देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज शिक्षाविद प्रदीप डबराल के काव्य संग्रह ‘तरंग‘ का लोकार्पण एवं ततपश्चात एक साहित्यिक चर्चा का आयोजन किया गया।
वरिष्ठ साहित्यकार सोमवारी लाल अनियाल ‘प्रदीप‘ की अध्यक्षता में सम्पन्न इस आयोजन में कई साहित्यकार व साहित्य प्रेमी शामिल रहे. लोककला एवं संस्कृति निष्पादन केन्द्र हे. न. ब. केंद्रीय विश्व विद्यालय के पूर्व निदेशक प्रो. डी.आर. पुरोहित, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मुनीराम सकलानी ‘मुनीन्द्र‘ व जनकवि डॉ.अतुल शर्मा द्वारा पुस्तक के आलोक में समीक्षात्मक विचार दिए गए ।
जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने रचनाकार की रचनाओं की समीक्षा करते हुये कहा कि सेवा निवृत्ति के बाद प्रदीप डबराल द्वारा विभिन्न विषयों पर निरंतर लेखन कार्य किया जा रहा है। प्रस्तुत कविता संग्रह की कविताओं को पढ़कर स्पष्ट होता है कि उनकी लेखन शैली निरंतर निखरती जा रही है, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.मुनीराम सकलानी ‘मुनीन्द्र‘ ने कहा कि डबराल की कवितायें जहां एक ओर समकालीन वातावरण का वास्तविक दस्तावेज हैं वहीं यह कवि मन की सुकोमल भावनाओं का उच्छवास भी है। उन्होंने कहा कि छोटी बहन की अन्तिम समय की पीढ़ा को कवि ने बड़े ही मार्मिक रूप में व्यक्त किया है।
प्रो.डी. आर. पुरोहित ने अपने विद्धता पूर्ण उद्बोधन में कहा कि ‘तरंग‘ की कविताओं में जहां हिन्दी के छायावादी कवियों की कविता प्रतिध्वनित होती हैं वही अंग्रेजी कवि वर्डसवर्थ के प्रकृति प्रेम के भी दर्शन होते हैं.
कार्यक्रम अध्यक्ष सोमवारी लाल उनियाल ‘प्रदीप‘ ने कहा कि उन्होंनें इन सभी कवितायों को मन की आंखों से पढ़ा हैं। 55 कवितायें 145 पृष्ठों के विस्तार में लिखी गयी है। कवितायें लम्बी व नये ढब ढंग से गढ़ी गयी हैं. इन कविताओं में जीवन के विविध रंग और उल्लास के भाव संदेश दिये गये हैं। कविताओं में मानवीय व्यवहार करने की अपेक्षा की गयी हैै ।
कुल मिलाकर काव्य संग्रह की कवितायें पाठक की संवेदनाओं को प्रकृति से जोड़ती है। यह कविताओं के इस संग्रह में पर्वत, पंछी ,बचपन, पलायन, जैसे विषयों को प्रधानता दी गयी है।
श्री गुरू राम राय इ. का. भाऊवाला की 10 वीं कक्षा की छात्रा नम्रता नौगाईं द्वारा ‘तरंग‘ कविता संग्रह की एक कविता ‘प्रश्नों की भूख‘ का वाचन किया गया. सुपरिचित गायक एवं संगीतकार शैलेंन्द्र मैठाणी ने इस कविता के गायन अपने मधुर स्वर में देकर सभी के मन मोह लिया।
काव्य संग्रह के रचनाकार प्रदीप डबराल ने कहा कवितायें किसी विशेष काव्य विधा की सीमा में नही बंधी हैं। कुछ कवितायें छन्द युक्त हैं तो अधिकांश छंद मुक्त शैली में हैं. मुख्य तौर पर उनमें भावों का प्रवाह देने की कोशिस की गयी है।
कवि ने पुस्तक प्रकाशन हेतु आर्थिक सहयोग देने के लिये उत्तराखण्ड भाषा संस्थान का आभार व्यक्त किया और पुस्तक के प्रकाशन के लिये विन्सर पब्लिकेशन का भी धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्य क्रम का संचालन आवाज साहित्यिक संस्था के संयोजक डॉ. सुनील थपलियाल ने किया.
कार्यक्रम के अंत में केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने मंचसीन अतिथि जनों व उपस्थित लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस कार्यक्रम में डॉ. डी. एं. भटकोटी,गणनाथ मनोड़ी, डॉ. लालता प्रसाद, सुरेन्द्र सजवान, रविन्द्र जुगरान, दर्द गढ़वाली,विजय भट्ट, कुलभूषण नैथानी, हरिचंद निमेष,डॉली डबराल, शोभा शर्मा,सुंदर सिंह बिष्ट, रंजना शर्मा, दयानन्द अरोड़ा, जगदीश सिंह महर, शैलेन्द्र नौटियाल, सतीश धौलाखंडी,शान्ति प्रकाश जिज्ञासु, रजनी कुकरेती, प्रदीप कुकरेती, डॉ.वी. के. डोभाल देहरादून के कई साहित्य प्रेमी, विभिन्न विद्यालयों के शिक्षक व प्रधानाचार्य सहित पाठक गण व शहर के अन्य साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
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