Tuesday, April 23, 2024
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मनुष्यों की जैविक घड़ी में हो रही गड़बड़ी

डी० पी० एस० फेरूपुर में  इन्सा व्याख्यान का आयोजन  ।

रात में देर में सोने से हो रहे अनेक रोग  ।

हरिद्वार (कुलभूषण) । डी०पी० एस० फेरूपुर में इन्डियन नेशनल साइन्स एकेडमी, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित लेक्चर सीरीज़ के अन्तर्गत व्याख्यान  का आयोजन किया गया, इस व्याख्यान सीरीज द्वारा छात्र-छात्राओं  में विज्ञान के प्रति अभिरुचि  के द्वारा पैदा करना है ताकि देश को श्रेष्ठ वैज्ञानिक मिल सके। एकेडमी के फैलो व दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यवहार व पक्षी विज्ञानी प्रो० विनोद कुमार ने अपने लेक्चर में बताया कि कौवे के मस्तिष्क में ऐसे केन्द्र हैं जिससे वह अपने को पहिचानता है।  बच्चों को जन्तु जगत की अनेक प्रजातियों के व्यवहार का अध्ययन करना बहुत रुचिकर होगा और इससे बच्चों की विज्ञान के प्रति रुझान पैदा होगा।

उन्होंने अपने लेक्चर में उल्लेख किया कि विश्व को वैज्ञानिकों ने विद्युत बल्ब , ट्यूब लाइट प्रदान किया, जिससे पूरा विश्व जगमगाता है किन्तु इस लाइट के आविष्कार ने मनुष्य को देर रात तक , कम्प्यूटर, मोबाइल व टी०वी० देखते का शौक की पैदा कर दिया जिससे मनुष्यो में  अनेक बिमारिया होने लगी, क्योंकि दिन व रात के साथ सोने -जागने का प्राकृतिक क्रम  टूट गया।

प्रकृति में सभी पशु-पक्षी रात होते ही सोने लगते हैं और प्रातःकाल सूर्योदय के साथ उठते हैं।  इस तरह सेरेटोनिन व मैलाटोनिन हार्मोन, जो जागने  व सोने के कारकहै, रात-दिन के लय के साथ ही स्रावित होते हैं। उन्होने कहा कि शिक्षा निति में परिवर्तन होता चाहिये और छोटे बच्चों को भरपूर नींद लेती उनका स्कूल का समय 9 बजे बाद चाहिये। किन्तु स्कूल ये 7 बजे शुरू होते है उसके   कारण और बच्चो व माता -पिता देर  रात तक  जागने से नीद पूरी नही होती।  जिससे बच्चों में चिड़चिड़ापन, डायबिटीज, डिप्रेशन व पढ़ाई के प्रति अरुचि पैदा होती है, वयस्कों में देर रात जगने से चिड़चिड़ापन, यारेटीज, हायपरटेन्शन, अवसाद, क्रोध, दिल व सांस की बीमारी उत्पन्न होने लगती है।

उन्होंने कहा कि ब्लड प्रेशर सुबह, शाम व रात में  बदलता रहता है।  अत: दवाई शुरू करने से पहले रात में बी ०पी० का औसत लेकर बी ०पी० में घटे  या  बढ़े  होने का निर्धारण किया जाना चाहिए। प्रो विनोद कुमार बताया कि बच्चों के लिये पूरी प्रकृति प्रयोगशाला है जहाँ नित नये अनुभव लिये जा सकते हैं व प्रयोग किये जा सकते है, उदाहरण के लिये कुछ समय पूर्व ही ज्ञात हुआ कि गाय-भैंस – कुत्ता, बन्दर इत्यादि रंग नहीं पहचानते है केवल सफेद व काला रंग ही पहचानते है। चीटिंया  केमिकल द्वारा संवाद करती है व मधुमक्खी खास प्रकार के डास से फूल तक पहुंचती हैं।

कार्यक्रम के अन्त में हरिद्वार एजुकेशन एंड रिसर्च डेवलपमेंट  सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र अग्रवाल ते धन्यवाद ज्ञापित किया।  इस अवसर पर प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी प्रो दिनेश भट्ट, हरिद्वार एजुकेशन सोसाइटी के सचिव व समाज सेवी श्री अशोक त्रिपाठी, डी०पी०एस मैनेजमेन्ट बोर्ड के सदस्य श्री महेश त्रिपाठी, मुख्यअध्यापिका श्रीमती शिवानी भास्कर, शिक्षक-गण व छात्र-छात्राए  उपस्थित रहे।  छात्र-छात्राओं ने बड़े उत्साह व लगन के साथ कार्यक्रम का आनन्द लिया।

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