Sunday, November 24, 2024
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‘स्पर्श गंगा’ अभियान का एक दशक पूरा, देश में विचार बन गया यह अनोखा अभियान

रंग ला रही है उत्तराखंड के नौनिहालों की मुहिम
एनएसएस छात्रों ने 2009 में शुरू किया था कार्य
तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक की रही अहम भूमिका’

देहरादूनः गंगा भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। गंगा स्वयं में महातीर्थ है। पापनाशिनी, पुण्यदायिनी गंगा धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, अपितु हमारे कृषि उत्पादन और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी सहायक है। अनेक लोगों को रोजी-रोटी देने वाली इस महानदी की निर्मलता के लिए नमामि गंगे और स्पर्श गंगा जैसे अभियान कारगर साबित हो रहे हैं। एक दशक पहले आरंभ हुए स्पर्श गंगा अभियान के सकारात्मक परिणामों के कारण इसकी सराहना की जाने लगी है। उत्तराखंड के नौनिहालों ने यह अभियान आरंभ किया था।
गंगा के विषय में कहा जाता है कि उसे राजा भगीरथ स्वर्ग से धरती पर लाए थे। इसके नाम जाह्नवी, देवनदी, विष्णुपदी, सुरधुनि, सुरनदी, सुरसरि, सुरापगा, देवापगा, त्रिपथगा, त्रिपथगामिनी, नदीश्वरी आदि हैं। उत्तराखंड के गोमुख से निकलने से लेकर समुद्र (बंगाल की खाड़ी) तक 2,510 किलोमीटर की यात्रा करने वाली गंगा की सहायक नदियां घाघरा, यमुना, रामगंगा आदि हैं।

अनेक शहरों के पास से बहने के कारण गंगा में वहां को कचरा इत्यादि डाला जाता है। सीवेज में भी नदी में जा रहा है। अनेक फैक्टरियों की गंदगी भी गंगा में मिल रही है। इससे नदी में प्रदूषण बढ़ने लगा है। पिछले कुछ वर्षों में स्थिति बदतर होने लगी थी।
उत्तराखंड को गंगा का मायका कहा जाता है, इसलिए यहां से इसे प्रदूषणमुक्त करने की चिंता की गयी। 2009 में ’स्पर्श गंगा’ अभियान का आरंभ कर गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की पहल की गयी। हेमवती नंदन बहुुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) प्रकोष्ठ ने इसका आरंभ किया था। उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने ऋषिकेश में 17 दिसंबर, 2009 को इस अभियान का उद्घाटन किया था। डाॅ. निशंक ने इस अभियान को आंदोलन का रूप देकर नई दिशा दी।

उन्होंने पर्यावरण प्रेमियों, चिंतकों, बुद्धिजीवियों, धर्मगुरुओं और आम नागरिकों के समन्वय से इस अभियान को निरंतर प्रोत्साहित किया और लोगों को इसमें भागीदारी करने की प्रेरणा दी। इसका परिणाम यह हुआ कि यह मुहिम स्कूल, काॅलेजों और विश्वविद्यालयों तक ही सीमित न रहकर आम जनता तक पहुंच गया और लोग इसमें बढ़-चढ़कर भागीदारी करने लगे। यह अभियान एनएसएस में पाठ्क्रम का हिस्सा भी है। एक दशक की इस निर्मल गंगा यात्रा से लोगों में गंगा के प्रति पर्याप्त जागरूकता आयी है। यह अभियान उत्तराखंड तक ही सीमित न होकर इसकी गतिविधियां देश के अन्य भागों में भी निरंतर संचालित हो रही हैं। भारत की भाग्यरेखा और विश्वधरोहर गंगा को बचाने की इस मुहिम के सुखद परिणाम आने से अनेक पर्यावरण प्रेमी भी खुश हैं। यह अभियान अब एक विचार का रूप धारण कर चुका है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी आरुषि निशंक भी अपने पिताजी के पद्चिह्नों पर चलते हुए इस अभियान में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभा रही हैं। 

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक इस अभियान के दस वर्षों की यात्रा पर संतुष्ट हैं। स्पर्श गंगा परिवार, इस अभियान से जुड़े लोगों, गंगा की निर्मलता में लगातार योगदान देते आ रहे लोगों, देश के नागरिकों और विश्वभर में फैले गंगाभक्तों को स्पर्श गंगा दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने कहा कि मां गंगा की निर्मलता में योगदान देना देश के हर नागरिक का कर्तव्य है। गंगा भारत और भारतीयता का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा कि गंगा को हमें उसके प्राचीन स्वरूप में लाने के लिए निरंतर ऐसे ही कार्य करना होगा। डाॅ. निशंक ने केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे नमामि गंगा अभियान को भी गंगा को निर्मल करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम बताया।
इस अभियान में शिद्दत से जुड़ी डाॅ. निशंक की पुत्री आरुषि निशंक का का कहना है कि हम लोग अनवरत इस कार्य को संपादित करते रहेंगे। मांग गंगा को निर्मल बनाने की मुहिम में जुड़ना हमारे लिए सौभाग्य की बात है।

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