देहरादून, ‘ईगास’ उत्तराखंड का एक लोकपर्व है. यह दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है. कुमाऊं में इसे बूढ़ी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं और रात में स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, इसके बाद, भैला जलाकर घुमाया जाता है और ढोल-नगाड़ों के साथ लोक नृत्य किया जाता है l
देहरादून में ईगास पर्व का आयोजन हो रहा है, भले ईगास पर्व को गुजरे कई दिन बीत गए हैं लेकिन इस त्योहार का जश्न अब भी हो रहा है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रेंजर्स ग्राउंड में माउंटेन फेस्ट इगास का आगाज हुआ जिसमें गढ़वाल, कुमाऊं और जौनसार की संस्कृति की झलक छटा बिखरती नजर आयी l इस दो दिवसीय 22-23 नवम्बर को आयोजित मेले में पहाड़ का स्वाद और पहाड़ की साज का लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया, क्योंकि इस फेस्ट में पहाड़ी व्यंजन परोसे गये वहीं पहाड़ी लोक कलाकारों ने पर्वतीय सांस्कृतिक छटाओं का जमकर प्रदर्शन किया, लोकगीतों से सजी इस दो दिवसीय आयोजन में गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी, कमला देवी, पंडवास बैंड, किशन महिपाल जैसे लोक कलाकारों की प्रस्तुति भी देर रात तक लोगों को झूमने में मजबूर कर दिया, वहीं ईगास के इस कार्यक्रम को देखने आयी देहरादून की रहने वाली अनुपमा ने कहा कि वे रेंजर्स ग्राउंड के आसपास ही नौकरी करती हैं, पोस्ट देखा तो घूमने के लिए चली आईं. उन्होंने यहां मंडुए के फास्ट फूड का स्वाद लिया, वे कहती हैं कि पहाड़ के स्वाद को यहां नए तरीके से परोसा जा रहा है, वहीं पूजा रावत का कहना है कि परिवार के साथ घूमने के लिए यह एक अच्छी जगह है l यहां पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद लेने के साथ-साथ पहाड़ी उत्पादों की खरीदारी भी की जा सकती है, उन्होंने कहा कि यहां उत्तराखंड के बड़े लोक कलाकारों की परफॉर्मेंस लाइव देखने के लिए मिलेगी. ये बहुत ही बढ़िया बात है, इस तरह के आयोजन होते रहने चाहिए l
आपको बताते चलें कि ये आयोजन रेड एफएम, ओएनजीसी, जीटीएम और देवभूमि यूनिवर्सिटी ने मिलकर किया है l प्रोग्राम की रिप्रेजेंटेटिव रजत शक्ति ने बताया कि पहाड़ में वैसे तो दिवाली के 11 दिन बाद बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है लेकिन अल्मोड़ा हादसे के चलते इस कार्यक्रम का आयोजन थोड़ी देरी से किया जा रहा है क्योंकि उस वक्त हमें जश्न मनाना उचित नहीं लगा l
रजत शक्ति ने कहा कि इस कार्यक्रम में पहाड़ की संस्कृति की छाप देखने के लिए मिलेगी क्योंकि यहां जो स्टॉल लगाए गए हैं, उनके माध्यम से उत्तराखंड के लोकल उद्यमियों को प्लेटफॉर्म दिया गया है ताकि वे अपने उत्पादों को लोगों तक पहुंच सकें, वहीं दूसरी और लोग भी अपनी पहाड़ की संस्कृति से जुड़ पायें, यही हमारा उद्देश्य है l
मुख्य अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में पहुंचे गणेश जोशी ने कहा कि इगास का पर्व पुराने वक्त से ही बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, हालांकि लोग अपने इस लोकपर्व से दूर होते जा रहे थे लेकिन पूर्व सांसद अनिल बलूनी ने लोगों को इस पर्व से जोड़ा, उन्होंने दिल्ली में भी इस पर्व का जश्न मनाया जिसमें पीएम मोदी भी शामिल हुए थे l
ईगास से जुड़ी खास बातेंः
-ईगास का मुख्य आकर्षण भैलो खेलना है l
-भैलो, चीड़ की लकड़ी से बनाई जाने वाली एक मशाल होती है l
-जहां चीड़ के जंगल नहीं होते, वहां लोग देवदार, भीमल, या हींसर की लकड़ी से भी भैलो बनाते हैं l
-भैलो बनाने के लिए, इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को रस्सी या जंगली बेलों से बांधा जाता है l
-भैलो जलाने के बाद, लोक गीतों और नृत्य का आनंद लिया जाता है l
-ईगास पर, “भैलो रे भैलो,” “काखड़ी को रैलू,” और “उज्यालू आलो अंधेरो भगलू” जैसे पारंपरिक गीत
गाए जाते हैं l
-ईगास पर, ‘चांछड़ी’ और ‘झुमेलो’ जैसे नृत्य किए जाते हैं l
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