हरिद्वार (कुलभूषण), गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार में भारतीय ज्ञान परम्परा प्रभाग शिक्षा मन्त्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्त्वावधान में अनुसन्धान प्रस्ताव लेखन विषय पर द्विदिवसीय कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य अनुसन्धान को लोकोपयोगी एवं स्पष्ट व सरल बनाना है। इस कार्यशाला का शुभारम्भ गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की शोधछात्राओं द्वारा कुलगीत गायन द्वारा किया गया। संस्कृतविभागाध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने उपस्थित विद्वानों का स्वागत करते हुए इस कार्यशाला की उपयोगिता से विद्यार्थियों को अवगत कराया। मुख्य अतिथि के रूप में आये पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार के प्रतिकुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने बताया कि संस्कृत भाषा के माध्यम से ही अनुसंधान अपनी पूर्णता को प्राप्त होता है। वर्तमान समय में हम संस्कृत के ज्ञान-विज्ञान से विस्मृत हो रहे हैं, हमारा वैदिक ज्ञान आदि काल में अत्यन्त उपयोगी व समृद्ध रहा है।
आज आवश्यकता है इसको उजागर करने की। मुख्य वक्ता के रुप में दीनदयाल कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय से आये प्रो. नित्यानन्द अवस्थी ने अनुसंधान प्रस्ताव लेखन किस प्रकार से किया जाये, प्रस्ताव लेखन में किस प्रकार की समस्यायें आती हैं, उनका समाधान किस प्रकार करना है इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख किया। इस अवसर पर हिन्दू कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय से आये डॉ. सचिन वसिष्ठ ने बताया कि अनुसंधान प्रस्ताव लेखन से भारतवर्ष में ज्ञान की एक समृद्ध परम्परा का उदय होगा और छिपे हुए ज्ञान का उदय होगा।
कार्यक्रम के अन्त मे अध्यक्षीय भाषण के रूप गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति प्रो. सोमदेव शतांशु ने वैदिक ज्ञान परम्परा का महत्व बताते हुए वर्तमान में उसकी उपादेयता सुनिश्चित करने पर बल दिया। आज अनुसन्धान से ही भारत का भाग्योदय सम्भव है। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. वेदव्रत ने किया। प्रथम दिवस की कार्यशाला में लगभग 58 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर डॉ. मोहर सिंह मीणा, डॉ. प्रकाश पन्त, डॉ. बबलू वेदलंकार, डॉ. भारत वेदालंकार, डॉ. विजया लक्ष्मी, डॉ. भगवानदास, डॉ. शिवकुमार चौहान आदि उपस्थित रहे।
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