मस्ताड़ी गांव में वर्ष 1991 में आए भूकंप के बाद भू-धंसाव शुरू हो गया था। भूकंप में गांव के लगभग सभी मकान ध्वस्त हो गए थे।
उत्तरकाशी, जनपद के मस्ताड़ी गांव के लोग पिछले 24 सालों से खौफ के साये में जी रहे हैं, लेकिन प्रशासन उनकी तकलीफों से आंखें फेर ली हैं। इस गांव को बचाने के लिए सुरक्षात्मक कार्यों की भूवैज्ञानिक की सलाह भी फाइलों में ढेर में दबी हुई है। घरों में नीचे से पानी निकल रहा है और दीवारों पर पड़ी दरारें लोगों को डरा रही हैं, लेकिन प्रशासन शायद किसी अनहोनी का इंतजार कर रहा है।
जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर मस्ताड़ी गांव में वर्ष 1991 में आए भूकंप के बाद भू-धंसाव शुरू हो गया था। भूकंप में गांव के लगभग सभी मकान ध्वस्त हो गए थे। बस गनीमत यह रही कि किसी की जान नहीं गई। वर्ष 1997 में प्रशासन ने गांव का भूगर्भीय सर्वेक्षण भी कराया था। भूवैज्ञानिक ने गांव में तत्काल सुरक्षात्मक कार्य का सुझाव दिया था। लेकिन 24 साल बाद भी प्रशासन की नींद नहीं टूटी है।
स्थिति यह है कि गांव धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। धंसाव के चलते रास्ते ध्वस्त हो रहे हैं, बिजली के पोल तिरछे हो चुके हैं और पेड़ भी धंस रहे हैं। इसी गांव में रहने वालीं बबीता देवी बताती हैं कि उनकी शादी तीन साल पहले हुई थी और वे तभी से घरों में नीचे से आ रहे पानी की समस्या को देख रही हैं।
उनके पूरे मकान में दरारें पड़ी हुई हैं। कई बार अधिकारी आते हैं और दरारें देख कर चले जाते हैं। ग्रामीण शंकर सेमवाल ने कहा कि उनके किचन से करीब दो साल से पानी निकल रहा है। कई बार गुहार लगाने के बावजूद कोई सुनने को तैयार नहीं है।
मस्ताड़ी गांव के लोगों का कहना है कि घरों के अंदर जमीन के नीचे से पानी के बहने की आवाज आती है। ऐसा महसूस होता है कि जमीन के अंदर बड़ा नाला बह रहा हो। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में जमीन के अंदर पानी बह रहा है। कई घरों में यह पानी निकल भी रहा है।
50 परिवारों के लिए तीन टैंट
बीते दिनों से लगातार हुई बारिश के चलते गांव में कई घरों में दरारें पड़ गई हैं और कई घरों के आंगन टूट गए हैं। गांव में भू-धंसाव से करीब 50 परिवार प्रभावित हैं। लेकिन प्रशासन ने मात्र तीन टैंट दिए हैं। ग्राम प्रधान सत्य नारायण सेमवाल ने बताया कि प्रशासन उनकी समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा है। गांव में किसी भी समय बड़ी दुर्घटना हो सकती है। बताया कि ग्रामीण किसी सुरक्षित जगह पर विस्थापित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अधिकारी उनकी फरियाद को अनसुना कर रहे हैं।
भूविज्ञानियों की रिपोर्ट :
मस्ताड़ी गांव में भूधसांव और और दरारें वर्षा काल में ही बनती हैं। इन दरारों का कारण भूमिगत जल तथा तेज ढलान भूमि का धंसाव है। प्राचीन काल में हुए भूस्खलन के जमे मलबे से बना है। अधिक बारिश होने पर जल इसी भूमि में समा जाता है। इसी भूजल का एक स्त्रोत गांव में मौजूद है। पानी के स्त्रोत से लेकर गांव के ऊपर की पहाड़ी तक की भूमि भूजल से अत्यधिक नम है। जिसके कारण जगह-जगह भूमि धंसाव से ग्रसित है |
प्रशासन ने वर्ष 1997 में मस्ताड़ी गांव का भूसर्वेक्षण कराया था। तब भूवैज्ञानिक डीपी शर्मा ने गांव में सुरक्षात्मक कार्यों की सलाह दी थी। उन्होंने प्रशासन को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि भू-धंसाव क्षेत्र में भूमि संरक्षण विभाग से सर्वेक्षण कराकर चैकडेम, सुुरक्षा दीवार का निर्माण व पौधरोपण किया जाए। मकानों के चारों ओर पक्की नालियों का निर्माण कर पानी की निकासी की व्यवस्था की जाए।
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