✒️डाॅ0 वीरेन्द्र बर्त्वाल
देेहरादून, साहित्य मानवीय जीवन का चित्र होता है। वह संवेदनाओं का पुंज होता है। वह समाज का दर्पण होता है। साहित्य हमारी अनुभूतियों की तीव्रता बढ़ाता है। वह समस्याओं को प्रस्तुत कर उनके निराकरण में योगदान देता है। साहित्य सत्य, शिव और सुंदर होता है। डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक की कविताएं, कहानियां, उपन्यास आदि साहित्य की इन कसौटियों पर खरी हैं। साहित्यकार ने जिन परिस्थितियों को भोगा, उन्हें शब्दों और पात्रों के माध्यम से समाज के सामने पूरी निष्ठा के साथ रख दिया। इसलिए उनकी रचनाएं बहुत पढ़ी जा रही हैं और लोकप्रिय हो रही हैं। भारत ही नहीं, विदेश में भी उनके साहित्य का परचम लहराता है। इसीलिए सात समुद्र पार की संस्था हिन्दी राइटर्स गिल्ड उन्हें ’साहित्य गौरव सम्मान-2021’ से नवाजती है।
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़कर आंखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान।
दरअसल जब साहित्यकार गहन भावों में डूबकर आपबीती को सुंदर शब्दों में व्यक्त करता है तो वह साहित्य हाथोंहाथ लिया जाता है, क्योंकि उसमें मौलिकता और स्वाभाविकता होती है। डाॅ0 निशंक के साहित्य में यही है।
तनाव-अभावों के बीच पथरीली पगडंडियां नापकर जीवन पथ पर आगे बढ़ना कठिन तो है, परंतु असंभव नहीं। विपरीत हालात हमें कष्ट तो देते हैं, लेकिन बहुत कुछ सिखाते भी हैं। संवेदनशील व्यक्ति इन कठिन परिस्थितियों में भोगे हुए क्षणों को दूसरे रूपों में अभिव्यक्त करता है। वह समाज को एक संदेश और सीख देता है। इससे उसे बड़ा संतोष मिलता है। डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक के साहित्य संसार का यही मूल है। विदेश की धरती से साहित्य गौरव सम्मान से नवाजे जाने का मतलब उनकी रचनाधर्मिता उच्च कोटि की है।
डाॅ0 निशंक ने 75 से अधिक पुस्तकों के रचना कर हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं मंे अपनी प्रतिभा सिद्ध की है। उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल के पिनानी गांव में बहुत निर्धन परिवार में हुआ था। पहाड़ के जीवन की पहाड़ जैसी समस्याओं को झेलते हुए वे अंदर से बहुत मजबूत हो गए। बचपन में ही कठिन हालात से लड़ने का सामर्थ्य पैदा हो गया। उन्होंने विवशताओं और विडम्बनाओं सामना किया और संघर्षों पर विजय प्राप्त करते गए। तीव्र जिजीविषा, इच्छाशक्ति, ललक, विद्वता और देशप्रेम की गहन भावना ने उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्रदान की।
वे सफल शिक्षक, पत्रकार, सफल राजनेता और ख्यात साहित्यकार बने। उनका काव्य और गद्य जीवनमूल्यों की आधारशिला पर खड़ा है, जिसमें मानवता के विभिन्न रंग हैं। इसीलिए डाॅ0 निशंक लिखते हैं-’मेरी कविताएं बारूद के ढेर पर खड़े आदमी को दानव से मानव बनाएंगी।’ इसके अलावा डाॅ0 निशंक के संपूर्ण सहित्य में प्रेम, प्रकृति, सौन्दर्य, पर्यावरण, देश प्रेम भी दर्शनीय और प्रशंसनीय है। उनके पात्र हालात के मारे होते हैं, वे विवश हैं, लेकिन उनमें सकारात्मकता और जीवन की विषमताओं से लड़ने का जुनून है। उनकी कविता प्रेरणा देती है-’तुम शब्दों के पक्ष में आ जाओगे तो हर शब्द एक नया कल लाएगा।’ असीम संवदेनाओं से आच्छादित डाॅ0 निशंक के साहित्य में ’चरैवेति-चरैवेति’ का सूत्रवाक्य पाठकों में असीम उत्साह का संचार करता है। वे लिखते हैं-’अभी भी है जंग जारी, वेदना सोयी नहीं है।’
संस्कृत, गढ़वाली, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, मलयालम इत्यादि भाषाओं में अनूदित उनके साहित्य पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध हो चुके हैं, हो रहे हैं और पाठ्क्रमों में पढ़ाया जा रहा है। साहित्य सृजन में उत्कृष्टता के लिए अनेक देशों की संस्थाओं से अलंकृत डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक को इस बार कनाडा की संस्था हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने साहित्य गौरव सम्मान-2021 से नवाजा है। कनाडा में करीब 16 लाख भारतीयों में भारतीय संस्कृति के तत्वों को जीवित रखने और इन लोगों के बीच हिन्दी के प्रचार-प्रसार में जुटी यह संस्था हर साल हिन्दी के साहित्यकारों को सम्मान प्रदान करती है। इस बार कोविड-19 के कारण वर्चुअल रूप में आयोजित सम्मान समारोह में देश-दुनिया की साहित्य, खेल, फिल्म, संगीत इत्यादि विभिन्न हस्तियों की उपस्थिति में उत्तराखंड की राज्यपाल श्रीमती बेबीरानी मौर्य के हाथों डाॅ0 निशंक को यह पुरस्कार दिया गया। 55 से अधिक देशों के साहित्यकारों और साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति में हुए इस कार्यक्रम में डाॅ0 निशंक के साहित्य पर गहन विमर्श भी हुआ तथा हिन्दी राइटर्स गिल्ड की दो पुस्तकों (ई-संकलन)- ’संभावनाओं की धरती’ और ’सपनों का आकाश’ का विमोचन किया गया। इनमें एक गद्य और दूसरी पद्य संकलन है।
पुरस्कार ग्रहरण करने के बाद डाॅ0 निशंक ने इस पुरस्कार को हिन्दी के साहित्यकारों, हिन्दी के लिए कार्य कर रहे लोगों और हिन्दी प्रेमियों को समर्पित करते हुए हिन्दी के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए किए जाने वाले हिन्दी राइटर्स गिल्ड के कार्यों की सराहना की और उम्मीद जतायी कि यह संस्था एक दिन कनाडा में हिन्दी को शिखर पर ले जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल बताते हुए केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि अभी तक के आंकड़ों के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी बड़ी भाषा है, लेकिन जिस प्रकार हिन्दी का क्षेत्र बढ़ रहा है, उससे लगता है कि यह जल्द ही पूरे विश्व की नंबर एक भाषा बन जाएगी। उन्होंने कहा कि संस्कृत की सहोदरी भाषा हिन्दी समृद्ध है। इसमें दस लाख शब्दों की संपदा है। इसमें संवेदना, लालित्य और स्नेह है। यह संपूर्ण संसार की भाषाओं को अपनी बांहों में समेटकर चलने की विशेषता रखती है। भारत की नई शिक्षा नीति में हिन्दी को विशेष महत्त्व मिला है।
हंसराज काॅलेज की प्राचार्य डाॅ0 रमा ने डाॅ0 निशंक के साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डाॅ0 निशंक ने अपने साहित्य में मानवता को प्रमुख स्थान दिया है। उनकी रचनाओं में प्रेम, प्रकृति और सौंदर्य तो है, लेकिन अधिक महत्त्व मानवता को दिया गया है। वे आत्मा को संवारने की प्रेरणा देते हैं।
पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि निशंक संघर्षशील जीवन के पर्याय हैं। राजनीति में होते हुए कला को संजोए रखना बड़ी बात है और यह डाॅ0 निशंक बखूबी कर रहे हैं। राजनीति में रहकर रचनाधर्मिता कर रहे लोगों का हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपयुक्तता के साथ उल्लेख होना चाहिए। श्री जगूड़ी ने कहा कि दो नावों पर सवार होने के खतरे तो होते हैं, लेकिन डाॅ0 निशंक ने इन खतरों का सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त की है। वे जितने सफलत साहित्यकार हैं, उतने ही सफल राजनेता भी हैं।
प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो0 योगेंद्र नाथ शर्मा ’अरुण’ ने कहा कि डाॅ0 निशंक ने राजनीति में रहते हुए बड़ा साहित्यकार बनकर यह दिखाया है कि संवेदनाओं और परिश्रम के बूते कोई कार्य मुश्किल नहीं होता। डाॅ0 निशंक जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिए अपनी कहानियों और उपन्यासों के लिए पात्र ढूंढने की आवश्यकता नहीं पड़ती, उन्हें सड़कों, ढाबों और होटलों मंे अपनी रचनाओं के पात्र आसानी से मिल जाते हैं। प्रो0 ’अरुण’ के अनुसार साहित्य व्यक्ति को अमर बना देता है, जबकि राजनीति व्यक्ति को कालांतर में ’भूत’ बना देती है। इस बात को डाॅ0 निशंक भी स्वीकारते हैं, इसलिए उन्होंने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति मुझसे कहे कि राजनीति या साहित्य में क्या चुनोगे तो मैं निश्चित रूप से साहित्य का चयन करूंगा। प्रो0 ’अरुण’ ने कहा कि डाॅ0 निशंक के उपन्यास ’जिंदगी रुकती नहीं’ में मानवीय संवेदनाएं शिखर को स्पर्श करती हैं। केदारनाथ आपदा पर केंद्रित इस उपन्यास में त्रासदी और करुणा का अनुपम संयोग दृष्टिगोचर होता है।
केंद्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल, आगरा के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि डाॅ0 निशंक वर्षों से हिन्दी के प्रचार-प्रसार की लौ जलाए हुए हैं, यह उनके हिन्दी प्रेम का प्रमाण है। डाॅ0 निशंक साहित्य के गौरव हैं। कनाडा में भारत के उच्चायुक्त अजय विसारिया तथा काउंसलर अपूर्वा श्रीवास्तव ने डाॅ0 निशंक के रचनासंसार की सराहना की।
राज्यपाल श्रीमती बेबीरानी मौर्य ने कहा कि डाॅ0 निशंक न केवल प्रसिद्ध साहित्यकार हैं, बल्कि वे नई शिक्षा नीति पर क्रांति लेकर आए हैं। वे हमारी भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा के ध्वजवाहक के रूप में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 शैलजा सक्सेना और धन्यवाद ज्ञापन अमृता शर्मा ने किया। इस गरिमामय कार्यक्रम के साक्षी युगांडा, माॅरीशस, सिंगापुर,बहरीन, साउथ कोरिया, जापान पोलैंड कतर, अमेरिका, तंजानिया, थाईलैंड इत्यादि देशों के साहित्यप्रेमियों के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियां बनीं। डाॅ0 शैलजा सक्सेना के मधुर संचालन के सभी मुरीद हो गए। धन्यवाद ज्ञापन अमृता शर्मा ने किया।
ख्यातिलब्ध हस्तियां बनीं समारोह की साक्षी
ख्यातिलब्ध साहित्यकार डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक को साहित्य गौरव सम्मान-20121 दिए जाने के गरिमामय कार्यक्रम की साक्षी जानी-मानी हस्तियां बनीं। किसी साहित्यकार के सम्मान समारोह में इतनी जानी-मानी हस्तियों का जुड़ना बड़ी बात है। इनमें प्रमुख रूप से इसरो के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में आईआईटी परिषद के अध्यक्ष प्रो0 राधाकृष्णन, कनाडा में भारत के उच्चायुक्त अजय विसारिया, काउंसलर अपूर्वा श्रीवास्तव, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी, अनुपम खेर, पी0टी0 उषा, दीपा मलिक, मैरी काॅम, मालिनी अवस्थी, पर्वतारोही बछेंद्री पाल, प्रसून जोशी, आचार्य बालकृष्ण, नरेंद्र कोहली, श्यामसिंह शशि, ज्ञान चतुर्वेदी, पुष्पेश पंत, बृजेश शुक्ल, उषा किरण दास, रामबहादुर राय, प्रसिद्ध लोकगायक प्रीतम भरतवाण, पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट, डाॅ0 अनिल जोशी, मनोषी चटर्जी, सुमन घई, विजय विक्रांत, जापान के डाॅ0 तोमियो मिजोकामी तथा हिन्दी राइटर्स गिल्ड संस्था के पदाधिकारी शामिल रहे।
साहित्य का प्राण है संवेदना: निशंक
डाॅ0 निशंक कहते हैं कि संवेदना साहित्य का प्राण है। संवेदना हमें मनुष्य बनाती है, यदि हम संवेदनहीन हैं तो हममें प्राण होते हुए भी हम एक रोबोट या मशीन हैं। संवेदनहीन व्यक्ति दूसरे का हित कभी नहीं कर सकता है। किसी व्यक्ति को लेखक, कवि बनाने के पीछे संवेदना का ही हाथ होता है। यह कहना है प्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ0 रमेश पोखरिया निशंक का। डाॅ0 निशंक के अनुसार संवेदनशील व्यक्ति अपने अंदर की भावनाओं को श्ब्दों में पिरोकर प्रस्तुत करता है तो उसे असीम आनंद की अनुभूत होती है। साहित्यकार समाज का हित करते हुए अभिव्यक्ति के कारण स्वयं भी आनंदित होता है। साहित्य सृजना करना एक प्रकार से परोपकार यानी कल्याण का कार्य है, क्योंकि वह साहित्यकार समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास करता है। वह समाज की विद्रूपताओं को उघाड़कर चैराहे पर फेंक देता है। वह अवांछित बातों पर सवाल खड़े करता है और जो होना चाहिए, उसकी प्रेरणा देता है।
साहित्य सत्य, शिव और सुंदर तीनों है। इसलिए साहित्य का सर्जन करने वाला किसी तपस्वी और पवित्र आत्मा से कम नहीं होता। साहित्यकार के लिए जितनी संवेदनाओं की आवश्यकता है, उतनी ही शब्दों की भी। शब्दों में असीम शक्ति होती है। शब्दों ही विध्वंस कराते हैं और शब्द ही रचना भी कराते हैं। शब्द ब्रह्म होता है, वह कभी नष्ट नहीं होता। शब्दों की साधना करना अत्यंत पवित्र कार्य है। एक सफल साहित्यकार वही बन सकता है, जिसके मन में छटपटाहट हो। जिसे अपने इर्द-गिर्द की घटनाएं गहराई तक प्रभावित करती हों। वे घटनाएं आनंद देने वाली भी हो सकती हैं और मन को कचोटने वाली भी।
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