उत्तराखंड के गांवों से पलायन कैसे रोके, एक बड़ा सवाल.. ?

(गुड्डी नेगी, पहाड़ी उत्पादन स्टोर)

चंडीगढ़ में फेसबुक चला कर उत्तराखंड का विकास करना या देहरादून में बिस्तर मे पड़े- पड़े सरकार से पूछना कि पहाड़ में क्या विकास हुआ है ।

हम हिमाचल से कंपेर करते है, पर कभी ये नहीं सोचते कि, हिमाचल के लोगों का अपने प्रदेश के विकास में कितना अधिक योगदान है l हिमाचल के गाँव में उत्तराखंड से कम सड़के पहुंची है, उत्तराखंड़ से कम जगह पानी है, उत्तराखंड़ से जादा जंगली जानवर की दहशत है, परंतु वहाँ के लोग इस बहाने कभी अपना पहाड़ छोड़कर शहर नही आये, वहीं रहे और टूरिज्म, खेती , फलों और जूस की ऐसी पैदावार की, उन्हें अब कहीं शहर जाने की जरूरत नहीं होती l सरकार भी आपकी मदद तभी करती है, जब आप खुद की करने को तैयार रहते है, हमारे पहाड़ में हर कोई कहता है पलायन रोको , पर वो रुकेगा कैसे, वो आप खुद ही रोक सकते हो ।

हम खुद की सारी जिंदगी पहाड़ में रहकर , फौज में भर्ती होते है या हम खुद ही सारी जिंदगी पहाड़ में रहकर शिक्षक बन जाते है, और फिर पहाड़ छोड़कर कोटद्वार, रामनगर, देहरादून, ऋषिकेश बस जाते है l

चलिए मान लेते है सबको अधिकार है अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का, शहरों में जाने का, पर दिक्कत तब आती है,जब हम रिटायर होने के बाद भी पहाड़ों में जाना नही चाहते l

क्या हमने खुद से ये सवाल किया कि देहरादून जैसे शहरों में सबसे जादा प्लॉट, घर बनाने वाले फौजी, शिक्षा विभाग से रिटायर कर्मचारी ही क्यों होते है, क्या वो जीवन में सब काम खत्म करने के बाद पहाडों में नही बस सकते थे, पर हमने खुद से सवाल करना बंद करना सीख लिया और सरकार पर सारा ठीकरा फोड़ने की आदत बना ली ।

सरकार से सवाल करते रहना चाहिए, ये एक स्वास्थ्य लोकतंत्र में बहुत जरूरी है, पर ये भी जरूरी है कि हम खुद अपनी भी जिम्मेदारी समझे l हो सके तो पहाड़ में रहकर रोजगार के अवसर पैदा करे, इसी सोच के साथ हम एक प्रयास कर रहे हैं कि, गांव में रोजगार उपलब्ध हो और गांव का आदमी अपनी रोजी रोटी के लिए अपना घर – परिवार छोड़ने के लिए मजबूर ना हो, हमने ग्राम चमाली, सतपुली, ब्लॉक एकेश्वर, पौड़ी गढ़वाल में एक लघु उद्योग की स्थापना की है, जिसमें हम उत्तराखंड का हर्बल भीमल शैंपू का उत्पादन कर रहे हैं, इसके साथ साथ चोबटाखाल, पौड़ी गढ़वाल में पहाड़ी अचार का उत्पादन कर रहे हैं । अब देखना यह है कि इस प्रयास में हम कहां तक सफल हो पाते हैं ।

हम किसी मजबूरी से पलायन कर चुके है तो, खुद से प्रण ले कि जिस दिन इस काबिल हो गए पहाड़ वापस लौटकर वहा रोजगार के अवसर जरूर पैदा कर सके तो भी करेंगे, आगे रिटायर होंगे तो देहरादून, कोटद्वार, हलद्वानी , रामनगर मे मकान ना बनाकर अपने गाँव को आबाद करेंगे ।

यदि हम सबने यह सोच विकसित कर ली तभी जाकर उत्तराखंड का विकास संभव है , नहीं तो हम जिंदगी भर सरकारों को कौसते रहेंगे ।