Saturday, November 16, 2024
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विरासत’ हमारे देश के उभरते हुए कलाकारों के लिए एक मंच है : आर के सिंह

‘नियाज़ी ब्रदर्स के कव्वाली और सूफी गीत ने देहरादून के लोगो को मंत्रमुग्ध किया’

‘विरासत में देहरादून के स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए आर्ट एंड क्राफ्ट कार्यशाला का आयोजन किया गया’

देहरादून, विरासत आर्ट एंड के आठवें दिन की शुरूआत आर्ट एंड क्राफ्ट कार्यशाला के साथ हुयी। इस वर्कशॉप में देहरादून के 7 स्कूलों के लगभग 120 छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। इस कार्यशाला के अंतर्गत छात्र-छात्राओं ने शिल्पकार मास्टर के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के कला और आर्ट बनाने का प्रशिक्षण लिया। इस कार्यशाला में टाई एंड डाई, मिट्टी के बर्तन बनाना, जुट की गुड़िया बनाना, गुब्बारे पर कलाकृतियां उकेरना, फेस आर्ट, मंडना आर्ट, ब्लॉक प्रिंटिंग एवं पतंग बनाने जैसे कला शामिल थी।
‘विरासत’ को आयोजित करने वाली रीच संस्था द्वारा कौलागढ़ रोड स्थित एक होटल में प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। वार्ता को संबोधित करते हुए संस्था के वरिष्ठ सदस्यों ने कहा ’हम रीच संस्था कि ओर से मीडिया के सभी लोगो को धन्यवाद देते है जिन्होंने विरासत को इस तरह से समर्थन दिया है और अपने समाचार पत्र, न्यूज चैनल एवं वेब पोर्टलो में देश के कलाकारो को स्थान दिया है। देश के जाने माने कलाकारों से लेकर उभरते हुए कलाकारों तक ने देहरादून में आयोजित विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के मीडिया समर्थन कि प्रशंसा कि है’।

 

रीच संस्था के महासचिव श्री आरके सिंह ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा ’विरासत हमारे देश के उभरते हुए कलाकारों के लिए एक मंच है एवं इस मंच से उत्तराखंड के साथ-साथ देशभर के कलाकारों की कलाओं को लोगो के सामने प्रस्तुत कर प्रोत्साहित किया जाता है। हमारा उद्देश्य है कि देश के जो नन्हे मुन्ने बच्चे हैं वह हमारी विरासत को बनाए रखें और आने वाली जनरेशन को वह अपनी विरासत सुपुर्द करें । उन्होंने कहा आने वाले कुछ दिनों में विरासत सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत कई जाने-माने कलाकारों की प्रस्तुतियां होनी है जिसमें पदम भूषण परवीन सुल्ताना, गजल गायक तलत अजीज़ एवं अन्य कलाकार शामिल है।’ विरासत सांस्कृतिक कार्यक्रम में मझें हुए कलाकारों के साथ कुछ नए और उभरते हुए कलाकारों को एक समान कला प्रस्तुति मंच देता है जिससे उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया जाए। प्रेस वार्ता में रीच संस्था की ओर से श्री विजय रंजन जी, श्री डी एन सिंह, श्री सुनील वर्मा, विजयश्री जोशी, कल्पना शर्मा एवं अन्य सदस्य मौजूद रहे।

‘कुंज बिहारी राधा प्यारी एवं शाम भयलबा मोरे मंदरवा’ के बोल से गूंज उठा विरासत का प्रांगण

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं पंडित उदय कुमार मल्लिक द्वारा ध्रुपद गायन कि प्रस्तुति हुई। उनके द्वारा धमार शैली के धमा ताल में राग रागेश्वरी प्रस्तुत की गई जिनके बोल“ कुंज बिहारी राधा प्यारी एवं शाम भयलबा मोरे मंदरवा प्रस्तुतियां शामिल है वही ठुमरी और भजन के साथ उन्होंने अपनी प्रस्तुति को समाप्त किया। पंडित उदय कुमार मल्लिक के साथ वोकल में रूपेश पाठक, हारमोनियम पर जाकिर ढोलपुरी, तबला पर मिथिलेश झा, तानपुरा पर कुमारी रूपम एवं मुस्कान माही ने अपनी संगत दी।

 

बताते चले कि पंडित उदय कुमार मल्लिक ध्रुपद अकादमी, नई दिल्ली के संस्थापक हैं। वह विश्व प्रसिद्ध दरभंगा घराने से आते हैं, जो 350 वर्षों से ध्रुपद और पखावज के लिए जाना जाता है, उनके परिवार के कई सदस्य विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित हैं।

 

पंडित उदय कुमार मल्लिक भारतीय शास्त्रीय संगीत के समृद्धि एवं विस्तार के लिए समर्पित हैं और वे संगीतकारों की एक नई पीढ़ी को शिक्षा दे रहे हैं। पं. मलिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगीत समारोहों, सम्मेलनों, त्योहारों, टेलीविजन और रेडियो पर प्रदर्शन करते हैं। उनके द्वारा रिकॉर्डिंग कि हूई ऑडियो और वीडियो को बिहार संगीत नाटक अकादमी संग्रहालय, यू.पी. संगीत नाटक अकादमी और केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली द्वारा इस्तेमाल कि जाती है।

 

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में रामपुर घराने के प्रसिद्ध ’नियाज़ी ब्रदर्स’ द्वारा कव्वाली और सूफी गीत प्रस्तुत किये गए। जिसमे पारंपरिक कव्वाली में हजरत अमीर खुसरो का लिखा हुआ कव्वाली से शुरू किया एवं पंजाबी के साथ-साथ बॉलीवुड से ख्वाजा मेरे ख्वाजा भी प्रस्तुत किया। सहयोगी कलाकारों में माजिद नियांजी और मुकर्रम नियाजी वोकल में वहीं परवेज एवं वासिफ नियाजी ढोलक पर, विजय कुमार तबला और ऋषू कुमार की बोर्ड पर संगत दिया।

 

शाहिद नियाज़ी और सामी नियाज़ी (नियाज़ी ब्रदर्स) जो अपने संगीत के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है एवं वे कव्वाली के रामपुर घराने की 250 साल पुरानी पारिवारिक परंपरा को जारी रखे हुए हैं। उस्ताद नियाज़ी ने कव्वाली को “रूह-ए-ग़िज़ा“ के रूप में वर्णित किया है।

 

कव्वाली 13वीं शताब्दी में भारतीय, फारसी, तुर्की और अरबी संगीत परंपराओं के श्मिश्रण से बनी। दिल्ली के सूफी संत अमीर खुसरो देहलवी जो सूफियों की चिश्ती धराने से सबंध रखते थे। कव्वाली के केंद्र में प्रेम और परमात्मा कि भक्ति होती है।

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