(चन्दन सिंह बिष्ट)
नैनीताल, उत्तराखंड की धरती पर ऋतु के अनुसार कई अनेक पर्व मनाए जाते हैं । ‘हरेला’ चैत्र मास में प्रथम दिन बोया जाता है तथा एकादशी को काटा जाता है । यह पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं वही पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हैं । श्रावण मास में सावन लगने से 11 दिन पहले असाड में बोया जाता है और 11 दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है इन्हीं खास पर्व में शामिल है है
‘हरेला’ जो उत्तराखंड में एक लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है हरेला शब्द का अर्थ है हरियाली यह पर्व वर्षों में तीन बार आता है पहला चैत के महीने दूसरा श्रावण में तथा तीसरा हरेला अश्विन मास में मनाया जाता है अश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता वह दशहरा के दिन काटा जाता है ।
उत्तराखंड के लोगों द्वारा श्रावण मास में पढ़ने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता है हरेला बोने से 11 दिन पहले 5या 7 तरह के अनाज के बीच एकत्रित किए जाते हैं उसके बाद 10वें दिन इनकी लोहे की आई से गुड़ाई की जाती है । वह 11 दिन हरेले को रीति रिवाज के साथ काटा जाता है । माना जाता है घर के बुजुर्ग सुबह पूजा पाठ करके हरेले को सबसे पहले देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है ।इसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला पूजा जाता है वह आशीर्वाद में यह कहा जाता है जी रया जागि रया यो दिन मास भेटनै रया हराया इसका मतलब है कि आप जीते जीते- जागते रहें हर दिन महीनों से भेंट करते रहें ।
यह आशीर्वाद हरेले के दिन परिवार के बुजुर्ग सदस्य परिवार के सदस्यों को हरेला पूजते समय देते हैं । फिर हरेले को सिर में रखते हैं जो उत्तराखंड को परंपरा आज भी कायम है हरेला उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है अश्विन महीने की नवरात्र में बोए जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है श्रावण मास में मनाया जाने वाला हरेला सामाजिक रूप में अपना विशेष महत्व रखता है जिस कारण यह त्यौहार अधिक धूमधाम से मनाया जाता है ।
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