देहरादून, शासकीय निर्देश एवं निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड द्वारा 25 जुलाई को जारी समीक्षा संबंधी पत्र एवं समाचार पत्रों में जारी अशासकीय विद्यालयों की समीक्षा से संबंधी निर्णय के क्रम में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों के प्रति जो नकारात्मक भाव एवं विचार प्रकट किए गए हैं नितांत प्रदेश में शिक्षा में सौतेले पन एवं दोहरे मानक अपनाई जाने का प्रतीक है। जिसका उत्तरांचल प्रधानाचार्य परिषद घोर विरोध करता है तथा सहायता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों के प्रति उदासीनता को निम्न बिंदुओं के माध्यम से व्यक्त करता है।
महानिदेशक विद्यालय शिक्षा को पी सी सुयाल प्रदेश अध्यक्ष एवं अवधेश कुमार कौशिक प्रदेश महामंत्री द्वारा प्रेषित पत्र में उत्तरांचल प्रधानाचार्य परिषद ने कहा कि उत्तराखंड राज्य गठन का अभिशाप प्रदेश के सहायता प्राप्त विद्यालय सबसे ज्यादा भुगत रहे हैं । उत्तर प्रदेश में विधान परिषद में शिक्षक प्रतिनिधि अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों के एमएलसी के रूप में नियुक्त होते थे, जिनके दिशा निर्देशन में शिक्षा संबंधी प्रगति पूर्ण सुझाव सरकार को प्राप्त होते थे । सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में जनसाधारण के द्वारा शिक्षकों छात्रों के सहयोग से रामलीला होली खेल कर और निजी प्रयासों से अशासकीय विद्यालयों की 100 साल पूर्व स्थापना हुई इन विद्यालयों से निकले हुए छात्र आज भी विभिन्न प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हुए हैं । विद्यालयों में सरकार प्रबंधन और जनता का सीधा सीधा अंकुश होता है, जिससे विद्यालयों के अनुशासन निर्देशन और पठन-पाठन में गुणवत्ता पूर्ण सुधार होता है।
राज्य गठन के बाद हर गली में राजकीय इंटर कॉलेज बिना संसाधनों के दो दो कमरों में खोल दिए गए, अथवा ऊंचीकृत कर दिए गए विद्यालयों में छात्र संख्या और शिक्षक कहीं-कहीं पर बराबर रहे इस प्रकार की व्यवस्था में मात्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ा |
पत्र में कहा गया कि वर्तमान में प्रदेश के सहायता प्राप्त विद्यालयों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की शिक्षा व्यवस्था हेतु सरकार द्वारा किसी भी प्रकार के भौतिक संसाधन प्रदान नहीं किए जाते हैं तथापि विद्यालयों में प्रबंधन और क्षेत्रीय जनता के सहयोग से प्रत्येक विद्यालय में पूर्ण संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं जबकि शासकीय राजकीय विद्यालयों पर सरकार द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों बजट खर्च किया जाता है सहायता प्राप्त विद्यालयों को मात्र वेतन के अतिरिक्त किसी प्रकार का सहायता प्रदान नहीं की जाती हैं।
राज्य गठन से लेकर अब तक के आंकड़ों में देखा जा सकता है । अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों मैं अध्ययनरत छात्र-छात्राएं बिना सरकारी सहायता के बोर्ड परीक्षा की उत्कृष्टता सूची में अथवा जनपद प्रदेश स्तर की क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में समय-समय पर अन्य विभागीय प्रतियोगिताओं में शीर्ष स्थानों पर रहे हैं. ।
बड़े दुखी मन से अवगत कराना है कि एक ही प्रदेश में समान सामाजिक परिवेश में पले जनता के बालक बालिकाओं शिक्षा में दी जाने वाली सुविधाओं पर दोहरा मानक अपनाया जा रहा है जिसका प्रधानाचार्य परिषद समय-समय पर विरोध दर्ज कराता आया है।
अप्रैल माह में माननीय मंत्री जी द्वारा आयोजित समीक्षा बैठक में प्रधानाचार्य परिषद द्वारा अवगत कराया गया था कि राजकीय में अध्ययनरत बालक बालिकाओं को समग्र शिक्षा के अंतर्गत टेबलेट निशुल्क पाठ्य पुस्तकें जूते बैग यूनिफॉर्म गणवेश विद्यालयों में अन्य भौतिक संसाधनों की उपलब्धता प्रदान की जा रही है जबकि इसी प्रदेश के जनता के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत छात्र छात्राओं को इन सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है क्या यह छात्र छात्राएं इस प्रदेश के नागरिक नहीं हैं ऐसा सौतेला पन समझ से परे है.
अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों का प्रबंधन प्रशासन उपरोक्त विषम परिस्थितियों में भी राज राजकीय विद्यालयों से गुणवत्ता छात्र संख्या उपलब्धियों में तुलनात्मक रूप से ऊपर है दशकों पूर्व स्थापित विद्यालयों के 1 किलोमीटर की परिधि में सरकार द्वारा राजकीय विद्यालय खोला जाना इन विद्यालयों को समाप्त करने की साजिश है जिससे सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों की छात्र संख्या पर समय-समय पर प्रभाव पड़ा है।
सहायता प्राप्त विद्यालयों में राज्य गठन के पश्चात शिक्षकों की एवं कर्मचारियों की नियुक्ति की पारदर्शी एवं सुदृढ़ व्यवस्था नहीं किए जाने के पश्चात भी विद्यालय अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल रहे हैं विभाग एवं शासन से गत 10 वर्षों से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति संबंधी मांग आज तक लंबित है।
उत्तरांचल प्रधानाचार्य परिषद छात्र हित में अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों की शैक्षिक समीक्षा का स्वागत करता है । किंतु विभागीय पत्र एवं समाचार पत्रों में जारी आपत्तिजनक और सौतेले व्यवहार पूर्ण विचारों का नितांत विरोध करेगा समीक्षा के साथ ही शासन एवं विभागीय स्तर पर राज्य गठन के बाद से अब तक राजकीय एवं अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों की उपलब्धियों संसाधनों श्रम जन शक्ति आदि का तुलनात्मक विश्लेषण करने के उपरांत आंकड़े जारी किया जाना चाहिए मात्र वेतन अनुदान पर चलने वाले सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों को भी अगर राजकीय विद्यालयों की भांति संसाधन एवं बजट उपलब्ध कराया जाता है तो क्षेत्रीय जनता और प्रबंधन के सहयोग से चलने वाले अशासकीय विद्यालय प्रदेश में ऊंचे आयामों को छूने में सक्षम हैं आज भी प्रदेश में 150 साल पूर्व स्थापित विद्यालय निजी संसाधनों से कुशलतापूर्वक संचालित किए जा रहे हैं. अतः विनम्र निवेदन है की प्रदेश मैं अध्ययनरत सामान्य जनता के बालक बालिकाओं में और शिक्षा व्यवस्था में भेद न करते हुए शिक्षा के मौलिक अधिकार के अंतर्गत सभी को समान अवसर एवं सुविधाएं प्रदान की जाए |
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