” टिकट वितरण के से लेकर मतदान तक यह उप चुनाव पार्टी से ज्यादा प्रत्याशियों की छबि पर ज्यादा केन्द्रित देखने मिला ।केदारनाथ विधान सभा उप चुनाव इस बार दोनों राष्ट्रीय दलों के इर्द गिर्द ही सिमटता नजर आया। छैत्रीय दल उक्रांद व निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान जरूर दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच हार जीत के फैक्टर के रूप में देखे जा रहे हैं”।
(देवेंन्द्र चमोली)
रुद्रप्रयाग- भाजपा नीति केन्द्र व राज्य सरकार की प्रतिष्ठा से जुडी केदारनाथ विधान सभा उप चुनाव की कल मतगणना होनी है। आम जन की माने तो उत्तराखंड के इतिहास में ये पहला चुनाव होगा जहाँ सत्ता, संसाधन का जमकर प्रयोग हुआ। सरकार से आक्रोशित जनता का विपक्ष को भी भरपूर सहयोग मिला। स्थिति यह है कि मतदान के बाद भी तमाम राजनीतिक पंडित असमंजस में हैं व कुछ भी वोलने में असमर्थ दिख रहें हैं। इस बीच खास बात यह रही कि टिकट वितरण के से लेकर मतदान तक यह उप चुनाव पार्टी से ज्यादा प्रत्याशियों की छबि पर ज्यादा केन्द्रित देखने मिला । द्वि कोणीय दिखने वाला केदारनाथ विधान सभा उप चुनाव इस बार फिर दोनों राष्ट्रीय दलों के इर्द गिर्द ही नजर आ रहा है। छैत्रीय दल उक्रांद व निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान जरूर दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच हार जीत के फैक्टर के रूप में देखे जा रहे हैं।
20 नवम्बर को केदारनाथ विधान सभा उप चुनाव के लिये मतदान शान्ति पूर्वक संम्पन्न हो चुका है। अब सबकी निगाह कल होने वाले मतदान पर टिकी है। उप चुनाव का मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है। भले ही सत्ता पक्ष इस उप चुनाव को बडे मार्जिन से जीतने का दावा कर रहा है। लेकिन हकीकत इसके उलट थी, केदारनाथ यात्रा , वेरोजगारी सहित तमाम स्थानीय मुद्धो को लेकर जनता में भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रोश स्पष्ट था। विकल्प के तौर पर काँग्रैस को इसका फायदा मिलता दिखाई दिया। मतदान के बाद के रुझानों से चुनाव दोनो राष्ट्रीय पार्टियों के बीच ही सिमटता नजर आ रहा है। राजनीतिक विश्लेशक व जनता अब भाजपा व काँग्रेस के बीच काँटे की टक्कर मान रही है।
भाजपा की बात करें तो शुरुआती दौर में सरकार के खिलाफ जो आक्रोश देखने को मिल रहा था मतदान तिथि आते आते भाजपा इसे काफी हद तक दबाने मे कामयाब हुई। भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रोश का फायदा काँग्रेस को जरूर मिला लेकिन भाजपा के नाराज कैडर व मैनेजमेंट के सामने यह कितना कारगर साबित हुआ यह मतगणना के बाद ही स्पष्ट होगा। बहरहाल बद्रीनाथ, हरिद्वार व अयोध्या की हार के बाद धार्मिक रूप से पूरे देश में सत्तारुड़ पार्टी की प्रतिष्ठा से जुडा होने के कारण चर्चा का विषय बनी केदार नाथ विधान सभा सीट पर स्थानीय मुद्धे , सरकार का कामकाज के अलावा प्रत्याशियों के ब्यक्तित्व पर भी चर्चाओं मे रहा। एक ओर जनता भाजपा से असन्तुष्ट थी लेकिन भाजपा प्रत्याशी उनकी चाहत बनी रही। दूसरी ओर सरकार से आक्रोशित जनता विकल्प के रूप में एक जुट दिखी काँग्रेस के पक्ष में लामबंद तो हुयी पर काँग्रेस प्रत्याशी से खुश नहीं दिखी। इसके अलावा महिला मतदाताओं का विश्वास व काग्रेस के परम्परागत दलित मतदाओं मे भाजपा की बढ़ती पैठ से फिलहाल चुनाव भाजपा के लिये सकून भरा नजर आ रहा है।
द्धिपक्षीय दिखने वाला केदारनाथ विधान सभा उप चुनाव का नतीजा कल आ जायेगा लेकिन सत्ता पक्ष की प्रतिष्ठा से जुडा होने के कारण रानीतिक विश्लेषक इसे धामी सरकार सरकार के भविष्य व भाजपा संगठन की जनता में विश्वसनीयता से जोड़कर देख रहे है जबकि विपक्षी काँग्रेश के लिये इसे आने वाले 2027 चुनावों के सेमीफाइनल के रुप में देखा जा रहा है।
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