देहरादून, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के निर्देशानुसार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, देहरादून के तत्वावधान में 8 मार्च को प्रातः जिला मुख्यालय, बाह्य न्यायालय ऋषिकेश, विकासनगर एवं डोईवाला जनपद देहरादून के न्यायालयों में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया। इस लोक अदालत में मोटर दुर्घटना क्लेम, सिविल मामले, पारिवारिक मामले, बैंक बाउन्स से सम्बंधित मामलें व अन्य शमनीय प्रकृति के आपराधिक मामले लगाये गये थे। इस लोक अदालत में फौजदारी के शमनीय प्रकृति के 68 मामलें, चैक सम्बंधी 1368 मामलें, विद्युत अधिनियम संबंधी 30 मामले, धन वसूली सम्बंधी 14 मामलें, मोटर दुर्घटना क्लेम ट्राईबुनल के 42 मामलें, पारिवारिक विवाद सम्बंधी 123 मामलें, मोटर वाहन द्वारा अपराधों के 4888 मामलें एवं अन्य सिविल प्रकृति के 43 मामलों सहित कुल 6574 मामलों का निस्तारण किया गया तथा 18,73,82,406/- रू० की धनराशि पर समझौता हुआ।
प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, देहरादून सैय्यद गुफरान द्वारा बताया गया कि उक्त लोक अदालत में जिला न्यायाधीश, देहरादून प्रेम सिंह खिमाल की पीठ सहित कई न्यायिक अधिकारियों की पीठों द्वारा मुख्यालय देहरादून में एक ही दिन में कुल 5567 मामलों का आपसी राजीनामे के आधार पर निस्तारण किया गया, जिसमें कुल 14,82,31,640/- रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ। साथ ही बाह्य न्यायालय, विकासनगर के न्यायिक अधिकारियों द्वारा लोक अदालत में कुल 483 मामलों का आपसी राजीनामे के आधार पर निस्तारण किया गया, जिसमें कुल 1,29,42,344/- रूपये का राजस्व प्राप्त हुजा तथा बाह्य न्यायालय ऋषिकेश के न्यायिक अधिकारियों द्वारा लोक अदालत में एक ही दिन में कुल 398 मामलों का निस्तारण कर कुल 2,62,08,422/- रूपये का राजस्व प्राप्त किया गया। बाह्य न्यायालय डोईवाला द्वारा 106 मामलों का तथा बाह्य न्यायालय मसूरी द्वारा 20 मामलों का निस्तारण किया गया। इस लोक अदालत में प्री-लिटिगेशन स्तर के मामले भी निस्तारित किये गये। उक्त लोक अदालत में प्री-लिटिगेशन स्तर के 4827 मामलों का निस्तारण किया गया तथा 1,67,61,269/-रू० की धनराशि के सम्बंध में समझौते किये गये।
प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, देहरादून सैय्यद गुफरान द्वारा अवगत कराया कि लोक अदालतें सरल व त्वरित न्याय प्राप्त करने का एक प्रभावी माध्यम है, लोक अदालतों में पक्षकार आपसी समझौते के आधार पर मामले का निस्तारण कराते हैं, ऐसे आदेश अंतिम होते हैं तथा पक्षकारों को उनके द्वारा दिया गया न्यायशुल्क भी वापस कर दिया जाता है।
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