नई दिल्ली। आपसी वैमनस्य और व्यक्तिगत लाभ हानि की छवि में घिरती जा रही राजनीति और राजनेताओं का मंगलवार को एक नया रूप दिखा। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को विदाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत भावुक हो गए। सख्त छवि के प्रधानमंत्री बार-बार खुद को संभालते दिखे। जवाब में आजाद की आंखों में मोदी के लिए सम्मान दिखा। जाहिर तौर पर यह आपसी जुड़ाव था, लेकिन पिछले छह सात वर्षो में जिस तरह की तीखी राजनीति हो रही है उसमें इस क्षण को भी केवल भावुकता के बजाय राजनीति के चश्मे से देखा जाने लगा है। इसे इस बात से और बल मिला जब खुद प्रधानमंत्री ने आजाद के अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि वे उन्हें निवृत्त नहीं होने देंगे।
प्रधानमंत्री मोदी और आजाद के भाषणों के छोटे छोटे पल बहुत कुछ कहते दिखे। जम्मू-कश्मीर गए गुजरात के पर्यटकों की आतंकियों द्वारा हत्या और तत्कालीन मुख्यमंत्री आजाद की ओर से प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने आजाद को मित्र करार दिया। उन्होंने कहा कि बतौर मुख्यमंत्री कई अवसरों पर दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई। खुद मोदी ने यह भी बताया कि आजाद से उनका परिचय मुख्यमंत्री बनने के पहले से रहा है। हालांकि बतौर मुख्यमंत्री आजाद का कार्यकाल महज ढाई तीन साल का था लेकिन इस काल में दोनों के बीच मित्रता बहुत गहरी हुई। उसका एक कारण संभवत: आतंकवाद भी हो सकता है क्योंकि जम्मू कश्मीर इससे लगातार जूझ रहा था और गुजरात में अक्षरधाम पर आतंकी हमले के बाद मोदी बहुत आहत थे।
मंगलवार की घटना ने दोस्ती पर जमी धूल की चादर को साफ कर दिया। मोदी ने साफ कर दिया कि कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य के रूप में वह रिटायर हो रहे हैं लेकिन मोदी के लिए उनकी अहमियत बरकरार है। वे उन्हें निवृत्त नहीं होने देंगे।
प्रधानमंत्री के दिलो दिमाग में क्या है इसका पता तो बाद में चलेगा लेकिन यह अटकल तेज हो गई कि आजाद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कश्मीर के हालात सुधारने में सरकार की मदद कर सकते हैं। ध्यान रहे कि वर्तमान कांग्रेस के संभवत: सबसे पुराने व शीर्ष नेताओं में शामिल आजाद समेत दो दर्जन वरिष्ठ नेताओं पिछले कुछ वर्षो को न सिर्फ हाशिए पर खड़ा किया गया है कि बल्कि कुछ अवसरों पर तिरस्कार का भी सामना करना पड़ा है। कांग्रेस के अंदर पुराने और युवा नेताओं की तकरार तेज है। इस कारण अधिकतर वरिष्ठ नेता आहत हैं।
आजाद के विदाई भाषण में इसका थोड़ा पुट भी दिखा जब उन्होंने कांग्रेस में आने के लिए इंदिरा गांधी के साथ साथ संजय गांधी का भी नाम लिया जो पार्टी में लगभग प्रतिबंधित हैं। फिलहाल बहुत कुछ भविष्य में छिपा है। लेकिन इससे इनकार करना मुश्किल है कि आजाद समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के अंदर कसमसाहट है। आजाद के प्रति मोदी का व्यक्तिगत अनुराग एक कैटेलिस्ट (उत्प्रेरक) का काम कर सकता है।
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