देहरादून, प्रदेश की धामी सरकार अब शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के अनुपालन में किसी भी तरह की लापरवाही को लेकर सख्त रुख अपनाने जा रही हैं। सूबे के विद्यालयी शिक्षा मंत्री ने साफ कर दिया है कि जो निजी स्कूल आरटीई के तहत छात्रों को प्रवेश नहीं दे रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उत्तराखंड के विद्यालयी शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने अपने शासकीय आवास पर विभागीय अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की, जिसमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के क्रियान्वयन की स्थिति पर चर्चा की गई। बैठक में मंत्री ने निर्देश दिए कि प्रदेश के सभी जिलों के मुख्य शिक्षा अधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में आरटीई के तहत हुए नामांकनों की विस्तृत रिपोर्ट शीघ्र महानिदेशालय को सौंपें।
डॉ. रावत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि राज्य के सभी सरकारी और निजी स्कूल आरटीई अधिनियम के तहत निर्धारित मानकों का पूरी तरह से पालन कर रहे हैं या नहीं। इसके लिए औचक निरीक्षण किए जाएंगे। यदि किसी भी स्कूल द्वारा आरटीई के प्रावधानों की अवहेलना पाई जाती है तो संबंधित स्कूल के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, इस लापरवाही के लिए संबंधित खंड शिक्षा अधिकारी और मुख्य शिक्षा अधिकारी को भी जवाबदेह ठहराया जाएगा। मंत्री ने स्पष्ट किया कि आरटीई के तहत 25 प्रतिशत सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूहों के बच्चों के लिए आरक्षित हैं और इन पर अनिवार्य रूप से नामांकन होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कई स्कूल प्रवेश के लिए अनुचित प्रक्रिया अपना रहे हैं, जैसे लिखित परीक्षा लेना, जो कि अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन है।
राज्य के विद्यालयी शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जो निजी स्कूल आरटीई के तहत निर्धन और वंचित वर्गों के बच्चों का नामांकन नहीं कर रहे हैं, उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा मंत्री डॉ. रावत ने दो टूक कहा कि जिन स्कूलों में RTE के तहत नामांकन नहीं हो रहा है, उन्हें नोटिस जारी कर उनकी अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। यह उनके संचालन पर सीधा प्रभाव डालेगा। जनपद (जिला) और ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों को इसकी निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है। ये अधिकारी सुनिश्चित करेंगे कि सभी मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय आरटीई अधिनियम के प्रावधानों का पालन करें। सरकार की इस सख्ती के बाद प्रदेशभर के निजी स्कूलों में हलचल तेज हो गई है। कई स्कूल अब अपने स्तर पर रिकॉर्ड और प्रवेश प्रक्रिया की समीक्षा कर रहे हैं ताकि वे नियमानुसार चल सकें और किसी प्रकार की कार्रवाई से बच सकें। सरकार यह भी सुनिश्चित कर रही है कि प्रवेश प्रक्रिया पारदर्शी हो और किसी भी बच्चे को केवल इस आधार पर वंचित न किया जाए कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है।
क्या है आरटीई कानून..?
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई), 2009 भारत सरकार द्वारा लागू किया गया एक कानून है, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है। इस अधिनियम के तहत देशभर के सभी निजी अनुदानित एवं गैर-अनुदानित स्कूलों को अपनी कुल प्रवेश क्षमता का कम से कम 25% हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस ) और वंचित समूहों के बच्चों के लिए आरक्षित करना होता है। इन बच्चों की शिक्षा का खर्च सरकार उठाती है। शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने स्पष्ट कहा है कि जो निजी स्कूल आरटीई के तहत बच्चों को प्रवेश नहीं दे रहे हैं, उनके खिलाफ एनओसी रद्द करने तक की कार्रवाई की जाएगी। जिला एवं ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे स्कूलों की जांच कर यह सुनिश्चित करें कि आरटीई का पालन हो रहा है। शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को चेतावनी दी है कि वे आरटीई के प्रावधानों का सख्ती से पालन करें, अन्यथा मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
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