✒️राजेन्द्र सिंह नेगी एवं एल मोहन लखेड़ा
उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में सीएम योगी के भविष्य और भाजपा की रणनीति को लेकर मीडिया में अटकलों का बाज़ार गरम है | किसी को लगता है योगी मंत्रिमंडल का विस्तार है, तो कोई कहता है सरकार से ही अब योगी बाहर हैं, अब रही बात विपक्षी पार्टियों को तो उन्हें मुगालता है कि मोदी से योगी की तकरार है | फिलहाल विगत 15 दिन में इस खबर से जुड़ी हैडलाइन के पल पल बदलने से, आम जनता से लेकर राजनीति शास्त्र के जानकार भी जबरदस्त असमंजस में है, तो चलिये हम यहाँ राजनीति की अनबूझ सी बनती इस पहेली की इनसाइड स्टोरी को समझने का प्रयास करते हैं ……!
योगी के नाम पर संघ ने वीटो लगाकर समाप्त की सभी अटकलें
अमूमन सबके मन में सबसे अहम् सवाल यह है कि जब चंद दिन पहले पार्टी संघटन और संघ एकमत से योगी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर राजी हो गया था, तो अचानक दिल्ली में मुख्यमंत्री योगी की पीएम मोदी, पार्टी के चाणक्य अमित शाह और अध्यक्ष जे पी नड़ड़ा से लंबी लंबी मुलाकातों क्यूँ ..? अब इन मुलाकातों पर संशय होना तो तय था, क्योंकि सभी जानते हैं कि पार्टी में योगी को विधानसभा चुनावों में चेहरा बनाने को लेकर जबरदस्त मंथन हुआ | उसकी अहम् वजह जो मीडिया में बताई गयी, वो थी विधायकों, मंत्रियों और संघटन की नाराजगी | लेकिन सूत्रों के अनुसार इसकी असली वजह थी पार्टी शीर्ष नेतृत्व में एक बड़े तबके का योगी की कार्यशैली पर सवाल और उनके मन में सूबे को असंभव-आदर्श स्थिति में नहीं पहुंचाने का मलाल | इसी जाने-अनजाने असंतोष के वृक्ष पर प्रदेश के कुछ महत्वाकांक्षी पार्टी नेताओं ने अपनी अपनी नाराजगी की बेल चढ़ा दी थी | हालांकि यह सब नाराजगी धरातल पर इन चार सालों में कभी नज़र नहीं आई और अब भी सिर्फ और सिर्फ मीडिया हेडलाइन में ही छायी हुई है |
यूपी चुनाव प्रचार में योगी का अधिकाधिक प्रयोग कर मोदी ब्रांड के दांव पर लगने से बचने की रणनीति
इस सारे घटनाकर्मो के वावजूद आरएसएस की जून प्रथम सप्ताह में हुई दिल्ली मीटिंग में स्पष्ट कर दिया गया था कि योगी ही यूपी चुनावों में भाजपा का चेहरा होंगे | लेकिन जब संघ ने योगी के नाम पर अपना वीटो लगाया तो पार्टी के रणनीतिकारों की और से तर्क सामने आया कि लगातार कई विधानसभाओं चुनावों में मोदी के नाम के इस्तेमाल से मोदी ब्रांड को की छवि को नुकसान पहुंचता है, लिहाजा यदि योगी चेहरा होंगे तो बेहतर होगा कि इस चुनाव में मोदी का नाम पर निर्भरता बहुत कम कर दी जाये | जानकारों के अनुसार संघ ने इस चुनौती को भी स्वीकार कर तैयारी भी शुरू कर दी है, जिसके लिए संघ सह कार्यवाहक दत्तात्रेय होसबोले का मुख्यालय नागपुर से हटकर लखनऊ कर दिया गया, जो मोदी नाम की छाया से अलग कर होने वाले इस पहले चुनाव की रणनीति पर बारीकी से निगाह रखने वाले हैं |
राज्य विभाजन का ब्रह्मास्त्र चलाने की तैयारी
राजनीति विशेषज्ञों के अनुसार चूंकि 2024 में दिल्ली का रास्ता 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों से होकर ही जाता है, इसलिए पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने आश्चर्यजनक रूप में अपनी रणनीति में बदलाव किया है | सूत्रों के अनुसार भाजपा यूपी फतह के लिए सूबे के विभाजन का बड़ा दांव खेल सकती है और मुख्यमंत्री योगी की दिल्ली में हुई ताबड़तोड़ मीटिंगें इसका अहम् पड़ाव थी | इसी क्रम में योगी राष्ट्रपति से मिले और पूर्व में प्रदेश प्रभारी राधामोहन ने राज्यपाल से मुलाक़ात की, जिनका नए राज्य गठन में अहम रोल होता है | राजनैतिक पंडितों के अनुसार राज्य विभाजन के इस तीर से कई निशाने साधे जा सकते हैं | पहला पूर्वाञ्चल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और कई अलग नामों से होने वाली अलग राज्य बनाने की मांग पूरी होने का फायदा मिलेगा | दूसरा इस बड़े प्रदेश के विघटन से सपा-बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों की दिल्ली कब्जे की महत्वाकांक्षा भी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी | क्योंकि समय अनुकूल होने पर भी छोटे सूबों में इन्ही की पार्टी के कई क्षत्रपा मुख्यमंत्री बनकर अपनी अपनी पार्टी सुप्रीमों की बादशाहत को चुनौती देंगे | हालांकि ऐसा होने से योगी के बढ़ते राजनैतिक रसूख पर भी प्रभाव पड़ना तय और हो सकता है कि उन्हें पूर्वाञ्चल तक ही सीमित होना पड़े | इस बात का एहसास सीएम योगी को भी है, शायद यही वजह है कि दिल्ली में अमूमन चंद मिनटों की होने वाली ये मीटिंग घंटों में तब्दील हुई | हालांकि जानकारों के अनुसार राज्य विभाजन की यह घोषणा चुनाव से पहले की जाएगी या चुनावी घोषणा के रूप में सामने लायी जाये, इसको लेकर अंतिम निर्णय होना बाकी है |
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