Monday, February 3, 2025
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उत्तराखण्ड़ लोक-भाषा साहित्य मंच ने मनायी लोक गायक स्व. जीत सिंह नेगी की जयंती

“वर्ष 2027 से जीत सिंह नेगी लोक संस्कृति कला सम्मान की होगी शुरुआत : दिनेश ध्यानी”

नई दिल्ली, उत्तराखण्ड़ के सुप्रसिद्ध लोक गायक, गीतकार, निदेशक व नाटककार स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी की जयंती पर उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली द्वारा बसंत पंचमी पर डीपीएमआई सभागार दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में स्वर्गीय नेगी जी को याद किया गया।
इस अवसर पर गढ़वाली कुमाऊनी, जौनसारी भाषा अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष श्री मनबर सिंह रावत, उत्तराखण्ड़ लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती, साहित्यकार व चिट्ठी पत्री का संपादक मदन मोहन डुकलाण, गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष उपन्यासकार रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस, युवा कवि आशीष सुन्दरियाल, स्वर्गीय जीत सिंह नेगी की सुपुत्री श्रीमती मधु नेगी, पौत्री सुश्री ऋतिका नेगी, संगीतकार व गायक कृपाल सिंह रावत, श्रीमती मनोरमा तिवारी भट्ट, सर्वेश बिष्ट, कुमारी पलछिन रावत आदि लोगों ने स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी को संस्मरणों व उनके गीतों को गाकर उन्हें याद किया। इन सभी मेहमानों को उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा अंगवस्त्र, पुष्पमाला व टोपी सहित पुस्तक भेंट कर सम्मानित किया गया।
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने बताया कि वैसे तो कई दस्तावेजों में स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी की जयंती 2 फरवरी 1925 लिखी है पर कुछ में 1927 लिखी है। ये आयोजन स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी की शताब्दी जयंती की शुरुआत है। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि वर्ष 2027 में देहरादून में एक विशाल आयोजन किया जाएगा और उसी वर्ष से स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी के नाम पर मंच लोक संस्कृति कला सम्मान की भी शुरूआत होगी। ध्यानी जी ने कहा कि स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी की जीवनी उत्तराखण्ड के स्कूलों में पढ़ाई जाय इसके लिए हम उत्तराखण्ड सरकार से बात करेंगे।
उत्तराखण्ड़ लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संरक्षक डॉ. विनोद बछेती जी ने उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच के माध्यम से स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी को याद करने के लिए आयोजित इस आयोजन को ऐतिहासिक पहल बताते हुए कहा कि हम लोगों को स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी के गीतों व उनके कामों को नई पीढ़ी को सम्प्रेषित करने पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि जब देश आजाद भी नहीं हुआ था उस जमाने में नेगी जी ने गढ़वाळि गीत, नाटकों को गांवों और शहरों से लेकर देश, विदेश तक मंचों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया। आदरणीय जीत सिंह नेगी जी ने आजादी से पूर्व लगभग सन् 1944 से देश के बाहर वर्तमान म्यांमार (वर्मा/रंगून ) से ग्रामोफोन में गीत रिकार्ड करके गढ़वाली गीतों को नया आयाम दिया। आपने आजीवन अपनी संस्कृति और सरोकारों के प्रति अद्वितीय योगदान दिया।
गढ़वाली-कुमाउनी -जौनसारी अकादमी का पूर्व उपाध्यक्ष श्री मनबर सिंह रावत ने कहा कि जिस काम का बेड़ा सांस्कृतिक संगठनो को उठाना चाहिए था उसे उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच लगातार भाषाई सरोकारों व संस्कृति कर्मियों को याद कर उठा रहा है। बरिष्ठ उपन्यासकार गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष श्री रमेश चन्द्र घिल्डियाल सरस ने स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी को याद करते हुए कहा कि वे लोक के पहले गीतकार, लोकगायक, नाटककार, फिल्म निर्देशक थे जो बिलक्षण प्रतिभा के धनि थे।
वहीं चिट्ठीपत्री के सम्पादक बरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलाण ने कहा कि ये हमारा सौभाग्य है कि हमने सन 80 के दशक में नेगी जी के साथ मंच सांझा किया। हमारे लोक को जीत सिंह नेगी जी न भौत कुछ दिया। अब समय की मांग है कि हमारी नई पीढ़ी को स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी के गीतों को समझना चाहिए और उनकी लोक संस्कृति विरासत पर शोध करने चाहिए।
युवा कवि आशीष सुन्दरियाल ने कहा स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी के गीत, नाटक हमको उस समय की सामाजिक परिस्थिति व परिवेश को समझने का मौका देते हैं। स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी की सुपुत्री श्रीमती मधु नेगी ने कहा कि हमने संगीत व नाटकों की पहली शिक्षा अपने पिताजी से ली, हमें उनपर गर्व है। नेगी जी की पोती फिल्म मेकर, लेखिका श्रीमती ऋतु नेगी ने अपने अपने दादाजी की जयंती पर इतने विराट आयोजन करने लिए उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी जी का अहसान मानते हुए कहा कि हम उम्मीद करते है कि ऐसे आयोजन होने से नई पीढ़ी को अपने पुरखों को समझने में मदद मिलेगी।
वरिष्ठ रंगकर्मी साहित्यकार श्री दर्शन सिंह रावत ने स्वर्गीय जीत सिंह नेगी के जीवन परिचय में बताया कि नेगी जी का जन्म 2 फरवरी 1925 पौड़ी गढ़वाल के पैडलस्यूं के अयाल गांव के सुल्तान सिंह नेगी जी व रूपदेयी नेगी जी के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पौडी गढ़वाल (भारत), मेम्यो (वर्तमान, म्यांमार) अर लाहौर (पाकिस्तान) जैसे अलग-अलग जगहों पर हुई क्योंकि उनके पिताजी फौज में कार्यरत थे।
स्वर्गीय जीत सिंह नेगी ने अपने गीत-संगीत की शुरुआत 1940 के दशक के लगभग की । नेगी ऐसे पहले गढ़वाली गायक थे जिनके छह गढ़वाली लोक गीतों का संकलन 1949 में बॉम्बे की यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी द्वारा ग्रामोफोन पे रिकॉर्ड हुए थे। जीत सिंह नेगी जी 1940 के दशक में गढ़वाली भाषा और भावनाओं को आवाज देने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने नेशनल ग्रामोफोन कंपनी, मुंबई में डिप्टी म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में भी काम किया ।
जीत सिंह नेगी कु ‘शाबासी मेरो मोती ढांगा’ का चीनी प्रतिनिधिमंडल ने कानपुर में न केवल रिकॉर्ड किया बल्कि रेडियो पीकिंग में उसका प्रसारण भी किया। स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी ऐसे पहले गढ़वाली लोकगायक थे जिनका गाना पहली बार ऑल इंडिया रेडियो से 1950 के दशक में प्रसारित हुआ तो उत्तराखण्ड से लेकर देश के महानगरों तक प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। ‘तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा-घसियारी का भेष मां-खुद मा तेरी सड़क्यां-सड़क्यों रूणूं छौं परदेश मा…।

श्री रावत जी ने बताया कि स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी के नाटक भारी भूल का मंचन पहली बार 1952 में गढ़वाल भ्रातृ मंडल के कार्यक्रम में दामोदर हॉल, मुंबई में हुआ। जीत सिंह नेगी ने भारी भूल की संकल्पना, लेखन, निर्देशन व मंच संचालन किया था। उनके द्वारा रचित मलेथा की कूल वह ऐतिहासिक नाटक था जो गढ़वाली साम्राज्य के सेनाध्यक्ष, तिब्बत विजेता योद्धा अर बहादुर भड़ गजेंद्र सिंह भंडारी के पिता माधो सिंह द्वारा निर्मित मलेथा नहर पर आधारित है। वहीं जीतू बगड्वाल, गढ़वाल की लोककथाओं में प्रसिद्ध है।
पर्वतीय मंच दिल्ली ने 1956 में जीत सिंह नेगी द्वारा परिकल्पित व रचित हिंदी नाटक रामी बौराणी का मंचन किया था। टैगोर शताब्दी वर्ष के अवसर पर, रामी गढ़वाली संगीत नाटक (गीत नाटिका) का मंचन पहली बार 1961 में नरेंद्र नगर में हुआ था। राजू पोस्टमैन यह एक धाबड़ी गढ़वाली नाटक है। इसके संवाद हिंदी व गढ़वाली मिश्रित है। धाबड़ी नाटक का मंचन सबसे पहले राजू पोस्टमैन गढ़वाल सभा चंडीगढ़ न किया। इन सब नाटकों का मंचन दर्जनों बार देश के विभिन्न छेत्रों में हुआ।
लोक के ऐसे युगपुरुष स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी जो लोक प्रिय गीतकार, गायक, संगीतकार, नाटककार थे का निधन 21 जून, 2020 देहरादून, धरमपुर में उनके निवास पर हुआ। उनके जाते ही लोक विधाओं के एक युग का अंत हो गया लेकिन उनके गीत, नाटक व लोक की बिरासत सदियों तलक जिंदा रहेगी।
अंत में श्री जयपाल सिंह रावत छिप्वडु दा ने अभी उपस्थिति लोगों का धन्यवाद किया, कार्यक्रम का संचालन श्री दिनेश ध्यानी व श्री बृजमोहन वेदवाल ने मिलकर किया।

कार्यक्रम यह लोग थे मौजूद :

इस आयोजन में अनेकों साहित्यकार, रंगकर्मी व समाज के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। जिनमें मुख्य जबर सिंह कैंतुरा, चन्दन प्रेमी, पयाश पोखड़ा, डॉ. सतीश कलेश्वरी, गणेशपाल सिंह, सुरेदरपाल आर्य, प्रदीप सिंह रावत खुदेड़, अनूप रावत, लोक गायक भुवन रावत, मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट भास्करानंद कुकरेती, राजेश कंडारी, रमेश बौड़ाई, सुश्री शांति रावत,जयपाल सिंह रावत छिप्वडु दा, डाक्टर कुसुम नौटियाल, शूरवीर बड़थ्वाल, अनिल कुमार पंत, रमेश हितैषी, युगराज सिंह रावत, ब्योमेश जुगरान, हरि सेमवाल, श्रीमती निर्मला नेगी,उमेश बन्दूणी, शशि बडोला, नीरज बवाड़ी,जे सी नैथानी, वीरेन्द्र जुयाल, अजय कपिल, श्रीमती लक्ष्मी रावत कपिल, सन्तोष कुमार, श्रीमती गीता नेगी , राकेश गौड़, जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, रोशन लाल, कृपाल सिंह रावत, श्रीमती ममता रावत मन्दाकिनी, श्रीमती रेनू उनियाल, संजय उनियाल, सुश्री मीना चौहान , श्रीमती संगीता भट्ट, सुभाष कुकरेती, वीरेन्द्र सिंह रावत, श्रीमती सुनीता ध्यानी, अनिल रतूड़ी, श्रीमती विजयलक्ष्मी नौटियाल, प्रकाश चन्द्र मिश्रा, श्रीमती नीलम मिश्रा, सन्तोष गौड़, बृजपाल रावत, सुभाष चन्द्र नौटियाल, बृजमोहन वेदवाल समेत, नरेन्द्र अजनबी, नितीश कुमार, के अलावा कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

 

तालाबों एवं जोहड़ को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए डीएम को सौपा ज्ञापन

देहरादून, जल संकट की चुनौती के समाधान के लिए हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी वर्ष 2025 को जल वर्ष के रूप में मना रहा हैँ जिसके लिये संस्था ने वर्ष भर विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित करने जा रही हैँ, जिसमें तालाबों, झीलों, प्रकृतिक जल स्रोतो को अतिक्रमण से मुक्त करवाने के लिए सरकार एवं समाज से आग्रह किया जा रहा हैं, इसी क्रम में सोमवार को जिलाधिकारी देहरादून को पत्र सौपा गया, साथ ही राजस्व के रिकार्ड में दर्ज 49 तालाब जोहड़ की सूची भी सौपी गयी
जल संरक्षण के ब्रांड एम्बेसडर द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कहा की पानी को बचाने के लिए कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता है, मानवीय अतिक्रमण के अलावा सीमेंट से भी प्राकृतिक जल स्रोत, तालाबों को मुक्त करना अतिआवश्यक है, इसके साथ ही सरकारी योजनाओं में प्राकृतिक जल स्रोतों, तालाबों, धारो, तालाबों, नोलो आदि पर सीमेंट का प्रयोग प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, सेमवाल का कहना था कि जल वर्ष 2025 को मनाने का उद्देश्य इन प्रयासों को राज्यव्यापी अभियान में बदलना है, जिससे हर नागरिक जल संरक्षण में अपना योगदान दे सके। उन्होंने आह्वान किया कि जीवन रेखा बचाने की पहल से जुड़े और इस अभिय को सफल बनाने में अपनी सहभागिता निभायें l

 

दुकान में ही हिस्ट्रीशीटर ने खुद को गोली से उड़ाया

 

हरिद्वार, जनपद के रुड़की क्षेत्र के झबरेडी कला गांव में एक हिस्ट्रीशीटर ने अपनी कनपटी पर तमंचा लगा कर खुद को गोली से उड़ा दिया। उसकी मौके पर ही मौत हो गई। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है मामले की जांच की जा रही है।
आपको बता दें कि रुड़की के झबरेड़ा थाना क्षेत्र के झबरेडी कलां गांव निवासी योगेश हिस्ट्रीशीटर है। बताया गया है कि योगेश की घर के बाहर ही दुकान है। आज सुबह योगेश अपनी दुकान पर बैठा हुआ था, उसी समय योगेश ने अपनी कनपटी से तमंचा सटाकर खुद को गोली मार ली। गोली की आवाज सुनकर आसपास के लोग मौके पर पहुंचे।
जहां पर उन्हें योगेश का शव लहूलुहान हालत में मिला। वहीं मामले की जानकारी पाकर पुलिस मौके पर पहुची लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। इसके बाद पुलिस ने शव कब्जे में ले लिया और शव को पोस्टमार्टम के लिए रूड़की के सिविल अस्पताल भिजवा दिया।
फिलहाल पुलिस मामले की छानबीन में जुटी हुई है। सीओ मंगलौर विवेक कुमार ने बताया कि हिस्ट्रीशीटर ने खुद को गोली मारी है, जिससे उसकी मौत हो गई है। उन्होंने बताया कि आत्महत्या की वजह का पता लगाया जा रहा है। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।

 

यूसर्क द्वारा बसंत पंचमी पर्व पर चतुर्थ खेती-बाड़ी दिवस कार्यक्रम का किया आयोजनयूसर्क द्वारा बसंत पंचमी पर्व पर चतुर्थ खेती-बाड़ी दिवस कार्यक्रम का आयोजन  - https://uttarakhandaaj.com/

देहरादून, उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (यूसर्क) द्वारा आज दिनांक 3 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी पर्व को खेती-बाड़ी दिवस के रूप में अल्पाइन इंस्टीट्यूट के संयुक्त तथावधान में आयोजित किया गया ।
प्रोफेसर रावत ने अपने उद्बोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा वसंत पंचमी पर्व को खेती-बाड़ी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है । प्रोफेसर रावत ने कार्यक्रम में उपस्थित विद्यार्थियों को खेती-बाड़ी शब्द का अर्थ समझाते हुए कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है । हमारे देश की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का विशेष योगदान है । हमारे पूर्वजों ने कृषि के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने परंपरागत लोक विज्ञान और तकनीकियों से आगे बढ़ाया और आज कृषि के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकियों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ड्रोन तकनीकी का प्रयोग भी कृषि के क्षेत्र में हो रहा है । प्रोफेसर रावत ने कहा कि उत्तराखंड राज्य में जैविक कृषि के साथ-साथ मेडिसिनल एवं एरोमैटिक प्लांट्स के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं और हम इस दिशा में आगे बढ़ते हुए अपने राज्य और अपने देश को बहुत कुछ प्रदान कर सकते हैं । प्रोफेसर रावत ने सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स की चर्चा करते हुए कहा कि इन गोल्स का भी यही उद्देश्य है कि हम पर्यावरण फ्रेंडली उत्पादों का उपयोग बढ़ाएं, प्रकृति को कम से कम नुकसान पहुंचाएं, प्रकृति का संरक्षण करें और अपने देश को कृषि क्षेत्र में स्वदेशी तकनीकी को अपनाते हुए आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में अपना-अपना योगदान दें । उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित युवाओं से कहा की कृषि के क्षेत्र में कैरियर और रोजगार की व्यापक संभावनाएं हैं । हमें अपने गुरुजनों और विषय विशेषज्ञों से निरंतर ज्ञानार्जन करते हुए मार्गदर्शन लेते हुए आगे आगे बढ़ना है । इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों एवं विद्यार्थियों के द्वारा संस्थान में बीजारोपण एवं वृक्षारोपण कार्य भी किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में बोटैनिकल सर्वे आफ इंडिया (भारत सरकार) के सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर हरीश सिंह ने ”
Medicinal & Aromatic Plants: their uses, status and prospects of cultivation and conservation in Uttarakhand” विषय पर अपना मुख्य व्याख्यान दिया । डॉक्टर सिंह ने अपने व्याख्यान में उत्तराखंड राज्य में पाए जाने वाले औषधीय पौधों, उनकी उपयोगिता के साथ ही राज्य में पाए जाने वाले विभिन्न एरोमैटिक प्लांट्स, एसेंशियल ऑइल्स, उनके उपयोग तथा उत्तराखंड राज्य में इन पौधों के उत्पादन आदि को केंद्रित करते हुए अपना व्याख्यान दिया तथा विद्यार्थियों के प्रश्नों का समाधान भी प्रदान किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए यूसर्क के वैज्ञानिक डॉक्टर भवतोष शर्मा ने कहा कि हम सभी को अपनी प्रकृति संरक्षण के अनुरूप अपना कार्य व्यवहार करना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन डॉ निधि लोहानी ने किया।
इस अवसर पर संस्थान डीन डॉक्टर उत्तम कुमार, निदेशक श्री एस के चौहान, मैनेजिंग डायरेक्टर भावना सैनी, सुरभि धर कठैत, यूसर्क के वैज्ञानिक डॉक्टर भवतोष शर्मा,
डॉ निधि लोहानी सहित
संस्थान के 110 से अधिक छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों द्वारा प्रतिभा किया गया।

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