देहरादून, यमुना घाटी के रवांई में 30 मई 1930 को हुए तिलाड़ी नरसंहार की बरसी पर भावभीनी श्रद्धाजंलि दी गई। वनाधिकार आंदोलन चला रहे कांग्रेसी नेता किशोर उपाध्याय के नेतृत्व में बेबीनार के जरिए वन हकूकों के लिए संघर्षरत किसानों के बर्बर नरसंहार के 92 वें शहादत दिवस पर वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित हुआ।
सभा का संचालन लेखक प्रेम बहुखंडी ने किया। श्रद्धांजलि सभा को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, नैनीताल से इतिहासकार डा. शेखर पाठक, पूर्व राज्यमंत्री सुरेन्द्र कुमार, इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी, टिहरी से शांतिप्रसाद भटट, पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा, कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह भण्डारी, सरदार अमरजीत सिंह, रमेश उनियाल, शांति रावत, प्रदीप गैरोला, कृष्णा बहुगुणा, परिणिता बडोनी, दिनेश सकलानी, अभिनव थापर, चकबंदी आंदोलन के कपिल डोभाल, नेमीचन्द सूर्यवंशी, अर्जुन डंगवाल, नवीन नेगी, संदीप बडोनी, राजेन्द्र सिंह रावत, रमेश बौडाई, भूपेन सिंह, जेपी मैठाणी, आरिफ खान, दिनेश जुयाल, मीनू जैन, त्रेपन भण्डारी, बिनोद कार्की समेत 60 से अधिक लोगों ने अपनी बात रखी। पूर्व सीएम हरीश रावत ने माना कि पहाडवासियों के वन से प्राचीन रिश्तों की पुर्नसमीक्षा करने का वक्त आ गया है।
किशोर उपाध्याय का कहना था कि वन कानूनों के जरिये जिस बेरुखी से लोगों के परम्परागत वन हक हकूक खत्म किये गये, उससे पहाडवासियों के नर्सैगिक जीवन पर बुरा असर पडा। कहा कि वनाधिकार आन्दोलन के बिन्दु सुखी उत्तराखंड के मंत्र हैं और एक न एक दिन सरकारों को उन्हें स्वीकार करना पड़ेगा। वनाधिकार आन्दोलन राज्य के निवासियों को गिरिजन-अरण्यजन घोषित करने, राज्य में 2006 के वनाधिकार क़ानून को लागू करने, राज्य के निवासियों को वनों पर उनके पुश्तैनी अधिकार व हक़-हकूक प्रदान करने के लिये चलाया जा रहा है। पहाड़वासियों को क्षतिपूर्ति के रूप में निशुल्क बिजली-पानी, प्रतिमाह एक रसोई गैस सिलेंडर देने, उच्च कोटि की शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं, जड़ी बूटियों पर स्थानीय समुदायों के अधिकारों व जंगली जानवरों से जन-धन हानि पर क्षतिपूर्ति और केन्द्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण देने जैसे विषयों को उठाया गया है।
उपाध्याय ने कहा कि कोरोना के इस संकटपूर्ण समय में सरकारें अगर इन मांगों को मानती हैं तो उत्तराखंड सबसे सुखी राज्य होगा। डा. शेखर पाठक व जयप्रकाश उत्तराखंडी ने उत्तराखंड के वन, प्रकृति और उसपर आधारित जनजीवन और औपनिवेशिक लूट के इतिहास और वर्तमान पर बात की। शांतिप्रसाद भटट ने आजादी के बाद आये वन कानूनों की विधिक बारीकियों पर चर्चा की। तिलाडी नरसंहार के 92 वें बलिदान दिवस पर शपथ ली गयी कि वनाधिकार आन्दोलन किशोर उपाध्याय के नेतृत्व में अलख जगाने का काम करता रहेगा। अपने अधिकारों के लिए संसद, विधानसभा व न्यायलय तक जायेगा।
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