देहरादून(एल मोहन लखेड़ा), दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज संस्थान के सभागार में दून घाटी की नहर प्रणाली पर एक सार्थक कार्यक्रम किया गया। दून घाटी की लुप्त होती कई ऐतिहासिक नहरों पर विजय भट्ट और इंद्रेश नौटियाल द्वारा एक सचित्र वार्ता का प्रस्तुतिकरण किया गया। जिसमें भारत ज्ञान विज्ञान समिति का सहयोग रहा। इस कार्यक्रम में आज दून घाटी की पुरानी व ऐतिहासिक नहरों के योगदान को याद करते हुए उन पर व्यापक चर्चा हुई और लोगों ने इस पर अपने सवाल-जबाब किये।
इस वार्ता में विजय भट्ट ने बताया कि पुराने सालों में दून घाटी में जहां साल के घने जंगल, बहती बारहमासी जलधाराएँ, उनसे निकलती नहरें यहां की आबो-हवा को जहां ख़ुशनुमा बनाती थीं वहीं यहां की विस्तृत कृषि भूमि को भी उपजाऊ भूमि में तब्दील करती थी। साल 1815 में जब यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन आया और अंग्रेज़ अधिकारी यहाँ आये। ब्रिटिश अधिकारियों ने यहाँ बहने वाली प्राचीन राजपुर नहर को देखा। कहा जाता है कि इस नहर का निर्माण रानी कर्णावती ने करवाया था । इस नहर को देखने के बाद उन्होंने इसके रखरखाव का ज़िम्मा अपने ऊपर ले लिया जिसका देखभाल उस समय दरबार श्री गुरु राम राय साहब करता था । कृषि भूमि को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने भूमि अनुदान दिए और सिंचित क्षेत्र में बढ़ोतरी करने के लिए नहरों का निर्माण भी किया। ब्रिटिश शासन काल में, बीजापुर नहर, कटापत्थर,रायपुर वहर, जाखन नहर सहित पाँच नहरों का निर्माण करवाया। नहरों के निर्माण के लिए कैप्टन काटली के योगदान पर भी चर्चा हुई । नहरों ने दून घाटी की भूमि के विशाल क्षेत्रफल को सिंचित क्षेत्र में तब्दील कर दिया ।
भट्ट ने इस महत्वपूर्ण सन्दर्भ को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस वजह से दून घाटी की ज़मीन उपजाऊ हुई, किसानों को लाभ हुआ और शासन की कर के रूप में कमाई बढ़ी। चाय, लीची के बाग लगे, बासमती की खेती शुरू हुई जिसके चलते चाय, लीची, चावल, चूना यहाँ की पहचान बन गये। बासमती की ख़ुशबू और लीची के स्वाद ने देहरादून को विश्व पटल पर ला खड़ा कर दिया।यहाँ की जलवायु भी लोगों की पसंदीदा बन गई। जिसके चलते जो यहाँ आया वह यहीं का होकर रह गया । धीरे-धीरे आबादी इस क़दर बढ़ी कि वह यहाँ की कृषि भूमि को कम करने लगी। राज्य बनने के बाद तो आबादी का दबाव तेज़ी से बढ़ा ।बाग बगीचे, खेती बाड़ी ख़त्म सी होने लगी और नहरें लुप्त प्रायः हो गईं।
इंद्रेश नौटियाल ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज विकास के पर इन नहरों को दफ़्न कर ंसड़कों का निर्माण करवाया दिया गया । उन्होनें कहा कि आज दून की इस विरासत को बचाना और संरक्षण देना हमारे समय की बड़ी चुनौती है। वार्ता के दौरान नहरों के ख़त्म होने व दून घाटी के बढ़ते तापमान के बीच के अन्तरसंबंधों पर भी चर्चा की गई।
कार्यक्रम के आरम्भ में सामाजिक विचारक बिजू नेगी ने दून की नहरों पर आधार वक्तव्य दिया। किया। इस अवसर पर, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी, पर्यावरण विद डॉ. रवि चोपड़ा, अजय शर्मा, मेघा विल्सन, इरा चौहान,त्रिलोचन भट्ट, हर्षमणि भट्ट,जनकवि अतुल शर्मा, चन्दन सिंह बिष्ट, सुंदर सिंह बिष्ट, दीपा कौशलम, डॉ. चौनियाल, विवेक तिवारी,सुधीर सिंह बिष्ट,जगदीश सिंह महर, शैलेन्द्र नौटियाल, विनोद सकलानी, हिमांशु आहूजा सहित शहर के अनेक लेखक ,पत्रकार, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, सहित दून पुस्तकालय के युवा पाठक उपस्थित रहे।
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