मुम्बई, कलाकार- विद्या बालन, जीशु सेनगुप्ता, सान्या मल्होत्रा, अमित साध प्लेटफॉर्म- अमेज़न प्राइम वीडियो ‘एक लड़की जो अपने दिल की सुनती है और खुल के हंसती है, मर्दों के लिए इससे ज्यादा डरावना और कुछ नहीं होता है’.. महान गणितज्ञ शकुंतला देवी में ये दोनों ही बातें थीं। समाज के बने बनाए कुछ परपंरागत जंजीरों को तोड़कर निकलीं शकुंतला देवी ने ना सिर्फ भारत में, बल्कि विश्व भर में नाम कमाया है। फिल्म में शकुंतला देवी का किरदार निभातीं विद्या बालन एक दृश्य में कहती हैं, ‘जब मैं स्टेज पर होती हूं, मुझे लोगों के चेहरे देखना अच्छा लगता है, जब वो हैरानी से चोटी और साड़ी पहनी औरत को मैथ्स सॉल्व करते देखते हैं।’ गणित के साथ उनका रिश्ता और उससे पाई गईं उपलब्धियों के अलावा फिल्म में उनकी पारिवारिक जिंदगी और मुद्दों को भी शामिल किया गया है। खासकर एक बेटी, एक मां और एक औरत का सफर।
फिल्म की कहानी साल 1934 से 2000 तक के सफर में शकुंतला देवी का बचपन, जवानी, वृद्धा अवस्था तक शामिल किया गया है। उनके सफर की शुरुआत महज पांच साल में ही हो गई थी, जब वो गणित के बड़े से बड़े सवाल भी मुंह जुबानी हल कर दिया करती थीं। वह स्कूल जाना चाहती थीं, लेकिन बेरोजगार पिता शकुंतला की प्रतिभा के शोज कराने लगे। परिवार को पैसा मिलने लगा और शकुंतला देवी को पूरे शहर में ख्याति.. फिर देश में और फिर देखते ही देखते विश्व भर में। शकुंतला देवी के निर्भीक स्वभाव और आजाद ख्याल ने उन्हें परिवार से दूर कर दिया। खासकर मां के प्रति एक गुस्सा था क्योंकि उन्होंने पिता के गलत तौर तरीकों को सहते जिंदगी गुजार दी। इधर अंकों के साथ शकुंतला देवी का रिश्ता हर दिन गहराता चला गया। कंप्यूटर से भी तेज गणित के सवालों को हल करने वाली इंसान के तौर पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम अंकित हुआ। जिसके बाद दुनिया उन्हें ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ के नाम से जानने लगी। लेकिन जितनी आसानी से वो गणित के सवाल हल कर लेती थीं, उनकी व्यक्तिगत जीवन उतनी ही जटिल रही। उन्हें ‘नॉर्मल’ रहना समझ नहीं आया। उनका मानना था कि इंसान और पंड़ों में यही फर्क है कि इंसान एक जगह टिक कर नहीं रह सकता, जबकि पेड़ जड़ों से जकड़े होते हैं। इस थ्योरी की वजह से व्यक्तिगत जीवन में अपनी बेटी से वह प्यार, सम्मान ना पाना उन्हें खलता रहा। उनके भीतर लगातार द्वंद चलता रहता है- सिद्धांतों, कर्तव्य और आकांक्षाओं के बीच। जिससे वह किस तरह उबरती हैं, यह फिल्म में दिखाया गया है।
अभिनय शकुंतला देवी के किरदार में विद्या बालन रच बस गई हैं। उन्होंने किरदार को शुरुआत से अंत तक इतना कसकर पकड़ा है कि आपकी नजरों के साथ साथ वह सोच को भी बांधे रखती हैं। एक क्षण में गुस्सा, दूसरे ही क्षण में हंसी.. विद्या के हाव भाव बतौर दर्शक रोमांचित करते हैं। जवानी से लेकर प्रौढ़ावस्था तक, उन्होंने हर उम्र को सहजता से पेश किया है। शकुंतला देवी के पति के किरदार में जीशु सेनगुप्ता अपनी सादगी और सहजता से दिल जीत लेते हैं। वहीं, बेटी के किरदार में सान्या मल्होत्रा जंची हैं। बेटी के मन में चल रही भावनाएं, प्यार, गुस्सा, आवेग.. हर भाव को सान्या ने बखूबी दिखाया है। अमित साध और सान्या की जोड़ी बढ़िया लगी है। अमित साध छोटे से किरदार में भी अपनी बेहतरीन अदाकारी से ध्यान खींचते हैं। तरह उबरती हैं, यह फिल्म में दिखाया गया है।
विद्या बालन की एक्टिंग को समझने और सराहने के लिए यह फिल्म ‘शकुंतला देवी (Shakuntala Devi)’ मस्ट वॉच है.
रेटिंगः 3.5/5
डायरेक्टरः अनु मेनन
कलाकारः विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, अमित साध और जिशु सेनगुप्ता
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