नयी दिल्ली , । देश के पूर्वी राज्यों में अन्य भागों की तुलना में इस मानसून सत्र में वर्षा कम होने से धान, खरीफ की दलहनी और तिलहनी फसलों की रोपाई बुआई का रकबा पिछले साल के मुकाबले कम चल रहा है। यह जानकारी बैंक ऑफ बड़ौदा के आर्थिक अनुसंधान विभाग की एक ताजा रपट में दी गयी है। शनिवार को जारी अर्थशास्त्री जाह्नवी प्रभाकर द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 20 अगस्त तक दलहनी फसलों की बुवाई का रकबा 1.26 करोडृ हेक्टेयर था जो पिछले साल इसी अवधि की तुलना में 5.3 प्रतिशत कम है। रिपोर्ट के अनुसार अरहर का रकबा 7.2 प्रतिशत, उड़द (5.1 प्रतिशत) और मूंग का रकबा (4.6 प्रतिशत) कम चल रहा है।
कपास का रकबा 1.23 करोड़ हेक्टेयर के साथ पिछले साल की तुलना में छह प्रतिशत ऊपर था जबकि मेस्ता और जूट की बुवाई सात लाख हेक्टेयर के एक साल पहले के सतर पर थी।
रिपोर्ट में धान और मोटे अनाजों की बुवाई के 12 अगस्त तक के आंकड़े ही दिए गए हैं। इनके अनुसार इन फसलों का इस साल का रकबा क्रमश 12.4 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत कम था।
गत 12 अगस्त तक तिलहनों की बुवाई पिछले साल से (1.3 प्रतिशत) अधिक थी और गन्ने की बुवाई 55 लाख हेक्टेयर के पिछले वर्ष के स्तर पर थी।
भारतीय मौसम विभाग ने चालू मानूसन सत्र के उत्तरार्ध में भी वर्षा पूर्वार्ध की तरह सामान्य रूप से जारी रहेगी। पर अब तक की रिपोर्ट से दिखता है कि उत्तरार्ध में भी वर्षा अनिश्चित है और इसके वितरण में विस्तृत क्षेत्रीय विषमताएं दिख रही हैं।’
रिपोर्ट के अनुसार 19 अगस्त तक दीर्ध कालिक औसत (एलपीए ) से आठ प्रतिशत अधिक वर्षा हुई थी लेकिन पूर्वी क्षेत्र में वर्षा अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम हो रही है। इसका प्रभाव इन क्षेत्रों में खरीफ की बुवाई पर पड़ा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल की तुलना में इस वर्ष इस अवधि में 36 अनुमंडलों में से सात में वर्षा की कमी है। वर्षा की कमी वाले ये अनुमंडल आठ राज्यों (उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार सहित अन्य राज्यों)में फैले हैं।
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