Tuesday, December 24, 2024
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जल्‍दी ही भारत को मिल सकती हैं राष्ट्रपति की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू

नई दिल्ली, सत्ताधारी भाजपा के अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा (NDA) और विपक्ष ने अपने-अपने राष्ट्रपति उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। मंगलवार की दोपहर कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी समेत अन्य विपक्षी दलों ने यशवंत सिन्हा को विपक्ष का साझा उम्मीदवार घोषित किया। वहीं NDA के तरफ से द्रौपदी मुर्मू का नाम आगे किया गया।

पिछले राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने ‘दलित राष्ट्रपति’ का संदेश दिया था। इस बार अगर मुर्मू को जीत मिलती है तो वो देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। जाहिर है इसका पूरा क्रेडिट एनडीए और खासकर भाजपा के हिस्से जाएगा। भाजपा पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो वंचित समुदायों से ऐसे लोगों को ढूंढ कर लाती है, जो अपने समुदाय के हित में सरकार के खिलाफ बोल नहीं पाते।
द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा के बाद भी ऐसे ही आरोप लग रहे हैं। हालांकि भाजपा नेता अमित शाह ने अपने एक ट्वीट में मुर्मू के काम को बताया है। शाह ने लिखा है, ”द्रौपदी मुर्मू जी ने जनजातीय समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने व जनप्रतिनिधि के रूप में लम्बे समय तक जनसेवा करते हुए सार्वजनिक जीवन में अपनी विशिष्ठ पहचान बनाई है। इस गरिमामई पद की प्रत्याशी बनने पर उनको शुभकामनाएं देता हूँ व मुझे विश्वास है कि वो निश्चित रूप से जीतेंगी।”
मुर्मू ने आदिवासियों के लिए क्या किया है?

द्रौपदी मुर्मू के राजनीतिक करियर की शुरुआत तो 1997 में ही हो जाती है लेकिन बड़ा मौका सन् 2000 में मिला था। तब भाजपा ने उन्हें रायरंगपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया था। इस चुनाव में जीतकर मुर्मू नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री बनीं थी। पहले दो साल में वाणिज्य और परिवहन विभाग देखा, अगले दो साल तक पशुपालन और मत्स्य विभाग संभाला। यानी मंत्री के तौर पर आदिवासियों के लिए काम करने का अनुभव द्रौपदी मुर्मू के पास नहीं है।
मोदी सरकार आने के बाद साल 2015 में द्रौपदी मुर्मू को झारखंड का राज्यपाल बना दिया गया। मुर्मू से पहले झारखंड के राज्यपाल के रूप में किसी आदिवासी महिला ने पद नहीं संभाला था। राज्यपाल के रूप में मुर्मू को सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों से बराबर सम्मान और सौहार्द प्राप्त हुआ। यही वजह है कि कार्यकाल खत्म होने के बाद तक मुर्मू इस पद पर बनी रही थीं। राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होता है लेकिन मुर्मू छह साल, एक महीना और 18 दिन तक इस पद पर रही थीं।

राज्यपालों पर केंद्र की तरफ झुके रहने का आरोप लगता रहा है लेकिन मुर्मू अपने कार्यकाल के दौरान तटस्थ रहने के लिए जानी गईं। एक मौका ऐसा भी आया जब द्रौपदी मुर्मू ने भाजपा की रघुबर दास सरकार को नसीहत देते हुए, उनके विधेयक को बिना लाग-लपेट लौटा दिया। इस तरह का फैसले उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार के दौरान भी लिए। लौटा दिया था सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक

साल 2017 में भाजपा की रघुबर दास सरकार सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक लेकर आयी थी। इसके विधेयक के तहत सरकार आदिवासियों की जमीनों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में बदलाव करना चाहती थी। भारी विरोध और विपक्ष के वॉकआउट के बावजूद रघुबर सरकार ने सदन में विधेयक पास करवा लिया। विधेयक को कानून में बदलने के लिए राज्यपाल से होकर गुजरना होता है। सरकार द्वारा सदन में पास कराया गया विधेयक तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास पहुंचा। मुर्मू ने बिना दस्तखत विधेयक को सरकार को वापस कर दिया। साथ ही सरकार से सवाल किया कि इस विधेयक से आदिवासियों को क्या फायदा होगा। सरकार ने जवाब नहीं दिया और इस तरह वह विधेयक कभी कानून नहीं बन पाया। राज्यपाल के फैसले से आदिवासी समुदाय बहुत खुश हुआ था और मुर्मू का धन्यवाद किया था। मीडिया से बात करते हुए मुर्मू ने बताया था कि ”विधेयक के खिलाफ करीब 200 आपत्तियां प्राप्त हुई थीं, ऐसे में दस्तखत करने का सवाल नहीं उठता।” बताया जाता है कि इस मामले को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास ने मुर्मू से मुलाकात भी की थी लेकिन उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला।

 

द्रोपति मुर्मू महिला सशक्तिकरण के पर्याय के साथ जनजातीय समाज का सशक्त चेहरा हैं: राकेश राणा

देहरादून, भाजपा जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश राणा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का धन्यवाद करते हुए बताया कि जिस प्रकार से पिछले 8 सालों से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप मे आदिवासी समाज के समग्र विकास की चिंता करते हुए अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं से जनजाति समाज को मजबूत करने के लिए समय-समय पर कदम उठाए उससे जनजातीय समाज देश की मुख्यधारा में आज प्रवेश कर चुका है। पिछले वर्ष जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा जयंती पर 15 नवंबर को हर वर्ष जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया यह अपने आप में यह दिखाता है कि जनजाति समाज से जुड़े महापुरुषों के कार्यों को देश के प्रत्येक व्यक्ति से अवगत कराना और वह किस प्रकार से सभी के लिए प्रेरणा स्रोत बने उसके लिए प्रधानमंत्री ने इन 8 वर्षों में निरंतर वह सब कार्य किए हैं।

राकेश राणा ने बताया कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आंतरिक मजबूती की खूबसूरत और अद्भुत शैली को प्रदर्शित करता हैं। उन्होंने बताया कि पार्षद के रूप में राजनीतिक कॅरिअर शुरू करने वाली द्रौपदी का बतौर अनुसूचित जनजाति वर्ग (एसटी) से देश का पहला महिला राष्ट्रपति बनना तय है। राकेश राणा ने बताया कि ओडिशा के बेहद पिछड़े और संथाल बिरादरी से जुड़ी 64 वर्षीय द्रौपदी के जीवन का सफर हमेशा संघर्षों से भरा रहा है।

उन्होंने बताया कि आर्थिक अभाव होने पर भी उन्होंने शिक्षा को महत्व देते हुए स्नातक की शिक्षा प्राप्त करी। उन्होंने उड़ीसा सरकार में भी अपनी सेवाएं दी। उनका राजनीतिक सफर भी बहुत सफल रहा जिसमें कि उन्होंने सभी वर्गों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। राजनीति के लिए भाजपा को चुना और इसी पार्टी की हो कर रह गई। साल 1997 में पार्षद के रूप में उनके राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत हुई।

राकेश राणा ने बताया कि साल 2000 में पहली बार विधायक और फिर भाजपा-बीजेडी सरकार में दो बार मंत्री बनने का मौका मिला। उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर साल 2015 में उन्हें झारखंड का पहला महिला राज्यपाल बनाया गया। वह पहली उड़िया महिला है जिन्हें भारत के किसी राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

राकेश राणा ने बताया कि द्रोपति मुर्मू का जीवन उनके जीवटता को दर्शाता है। वह जवानी में ही विधवा होने के अलावा दो बेटों की मौत से भी वह नहीं टूटीं। इस दौरान अपनी इकलौती बेटी इतिश्री सहित पूरे परिवार को हौसला देती रहीं। राकेश राणा ने बताया यह महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ आदिवासी समाज के उत्थान के लिए उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि जिस दिन वह राष्ट्रपति के पद पर विराजमान होगी वह जनजातीय समाज के लिए गौरव का क्षण होगा और भारत एक नए इतिहास को लिखेगा।

 

पर्यटन मंत्री से मिले भाजपा नेता कौशतुभा नंद जोशी, चित्रलेखा धाम का शीघ्र होगा कायाकल्प : जोशी

देहरादून, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने नैनीताल जनपद स्थित पौराणिक स्थल चित्रशिला धाम को मानसखंड कॉरीडोर में सम्मिलित करने पर सहमति दे दी है | धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस पावन स्थल के जीर्णोद्धार के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पार्टी के प्रदेश कार्यालय सचिव कौस्तुभानन्द जोशी द्धारा किए अनुरोध को स्वीकार करते हुए महाराज ने विभागीय सचिव को त्वरित कार्यवाही के आदेश दे दिये हैं |
भाजपा नेता कौस्तुभानन्द जोशी ने पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज को पत्र के माध्यम से अवगत कराते हुए बताया कि गार्गी तट स्थित चित्रशिला धाम मार्कन्डे ऋषि व गर्ग ऋषि की तपस्थली है, जिसका वर्णन स्कन्द पुराण में भी किया गया है | पौराणिक तथ्यों के आधार पर स्वयं भगवान विश्वकर्मा द्धारा निर्मित इस धाम पर सदियों से मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान का मेला आयोजित होता आ रहा है | उन्होने अफसोस जताते हुए कहा कि यह स्थान आज मात्र शमशान घाट बनकर रह गया है | लिहाजा मेरे द्धारा स्थानीय लोगों मांग के अनुशार इस पावन क्षेत्र के सौंदर्यीकरण एवं स्नान घाट, धर्मशाला, शौचालय आदि जनसुविधाकारी निर्माण के लिए इसे मानसखण्ड कॉरीडोर में सम्मिलित करने का अनुरोध किया गया है |
श्री जोशी ने ख़ुशी जाहीर करते हुए बताया कि पर्यटन मंत्री श्री महाराज ने इस पवित्र स्थल के महत्व व स्थानीय जनता की मांग को स्वीकार करते हुए तत्काल पर्यटन सचिव से इस विषय पर कार्यवाही के निर्देश दिये हैं |

उन्होने उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा कि शीघ्र ही वह समय आएगा जब चित्रशिला धाम अपने पौराणिक महात्म्य को पुनः प्राप्त करते हुए देश विदेश के तीर्थाटन मानचित्र पर स्थापित होगा |

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