स्वतन्त्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप की दान पर खड़ी जिस अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ने उन्हे हिन्दू होने के नाते वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे | उन्ही जाट राजा का जीवन सर्व धर्म सदभाव की अद्भुत मिसाल रहा जिसकी एक बानगी मिलती है 45 साल पहले अपने देहरादून के पादरी मित्र के निधन पर लिखे खत में |
दरअसल यह बात है 1976 की जब फादर जॉन फास्टर देहरादून के चर्च में पादरी थे । उनकी मुलाकात देहरादून में ही राजा महेंद्र प्रताप सिंह से हुई थी । फादर फास्टर की मौत की सूचना पर राजा महेंद्र प्रताप के हाथों से लिखा गया खत आज भी सुरक्षित है । राजा महेंद्र प्रताप का उर्दू में लिखा यह खत उनके विचारो और भावनाओं को प्रदर्शित करता है । उन्होंने अपने मित्र की पत्नी को संबोधित करते हुए इस पत्र में लिखा कि “अजीज बेगम, फॉस्टर साहिबा। दुआ, निहायत अफसोस हुआ कि मेरे अजीज दोस्त फॉस्टर साहब इस दुनिया में नहीं रहे। खालिक उनकी रूह को राहत बख्शे। बहरकैफ हमको यही समझाना चाहिए, जिसमें उसकी रजा है, उसी में हमारी खुशी है। – खैर ख्वाहा ए आलम”।
राजा साहब के बारे में प्रचलित है कि कोई उनसे नाम पूछे तो वह ‘पीटर पीर प्रताप सिंह’ कहलाना पसंद करते थे | वह हमेशा विश्व भाईचारा, आपसी प्रेम और सद्भाव का संदेश लोगों को दिया करते थे। जब भी वह पादरी जॉन फोरेस्टर के साथ होते थे और कोई शख्स उनका नाम पूछता था तो वह उसे अपना नाम ‘पीटर पीर प्रताप सिंह’ बताते थे, जिसमें हिन्दू मुस्लिम और ईसाई सभी नामों का समावेश था |
कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2019 में जब राज्य स्तरीय इस विश्वविद्यालय की घोषणा की थी, तब से ही यह चर्चा में है। पीएम मोदी ने उनके नाम पर विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया | लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह कौन थे?
एक दिसंबर 1886 को जन्मे महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत के राजा थे। जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिनती अपने क्षेत्र के पढ़े-लिखे लोगों में होती थी। उनका विवाह जिंद रियासत की बलबीर कौर से हुआ था। उनकी बारात के लिए हाथरस से संगरूर के बीच दो विशेष ट्रेनें चलाई गई थीं।
पहली निर्वासित सरकार बनाई, भारतीय पासपोर्ट तक नहीं था
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी। इसके बावजूद उनके पास भारतीय पासपोर्ट नहीं था। उन्होंने अफगान सरकार के सहयोग से 1 दिसंबर 1915 को पहली निर्वासित हिंद सरकार का गठन किया था। आजादी का बिगुल बजाते हुए वह 31 साल आठ महीने तक विदेश में रहे। हिंदुस्तान को आजाद कराने का यह देश के बाहर पहला प्रयास था। अंग्रेज सरकार से पासपोर्ट मिलने की बात संभव ही नहीं थी। उनके पास अफगानिस्तान सरकार का पासपोर्ट था।
राजा महेंद्र प्रताप की आत्मकथा ‘माय लाइफ स्टोरी’ को संपादित करने वाले डॉ. वीर सिंह के मुताबिक, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदुस्तान छोड़ने से पहले देहरादून के डीएम कार्यालय के जरिए पासपोर्ट बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन एक अखबार में जर्मनी के समर्थन में एक लेख लिखने के कारण पासपोर्ट बनाने में बाधा पैदा हुई थी। इसके बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने समुद्र मार्ग से ब्रिटेन पहुंचने की योजना बनाई। बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सोवियत संघ, जापान, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की जैसे देशों की यात्रा की। 1946 में वे शर्तों के तहत हिंदुस्तान वापस आ सके।
अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लड़ा था चुनाव
1957 के आम चुनाव में तो राजा महेंद्र प्रताप ने अटल बिहारी वाजपेयी को करारी शिकस्त दी थी। इस चुनाव में जीते निर्दलीय प्रत्याशी राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भारतीय जन संघ पार्टी के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत तक जब्त करा दी थी। नियमानुसार कुल वोटों का 1/6 वोट नहीं मिलने पर जमानत राशि जब्त हो जाती है। अटल बिहारी वाजपेयी को इस चुनाव में 1/6 से भी कम वोट मिले थे, जबकि राजा महेंद्र प्रताप को सर्वाधिक वोट मिले और वह विजयी हुए थे। इसके बाद राजा ने अलीगढ़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जनता का जबरदस्त विरोध सहना पड़ा था,
जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति में जर्मनी और जापान मित्र देश नहीं रहे थे, जबकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इन देशों से मदद मांगकर आजादी की लड़ाई शुरू की थी। ऐसे में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को शुरू से ही कांग्रेस में बहुत ज्यादा तरजीह नहीं मिली।
सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। इससे पहले ही राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने विश्व शांति के लिए ‘संसार संघ’ की परिकल्पना की थी। उन्होंने प्रेम धर्म और संसार संघ की परिकल्पना के जरिये भारतीय संस्कृति के प्राण तत्व वसुधैव कुटुम्बकम् को साकार करने का प्रयास किया था, राजा महेंद्र प्रताप अपने समय के बड़े क्रांतिकारी, महत्वाकांक्षा रहित राजनीतिज्ञ, महान त्यागी, महादानी, बेजोड़ शिक्षाविद एवं देशभक्त थे। उनको जो सम्मान मिलना चाहिए, वह नहीं मिला।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र थे। जब वे यहां पढ़ते थे, तब इस यूनिवर्सिटी को मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल कहा जाता था। महेंद्र प्रताप ने इस विश्वविद्यालय के विकास के लिए जमीन भी दी थी। उन्होंने 1929 में करीब तीन एकड़ की जमीन दो रुपए सालाना की लीज पर दे दी थी। यह जमीन मुख्य कैंपस से अलग शहर की ओर है जहां आज आधे हिस्से में सिटी स्कूल चल रहा है और आधा हिस्सा अभी खाली है। अलीगढ़ के पड़ोसी जिले मथुरा के वृंदावन में स्थित राजा महेंद्र प्रताप सिंह की समाधि अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने वृंदावन में अपनी जमीन पर प्रेम महाविद्यालय नाम से इंटर कॉलेज बनवाया था। यह महाविद्यालय स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है। इसके सामने यमुना किनारे स्थित उनकी समाधि है, जो अब बदहाल स्थिति में है। यहां के लोगों ने उनके समाधि स्थल को विश्व घाट के रूप में विकसित करने की मांग उठाई है।
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