’24 स्वर्ण, आठ रजत और तीन कांस्य पदकों पर लगा चुकी निशाना’
देहरादून, इधर कोरोना काल उधर सिस्टम की मार झेल रही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पदकों पर निशाना लगा चुकी दून की दिव्यांग शूटर दिलराज कौर आज जीवनयापन के लिए नमकीन और बिस्किट बेचने को मजबूर हैं। उनके नाम विभिन्न प्रतियोगिताओं में 24 स्वर्ण, आठ रजत और तीन कांस्य हैं। उन्होंने उत्तराखंड स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में 2016 से 2021 तक चार स्वर्ण पदक जीते। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी एक रजत पदक हासिल किया।
यह अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सोमवार को गांधी पार्क के बाहर दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करती दिखी। बकौल दिलराज, उन्होंने बीते 15-16 साल में निशानेबाजी में राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश और प्रदेश का मान बढ़ाया है। इसके बदले में सरकार उन्हें एक अदद नौकरी तक उपलब्ध नहीं करा पाई। अब वह नमकीन-बिस्किट की अस्थायी दुकान के सहारे खुद के पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही हैं,
दिलराज ने सिस्टम पर तंज कसते हुए कहा, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि आत्मनिर्भर बनो। मैं नमकीन-बिस्किट बेचकर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हूं। तीन-चार महीने से घर के आसपास अस्थायी दुकान लगा रही थी, मगर वहां ज्यादा बिक्री नहीं होती थी। किसी ने सुझाव दिया कि भीड़ वाले क्षेत्र में दुकान लगाओ तो गांधी पार्क के बाहर काम शुरू कर दिया।
दिलराज के पिता सरकारी कर्मचारी थे। वर्ष 2019 में उनका निधन हो गया। इसके बाद उनकी पेंशन और भाई तेजिंदर सिंह की प्राइवेट नौकरी से किसी तरह गुजर-बसर हो रहा था। इस वर्ष फरवरी में भाई का भी निधन हो गया। अब घर में दिलराज और उनकी मां ही रह गई हैं।
दिलराज की जो उपलब्धियां हैं, उनके अनुसार उन्हें खेल या दिव्यांग कोटे से नौकरी मिलनी मेंचाहिए थी। दिलराज बताती हैं कि इसके लिए उन्होंने हर स्तर पर गुहार लगाई। कई बार आवेदन भी किया, मगर हर बार निराशा ही हाथ लगी।
दिव्यांग शूटर को जीवन यापन के लिए नौकरी दें सरकार : उत्तरांचल पंजाबी महासभा
देहरादून, उत्तरांचल पंजाबी महासभा ने होनहार निशानेबाज बेटी दिल राज कौर जिसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय रजत और 24 राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने के बाद भी पहली दिव्यांग निशानेबाज के रूप में उत्तराखण्ड का नाम रोशन करते हुए भी हमें बड़ी दुख से कहना पड़ता है कि उस बच्ची की सरकार के द्वारा अनदेखी की जा रही है | जबकि हरियाणा, हिमाचल, पंजाब इत्यादि मे दिव्यांगो के लिए नौकरी का विशेष स्थान दिया जाता है। इस होनहार बच्ची को अपने जीवन निर्वाह करने के लिए इतना बड़ा संघर्ष करना पड़े की वह सड़क पर बैठकर छोटा छोटा सामान बेचकर अपना निर्वाह के लिए इस काम को करने के लिए मजबूर हुई |
उपमा के द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री से सारे दस्तावेज देने के बाद खेल सचिव के पास सारी फाइल भेजी गई परंतु इस जरूरतमंद को अनदेखा और इसकी फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया |
हमरा उपमा का पूरा परिवार इस बच्ची के साथ था है और रहेगा | हम सरकार से माँग करते हैं कि इस बच्ची को जल्द ही नौकरी की व्यवस्था की जाए जिसने पूरे उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया है।
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