीमताल विधायक राम सिंह कैंड़ा ने भी बग्वाल खेली
बग्वाल में 300 लोगों ने हिस्सा लिया, जबकि कुछ दर्शक और कवरेज कर रहे पत्रकार भी शामिल रहे। प्रशासन ने कोरोना गाइडलाइन के तहत ही बग्वाल मेले का आयोजन किया गया था। बाहर के लोगों के लिए बग्वाल में प्रवेश पर रोक लगाई गई थी। सुबह छह बजे पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी के नेतृत्व में वाराही धाम में विशेष अनुष्ठान संपन्न हुआ। सुबह 11:02 बजे से शंखनाद के साथ चारों खामों ने फलों की बग्वाल शुरू कर दी थी। उसके कुछ ही सेकेंड बाद वहां पत्थरो, ईटों और डंडों की बग्वाल शुरू हो गई थी। सुबह सवा ग्यारह बजे धर्मानंद पुजारी ने शंखनाद और चंवर झुलाकर बग्वाल समापन की घोषणा की।
पत्थर और ईंट लगने से रणबाँकुरे सहित 77 लोग घायल हो गए। सभी घायलों का नजदीकी अस्पताल में उपचार कराया गया। पाटी अस्प्ताल के चिकित्साधीक्षक डॉ. आभाष सिंह ने बताया कि सभी घायलों की हालत खतरे से बाहर है। सभी का उपचार कर दिया गया है। प्रशासन की ओर से मौके पर एम्बुलेंस सहित पूरा स्टाफ तैनात किया गया था। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त किया गया। देवीधुरा होकर लंबी दूरी पर जाने वाले वाहनों को छूट रही। अन्य वाहनों की आवाजाही पर रोक रही। सीओ अशोक कुमार सिंह और तहसीलदार सचिन कुमार की मौजूदगी में हुई बैठक में मंदिर कमेटी के अध्यक्ष खीम सिंह लमगड़िया, चारों खामों के प्रतिनिधि, मंदिर समिति से जुड़े पदाधिकारी मौजूद थे। पाटी के थानेदार हरीश प्रसाद के नेतृत्व में सुरक्षा का बंदोबस्त रहा।
चार खाम के मुखियाओं ने मां बाराही और चौसठ योगिनियों की पूजा की। चारों खाम, सातों थोक के प्रतिनिधियों को मुख्य पुजारी धर्मानंद पुजारी ने आशीर्वाद दिया। भीमताल विधायक राम सिंह कैंड़ा ने भी बग्वाल खेली, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (रक्षाबंधन) को अपने-अपने घरों में मां बाराही का पूजन करने के निर्देश दिए। पूजन में गहरवाल ख़ाम के त्रिलोक सिंह बिष्ट, वालिग खाम के बद्री सिंह बिष्ट, लमगड़िया खाम के वीरेंद्र सिंह लमगड़िया, चम्याल खाम के गंगा सिंह चम्याल, पीठाचार्य कीर्तिबल्लभ जोशी, मंदिर कमेटी के अध्यक्ष खीम सिंह लमगड़िया शामिल हुए।
बगवाल को लेकर खास मान्यता है। कहा जाता है कि पूर्व में यहां नरबलि देने का रिवाज था, लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि के लिए बारी आई तो वंशनाश के डर से उसने मां बाराही की तपस्या की। देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने बगवाल की परंपरा शुरू की। तबसे ये परंपरा लगातार चल रही है।
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