देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज दिन में उभरते युवा कवियों की रचनाओं पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस काव्य गोष्ठी में मंच नामक संस्था के तत्वाधान में कविता पाठ किया। मंच के संयोजक कुलदीप सिंह धरवाल तथा मीर भाई की ओर से सभी कलाकारों को अपनी प्रस्तुति देने क़े लिये आमंत्रित किया गया। प्रारम्भ में केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी और कार्यक्रम सलाहकार श्री निकोलस ने सभी युवा कविगणों का अभिनन्दन किया। संचालन विवेक सेमल्टी और मीर भाई ने किया।
मंच संस्था का उद्देश्य इस तरह के कार्यक्रम क़े जरिये उत्तराखंड तथा यहाँ आये हुए सभी उभरते हुए नव युवा कवियों तथा कवित्रियों जिनका मंच पर अपनी प्रस्तुति देना है।
आज के काव्य पाठ में शामिल रहे सृष्टि, मानसी, सविता कोटनाला, मानसी गैरोला, धर्मेंद्र तनुज पथिक, ऋषभ नौटियाल, अमन रतूड़ी, अभिशेख सती, प्रखर पंत, डॉक्टर संगीता जी, जय पंत डॉक्टर दयानन्द अरुण, पी के डबराल, सोमेश्वर पाण्डेय, हरीचंद निमेष, विदित सकलानी, मीर (फाउंडर मंच) तथा विवेक सेमल्टी जी द्वारा अपनी बेहतरीन प्रस्तुति दी गयी। सभागार के श्रोताओं ने ताली बजाकर कवियों का खूब उत्सश वर्धन किया।
कार्यक्रम क़े दौरान सृष्टि द्वारा महिला उत्पीड़न पर -: चीखी चिल्लाई और हाथ पाँव चला रही थी, जब बालों से उसके कोई खींच रहा था, उसे लगा ये तो होता ही है, उसकी माँ ने भी तो ये सब सहा था…
मानसी क़े द्वारा -: जब बुझ जाए चराग घर का, होती उस शब की भोर नहीं, शिकष्त भी मंजूर है हमें, मगर सरहद क़े उस और नहीं..
धर्मेंद्र तनुज पथिक :- उलझा हुआ हूँ सुलझा दे मुझे, मेरे दर्द की कोई तो दवा दे मुझे…
मानसी गैरोला जो पौड़ी से आये थे उनके द्वारा दी गयी प्रस्तुति -: कुछ पाक नाम लिखती हूँ, गीता कुरआन लिखती हूँ, एलाने शान लिखती हूँ, अब्दुल कलाम लिखती हूँ ने पूरे सभागार को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
इस दौरान हरि चंद निमेष,बिजू नेगी, मेघा, दयानन्द अरोड़ा, मधन बिष्ट, अवतार सिंह सहित केंद्र के युवा पाठक उपस्थित रहे।
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