Saturday, April 27, 2024
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उत्तराखण्ड़ : भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दौरा, खोती जड़ों को वापस सींचने का प्रयास

✒️ जय प्रकाश पाण्डेय

ण्ड की गुनगुनाती धूप में जगह जगह लगे स्वागत के बड़े बड़े पोस्टर , संगठन के पदाधिकारियों से लेकर विधायकों, मंत्रियों से चर्चा कार्यक्रम और भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का उत्तराखंड दौरा एक मायने में एक मौका है खोती हुई जड़ों को वापस सींचने का ।

पहाड़ो से किये गए वादों को न पूरा किये जाने के कारणों को गिनाने का ,और धीमें धीमे से परिवर्तन की मांग कर रही असंतुष्ट जनता को संतुष्ट करने का ।

और शायद दिल्ली से कम दूरी और छोटे राज्य के कारण संभवतः भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी नड्डा का यह दौरा बना है । यह दौरा 2017 के उन दौरों की ही तरह ही जिसमें इस राज्य के सुदूरवर्ती जिलों तक भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज राजनेता शामिल हुए जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री एवं देश के रक्षा मंत्री शामिल रहे ।

2001 में अपने गठन से ही वादों के सहारे जी रहे उत्तरांचलवासी कभी उत्तराखंडी कहलाने तो कभी गैरसैंण ऐसे ही मुद्दों को अखबार की सुर्ख़ियों से लेकर विधानसभा में गूँजते देखते हैं और शायद यही कारण है कि मतदान का प्रतिशत इस राज्य में गिरता जा रहा है ।
ऐसे शीर्ष नेतृत्व के दौरे राज्य के लिए एक उपलब्धि तो होते ही हैं बशर्ते उनसे कुछ हासिल हो । ब्राह्मण,ठाकुर, भू माफियाओं और पूंजीपतियों के बीच झूलता उत्तराखंड का विकास केंद्रीय अध्यक्ष के दौरे से कितना प्रभवित होगा यह तो वक़्त ही बताएगा बहरहाल मुख्य विषय यह है कि उत्तराखंड को उत्तराखंड विशेषकर पहाड़ का उत्तराखंड दिखाने के कितने प्रयास किये जा रहे हैं । शायद ही देहरादून कभी पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर पाए ऐसे में देहरादून के निकटवर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय अध्यक्ष का यह भ्रमण पहाड़ को जानने की कवायद कम, गुनगुनाती धूप और पूंजीवादी लोगों से भेंट की तरफ ज्यादा आगे बढ़ रहा है ।
कहते है कि लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, उस घोड़े से पूछो जिसके मुँह में लगाम है ।

पहाड़ में भारतीय जनता पार्टी के लिए पैदा हो रहे असंतोष के लिए जरूरी है पहाड़ का रूख करने की वरना जिस तरह स्मार्ट सिटी से लेकर एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट एवं बड़े बड़े संस्थानों के सीएसआर फण्ड मात्र देहरादून, हरिद्वार में सिमटकर रह जाते हैं ऐसे में जरूरत है पहाड़ की दिक्कतों को समझने की, जानने की और जमीन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह कार्य करने की जिसने अपने तमाम सामजिक,आर्थिक,शैक्षिक प्रयासों से भारतीय जनता पार्टी के वेंटिलेटर का काम अभी किया है ।
कहते हैं पहाड़ के आदमी की रीढ़ की हड्डी सीधी होती है तो राजा ,रजवाड़ों ,नेताओं के सामने झुकने का अदब उसे नही आता लेकिन कार्य करने वालो को आंखों में बिठाकर रखता है यह पहाड़ी समाज ।
शायद यही कारण है 2017 में पिथौरागढ़ विधानसभा में स्वयं नरेंद्र मोदी जी ने आकर यहां एकत्र जनता के लिए अद्धभुत शब्द का इस्तेमाल किया । राजनाथ सिंह जी से लेकर प्रधानमंत्री जी का सानिध्य को प्राप्त इस विधानसभा में जो भी वादे किए गए वो सब वादे रहे ।एक फ्लाइट का सपना 1991 से यहां बेचा जा रहा है और वह बस चुनाव के दौर में चलती है । सरकारी बसें जो देहरादून में फ़ैल हो जाती हैं उनको इन सीमांत जिलों में भेज दिया जाता है । और कमोबेश यही स्थिति सभी पहाड़ी अवसंरचना वाले जिलो की है । 1970 के बाद शायद ही सरकारी विद्यालयों का जीर्णोद्धार हुआ हो । शायद ही जिला अस्पताल जिला अस्पताल के मानक पूरा कर पाए । मंत्री,संतरी तो बसे हैं दून और दिल्ली की वादियों में तो उनको कोई फर्क नही ऐसे में जनता से किये वादों को निभाने के लिए पार्टी के लिए सोचने वाले लोगों को पहाड़ को जानना जरूरी है और उसके लिए जनता के बीच जाना जरूरी है जो कि केवल देहरादून तक सीमित नही । जरुरी है कि पार्टी के बाहर के लोगों से भी जन संवाद कर समस्याओं को समझा जाये जो कि पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह की भी नीति रही है ।

सबसे बड़ी बात जेपी नड्डा जी के आगमन के बाद उनके साथ तस्वीरों की जो बाढ़ यहां के तथाकथित जान प्रतिनिधि अपने अपने सोशल पेज में लाये हैं ,ऐसे वो समस्याओं की बाढ़ केंद्रीय नेतृत्व के सामने रखते तो जरूर देवभूमि के वास्तविक हकदारों को फायदा मिलता ।

बहरहाल पार्टी के स्तर पर भी मुख्यमंत्री को तमाम कोशिशों के बाद भी समर्थन न देना, क्षमताओं को नजरअंदाज कर जी हजूरी करने वालों को पार्टी में पद देना, ऐसी राजनीति जिस तरह तेजी से पिछले एक दशक से उत्तराखंड में घर कर रही है ऐसे भी भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के इस दौरे से कुछ उम्मीद रखी जा सकती है ।
समझने वाली बात यह है कि राज्य सूची के विषयों पर जो भी काम हुए हैं वो जनता की नजरों में असंतोष ही भर रहे हैं । मुख्यमंत्री जी ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना शुरू की लेकिन उसके फायदे लेने के लिए यहाँ के बाशिंदे तड़प जा रहे हैं । विभागों की मनमानी और खासकर बैंको की किसी भी योजना को चलने में मुख्य अवरोध है ।
राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में बेहतरीन कार्य हुआ है लेकिन आज भी अधिकतर गांव सड़क के लिए तरस रहे हैं और वहीँ कहीं कहीं ऐसे विधायक हैं जिन्हीने शहर के बीच में मौजूद अपने घर तक अपने सफेद वाहन को निकलने के लिए लाखों ख़र्च कर डाले हैं । स्वास्थ्य सेवाओं की यह हालत है कि गाय,कुत्तों से घिरे प्रसव केंद्रों में उत्तराखंड का भविष्य जन्म लेता है । मेडिकल सेंटर और दवाइयों के धंधे अपने पूँजीवादी नकाब के साथ चरम पर हैं । गंगा, यमुना से सराबोर यह राज्य अपने लोगों के बीच जल की आपुर्ति नही कर पा रहा । शायद ही सीवर की समस्या को कोई भी जिला अभी तक सुलझा पाया हो । गुलदारों के आतंक को खत्म करने का कोई तरीका हम नहीं निकाल पाये हैं | गांवों में राशन वितरण व्यवस्था चरमराई है | जंगली सुवरों और बंदरों से निपटान की कोई व्यवस्था नहीं है | पंजाब से चलकर स्मैक का धंधा पहाड़ों में घर कर रहा है | पहाड़ के मूल नागरिक हासिए में खड़े हैं और प्रवासियों ने राजनीति, अकादमिक, प्रशासनिक, व्यापारिक सभी जगह कब्जा कर लिया है |
दरसल इस पहाड़ी राज्य की दिक्कत है कि यहां के जन प्रतिनधियों से लेकर पालिसी बनाने वालों तक में विजन की कमी है जो कि किसी भी जिले में जाने में साफ देखी जा सकती है ।
उम्मीद है राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व कभी, प्राचीन भारत के मंत्री, राजाओं से प्रेरणा लेकर बिना हल्ले गुल्ले के , बिना प्रचार प्रसार के चुपचाप क्षेत्रों में जाये तब शायद वो समस्याओं को समझ पाएंगे और अपने संगठन को सशक्त कर पाएंगे वरना 4 दिन के प्रवास कार्यक्रमों में तो महज चाटुकारिता और वाह वाही का काम और आंखों को पसंद आने वाली चीजों की नुमाइशें ही होती हैं फिर चाहे वो बड़े बड़े पोस्टर हों या फिर पर्चियों से सदस्यता बनाकर सत्ता के गलियारों में अपने अपने लोगों के लिए टिकट की दावेदारी हो ।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं किरोड़ीमल महाविद्यालय (दिल्ली विश्विद्यालय) के पूर्व महासचिव रह चुके हैं )

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