Friday, April 26, 2024
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सर्वे भवन्तु सुखेन की भावना हमारे संस्कारों में रही है: प्रो0 त्रिपाठी

हरिद्वार, 3 जनवरी (कुल भूषण) उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय एवं मानव अधिकार संरक्षण समिति मुख्यालय हरिद्वार के संयुक्त तत्वाधान मे मानव अधिकारों के संरक्षण में संस्कारों की भूमिकाष् विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयीद्य सर्वप्रथम वेद विभाग के डॉ अरुण कुमार मिश्रा ने मंत्रोचारण से वेबिनार का शुभारंभ किया । न्यायमूर्ति यू0सी0 ध्यानी;सेवानिवृत्तिद्ध अध्यक्ष उत्तराखण्ड लोक सेवा अभिकरण ने मुख्य अतिथि बतौर कहा कि श्माता.पिता के संस्कार बच्चे को भविष्य का मार्ग दिखाते हैं माता पिता युवाओं को संस्कारों की शिक्षा देने वाले प्रथम गुरु होते है। संस्कार के बिना मर्यादा वाला जीवन नहीं बन सकता।

उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कहा कि मानव अधिकार की रक्षा हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। हमारी परम्पराओं में हमेशा व्यक्ति के जीवन निमित समताए समानता उसकी गरिमा के प्रति सम्मानए इसको स्वीकृति मिली हुई है। उन्होने कहा दृ ष्सर्वोभवन्तु सुखेनष् की भावना हमारे संस्कारों में रही है। मानव अधिकारों में आर्थिकए सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के समक्ष समानता का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार आदि नागरिक और राजनीतिक अधिकार भी सम्मिलित हैं।

मानव अधिकार संरक्षण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष इं0 मधुसूदन आर्य ने कहा कि मानवाधिकार का सम्बन्ध समस्त मानव जाति से है। जितना प्राचीन मानव हैए उतने ही पुरातन उसके अधिकार भी हैं। इन अधिकारों की चर्चा भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में प्रारम्भ से ही होती आई हैए भले ही वर्तमान रूप में मानवाधिकारों को स्वीकृति उतनी प्राचीन न हो किन्तु साहित्य तथा समाज में मनुष्यों के सदा से ही कुछ सर्वमान्य तथा कुछ सीमित स्थितियों में मान्य अधिकार रहे हैं।
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालयए हरिद्वार के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कहा कि कि मानव अधिकार और शिक्षा एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। मानव अधिकारों को समाज में स्थापित करने के लिए यह जरूरी है कि मानवीय गरिमा और प्रतिष्ठा के बारे में जन.जागरूकता लाई जाए।

मानव अधिकार संरक्षण समिति की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष डा0 सपना बंसलए दिल्ली विश्वविद्यालयए दिल्ली ने कहा कि मनुष्य के रूप में जन्म लेते ही हम सभी सार्वभौमिक मानव अधिकारों के स्वतः अधिकारी हो जाते हैं। यह एक ऐसा अधिकार हे जो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सम्मानजनक तरीके से सभी को मिलना चाहिये। मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं जिनसे मनुष्य को नस्लए जातिए राष्ट्रीयताए धर्मए लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।

संगोष्ठी का संचालन डा0 लक्ष्मी नारायण जोशी ने किया। वेबिनार में लायन्स एस आर गुप्ताए राजीव रायए अनिल कंसल, कमला जोशी, नीलम रावत, शोभा शर्मा, हेमंत सिंह नेगी, रेखा नेगी, नेहा, ज्योति कल्पना शर्मा, निवेदिता सिंह, पीयूष गोयलए समीक्षा अग्रवाल,सतीश शेखर, शैली शर्मा, स्वीटि चौहान, बन्दना मिश्रा, विनोद बहुगुणा, रचना शास्त्री, यज्ञ शर्मा, सुभद्रा देवी, अरुण कुमार मिश्रा, अनु चौधरी,अनुपम कोठारी, राकेश कुमार गर्ग, पिंकी रावतए तरुण कुमार पांडे, प्रेमा श्रीवास्तवए डॉ अभिजीत, मोनु मीना इत्यादि उपस्थित रहे ।

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