Thursday, April 25, 2024
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पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के 28वें संन्यास दिवसोत्सव के साथ ‘मानस गुरुकुल’ कथा का समापन

हरिद्वार 10 अप्रैल (कुलभूषण)। पतंजलि विश्वविद्यालय में ‘मानस गुरुकुल’ विषयक राम कथा का समापन आज रामनवमी तथा पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के 28वें संन्यास दिवस के भव्य कार्यक्रम के साथ हुआ। इस अवसर पर पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राष्ट्र के प्राण हैं, वे हमारे आराध्य भी हैं, साधन भी हैं, साध्य भी हैं, आदर्श भी हैं, वर्तमान भी हैं, भविष्य भी हैं, भारत के सांस्कृतिक गौरव भी हैं और राम हमारे लिए योग विद्या, अध्यात्म विद्या हैं, राम हमारे राष्ट्र हैं।
पूज्य स्वामी जी महाराज ने कहा कि मैं 27 वर्ष का संन्यासी हो चुका हूँ और 28वें वर्ष के युवा संन्यस्त जीवन में प्रवेश कर रहा हूँ। संन्यासी का एक ही धर्म है- योगधर्म से राष्ट्रधर्म, सेवाधर्म और युगधर्म का निर्वहन करते हुए इस राष्ट्र को स्वास्थ के साथ-साथ समृद्धि और संस्कार देना। इसलिए संस्कृति मूलक समृद्धि के सौपान पतंजलि योगपीठ चढ़ रहा है। पतंजलि अब देश के करोड़ों लोगों तक स्वास्थ्य से लेकर समृद्धि की योजना पर कार्य कर रही है। इसके लिए रुचि सोया की लिस्टिंग प्रथम चरण था जो 650 प्राइस बैण्ड पर लिस्ट हुआ और इसने एक ही दिन में 939 तक की उड़ान भरी। यह विश्वास दिलाता है कि यात्र बहुत लम्बी होगी। अब पूरे फूड बिजनेस को रुचि सोया में शामिल किया जाएगा, साथ ही रुचि सोया का नाम भी रूपान्तरित किया जाएगा और एक नये संकल्प का उद्घोष होगा। एफएमसीजी की सबसे बड़ी कम्पनी पतंजलि होगी और लोकल को ग्लोबल करने का शंखनाद पतंजलि से होगा। भारत को परम वैभवशाली बनाने के साथ-साथ विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक व आध्यात्मिक शक्ति बनाने में पतंजलि अपना योगदान देगा।
पाकिस्तान में राजनैतिक अस्थिरता पर पूज्य स्वामी जी ने कहा कि पाकिस्तान एक अस्थिर देश है। यह सच है कि हम पड़ोसी नहीं बदल सकते लेकिन यह भी सच है कि माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के रहते पाकिस्तान तो क्या कोई भी विरोधी ताकत भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य जी महाराज ने कहा कि हमारी संस्कृति पर्व और त्यौहारों में प्रमुख है। आज भगवान राम का प्राकट्य दिवस ‘रामनवमी’ और नवरात्रों का पावन पर्व है। आज से 27 वर्ष पूर्व श्रद्धेय स्वामी जी ने ब्रह्मचर्य से सीधे संन्यास ग्रहण करके भारतीय संस्कृति, परम्परा व मूल्यों को पूरी दुनिया में गौरव देने का कार्य किया और भारत की गौरवशाली परम्परा की पहचान पूरे विश्व में कराई। आज से 5 वर्ष पूर्व पूज्य स्वामी जी महाराज ने शताधिक शिष्यों को तैयार करके संन्यास की दीक्षा दी तथा भारतीय संस्कृति के ध्वज को दिग-दिगांतर में फहराया। संन्यास की दीक्षा भी ग्रहण की थी। उन्होंने कहा कि हम सबने पूज्य मोरारी बापू के श्रीमुख से पिछले नौ दिन भगवान राम की कथा के माध्यम से भारतीय संस्कृति को जाना, यह हमारा सौभाग्य है।
आचार्य जी ने कहा कि वेदधारा का कार्य बहुत जटिल व श्रमसाध्य होता है। फिर भी हमने वेदों पर कार्य करने वाले 50 विद्वान भाष्यकर्ताओं की प्रकाशित-अप्रकाशित पुस्तकों को प्रकाशित करने का कार्य किया है। उन्होंने ‘वेदों की शिक्षाएँ’ के आठ वॉल्यूम पूज्य महर्षि दयानन्द, पूज्य मोरारी बापू तथा पूज्य स्वामी जी को समर्पित किए।
आचार्य जी ने कहा कि वेदों को विज्ञान से जोड़ना आवश्यक है, हम उस पर भी गहन अध्ययन कर रहे हैं। इसी क्रम में पतंजलि ने पहली बार विश्वस्तरीय शोध पत्रों को शोध का सार संस्कृत तथा हिन्दी में प्रकाशित कराया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने कहा कि वेदों में सम्पूर्ण विज्ञान है। हमने योग और आयुर्वेद को आधुनिक वैज्ञानिक मापदण्डों पर परिभाषित करके समग्र रूप से प्रस्तुतिकरण का कार्य ‘योगायु रिसर्च’ द्वारा किया है। यह एक विश्वस्तरीय रिसर्च जर्नल का पोर्टल है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोध पत्र प्रकाशित होंगे। इसका विमोचन पूज्य मोरारी बापू के कर-कमलों से किया गया।
इस अवसर पर पूज्य बापू, विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पूज्य स्वामी जी महाराज तथा विश्वविद्यालय के कुलपति पूज्य आचार्य जी महाराज ने विश्वविद्यालय की प्रथम डी-लिट उपाधि साध्वी आचार्या देवप्रिया को भेंट की। प्रति-कुलपति प्रो- महावीर जी ने कहा कि साधना का जीवन जीने वाली देवप्रिया जी ने ‘पुराणों में अष्टांग योग’ विषय पर शोध कर यह उपलब्धि प्राप्त की।
कार्यक्रम मेें पूज्य बापू ने कहा कि नौ दिवसीय इस अनुष्ठान का आज विराम का दिन है। उन्होंने कहा कि राम विश्वरूप हैं, जग निवास हैं, राम भगवान हैं, परमात्मा हैं, परब्रह्म हैं। त्रेता में जो योग भगवान राम के जन्म के समय बना था, वही योग सन 1631 में पुनः बना और गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार यही रामचरित मानस का भी प्राकट्य दिवस है। और यह दिव्य संगम है कि आज ही पूज्य स्वामी जी महाराज ने अपने संन्यस्त जीवन के 27 वर्ष पूर्ण किए हैं। आज ही पूज्य आचार्य जी ने वेदों की शिक्षाएँ के रूप में अष्ट वरदान दिए हैं और प्रसन्नता है कि पूज्या साध्वी देवप्रिया जी को भी आज के दिन व्यासपीठ से सम्मान मिला। पूज्य बापू ने रामजन्म, अहिल्या उद्धार, धनुष यज्ञ, परशुराम संवाद, वनवास, दशरथ मरण, भरत मिलाप, सीता हरण से लेकर मेघनाथ, कुम्भकरण व रावण वध की कथा सुनाई। गुरुकुल के विषय में पूज्य बापू ने कहा कि सत्य आता है तो समर्पण स्वतः ही आ जाता है। बीज दिखता नहीं, दबता है लेकिन दबने से ही उसमें अंकुर फूटता है। उन्होंने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम् विश्व का विश्राम बनेगा और विश्व को रस देगा।
इस अवसर पर केन्द्रिय राज्य शिक्षा मंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा जी ने आरती कर रामकथा का समापन किया।
कार्यम में पूज्य सतुआ बाबा, पूज्य बापू चिन्मयानन्द, डॉ. यशदेव शास्त्री जी, माता सुनिता पौद्दार, श्री एन.पी. सिंह, साध्वी आचार्या देवप्रिया जी, बहन ऋतम्भरा जी, प्रो. महावीर अग्रवाल, श्री ललित मोहन, रूड़की विधायक श्री प्रदीप बत्र, आचार्य आनंद प्रकाश, आचार्य सौद्युम्न, बहन प्रवीण पूनीया, डॉ. निर्विकार, श्री एन.सी. शर्मा सपत्नीक, बहन अंशुल, बहन पारूल, श्री अजय आर्य, स्वामी परमार्थ देव, भाई जयदीप आर्य, भाई राकेश कुमार, प्रो. के.एन.एस. यादव, प्रो. वी.के. कटियार, श्री वी.सी. पाण्डेय, श्री पद्मसेन आर्य के साथ-साथ पतंजलि विश्वविद्यालय के अधिकारी, शिक्षकगण, कर्मचारी तथा छात्र-छात्राओं, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनों व विभिन्न प्रांतों से पधारे हजारों श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण का लाभ लिया।

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