✒️Dr. Sushil Upadhyay
आंकड़े साफ-साफ बता रहे हैं कि कोरोना संक्रमण के मामले में उत्तराखंड की स्थिति बेहद चिंताजनक है। भले ही प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से कर्फ्यू लगा हुआ है, लेकिन इसके बहुत सुखद परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं। मई के पहले सप्ताह में जिस तरह से संक्रमितों और मृतकों की संख्या बढ़ी है, उससे लग रहा था की सरकार सम्भवतः लॉकडाउन का निर्णय लेगी, लेकिन अभी कर्फ्यू को 10 मई तक बढ़ाने का फैसला किया गया।
कुछ पैमाने साफ-साफ बता रहे हैं उत्तराखंड की स्थिति गम्भीर है। इस वक्त देश भर में लगभग ढाई सौ जिले ऐसे हैं, जहां संक्रमण का प्रतिशत 10 से अधिक है। यानी राष्ट्रीय स्तर पर लगभग एक तिहाई जिले गंभीर संक्रमण की स्थिति में है, जबकि उत्तराखंड में 13 में से 12 जिलों में संक्रमण की दर 10 फीसद से ज्यादा है। प्रदेश के आधे जिलों में यह दर 20 फीसद से अधिक है। इस पैमाने पर केवल हरिद्वार जिला अपवाद बना हुआ है, जहां संक्रमण की दर 5 प्रतिशत बनी हुई है।
स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से बात करके स्थिति की गम्भीरता को समझा और हर सम्भव मदद का भरोसा दिलाया है। विगत दिनों एक बैठक में प्रधानमंत्री खुद कह चुके हैं कि जिन जिलों में 10 फीसद से अधिक संक्रमण दर है, वहां पूर्ण लॉकडाउन पर विचार किया जाना चाहिए। इस आधार पर उत्तराखंड को तत्काल पूर्ण लॉकडाउन की आवश्यकता है। हालांकि पूर्ण लॉकडाउन के साथ कई तरह की चुनौतियां और खतरे जुड़े हुए हैं, लेकिन जब जिंदगी पर बन आई हो तब कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
विगत एक सप्ताह के आंकड़ों को देखें तो साफ पता लग रहा है उत्तराखंड में राष्ट्रीय औसत की तुलना में दोगुने से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। देश की कुल आबादी में उत्तराखंड की हिस्सेदारी एक फीसद से भी कम है, जबकि देश में संक्रमण के कुल मामलों में उत्तराखंड का हिस्सा 2 फीसद से भी ज्यादा बनाया हुआ है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि विगत एक सप्ताह के दौरान करीब 700 लोगों की मौत हुई है। मौतों का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत की तुलना में ढाई गुना से भी अधिक है। यही स्थिति कुल सक्रिय मरीजों को लेकर भी बनी हुई है। मई के पहले सप्ताह तक उत्तराखंड में सक्रिय मरीजों की संख्या 56 हजार से ऊपर पहुंच गई है। उत्तराखंड की आबादी के लिहाज से यह संख्या भी राष्ट्रीय औसत की तुलना में दोगुनी है।
इस वक्त कोई एक भी पैमाना ऐसा नहीं है जहां उत्तराखंड राष्ट्रीय औसत की तुलना में 2 से 3 गुना खतरनाक स्थिति पर ना हो। उत्तराखंड के आसपास के किसी भी राज्य में इतनी गंभीर स्थिति नहीं है। उत्तर प्रदेश की आबादी उत्तराखंड से 20 गुना अधिक है। यदि उत्तराखंड के आंकड़ों को 20 से गुना कर दें तो ये बहुत भयावह होकर सामने खड़े होंगे। उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों को देखें तो अप्रैल महीने में मरने वालों की संख्या हर रोज चिंताजनक ढंग से बढ़ती रही है। इस एक महीने के दौरान मरने वालों की संख्या 20 गुना तक पहुंच गई। यानी महीने के शुरू में प्रतिदिन 5 या 6 लोग मृत्यु का शिकार हो रहे थे, जबकि महीने के आखिर तक इस संख्या ने रोजाना 100 का आंकड़ा पार कर लिया। यह इस छोटे राज्य के लिए डरावनी स्थिति है।
इस एक महीने की अवधि में प्रदेश में कोरोना के संक्रमितों की संख्या 7 गुना तक बढ़ गई है। वास्तव में, ये तमाम आंकड़े हालात बदतर होने की तरफ इशारा कर रहे हैं। सरकार की तरफ से लगातार घोषणाएं हो रही हैं कि प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं, विशेष रूप से कोरोना से बचाव की सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, लेकिन जिस संख्या में मरीज सामने आ रहे हैं, उस संख्या की दृष्टि से हरेक विस्तार छोटा साबित हो रहा है। अब सवाल यह है कि ऐसे में क्या किया जाना चाहिए ताकि कोरोना के फैलाव को नियंत्रित किया जा सके ?
प्रदेश में न केवल विपक्ष द्वारा, बल्कि सत्ता पक्ष के मंत्रियों और विधायकों द्वारा भी यह मांग लगातार उठाई जा रही है कि अब पूर्ण लॉकडाउन लगाया जाना चाहिए और सभी प्रकार की मेडिकल सुविधाओं के बीच व्यापक समन्वय बनाया जाना चाहिए। गौरतलब है कि दक्षिण भारत के बाद उत्तराखंड में मेडिकल की सर्वाधिक सीटें हैं। केंद्र सरकार भी यह सुझाव दे रही है कि विभिन्न मेडिकल उपाधियों में अंतिम वर्ष में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को अस्पतालों में ड्यूटी के लिए भेजा जाना चाहिए। इससे मरीजों को ज्यादा संख्या में डॉक्टर उपलब्ध हो सकेंगे। लेकिन अभी प्रदेश में यह निर्णय लागू नहीं हुआ है।
एक और उल्लेखनीय तथ्य यह है कि उत्तराखंड में सेना का काफी बड़ा ढांचा मौजूद है। यहां आधा दर्जन से अधिक कैंट एरिया और मिलिट्री अस्पताल हैं। इन सुविधाओं का उपयोग भी आम लोगों के लिए किया जाना चाहिए। इस बारे में घोषणा तो हुई है कि मिलिट्री अस्पतालों में भी आम लोगों का इलाज किया जाएगा, लेकिन वास्तव में ऐसा हो नहीं रहा है। उत्तराखंड में सेना की मेडिकल कोर को भी मैदान में उतारे जाने की आवश्यकता है। चूंकि मेडिकल कोर के पास आपात स्थितियों से निपटने का बड़ा अनुभव है। ऐसे में मेडिकल कोर और स्वास्थ्य विभाग को मिलकर सघन प्रयासों की आवश्यकता है। फिलहाल, यह कड़वा सच है कि प्रदेश में कोरोना से मुकाबले के मामले में विभिन्न स्तरों पर समन्वय का साफ अभाव दिख रहा है। और लोगों को अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।(लेखक : Principal, CLM (PG) College, Haridwar
Deputy Director, Uttarakhand Hindi Academy, Dehradun)
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