Saturday, December 21, 2024
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सत्येंद्र साहनी आत्महत्या कांड में मुख्य अभियुक्त अजय गुप्ता व अनिल गुप्ता को किसका है संरक्षण : धस्माना

बिल्डर्स व खनन माफियाओं का राजधानी में बोलबाला : सूर्यकांत धस्माना

देहरादून, शुक्रवार को राजधानी में देहरादून के जाने माने प्रतिष्ठित बिल्डर सदरार सत्येंद्र सिंह साहनी की आत्महत्या के पीछे उनको आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले अजय गुप्ता व अनिल गुप्ता को किन लोगों का संरक्षण प्राप्त है इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए क्यूंकि ये दोनों लोग दक्षिण अफ्रीका में वांछित थे व इनकी गतिविधियां हमेशा संदिग्ध रही हैं और ये अन्य बड़े अपराधों में शामिल हो सकते हैं यह बात आज उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने अपने कार्यालय में पत्रकारों से वार्ता करते हुए कही।
धस्माना ने कहा कि गुप्ता बंधुओं की पहुंच बड़ी राजनैतिक हस्तियों से है और एक जमाने में उत्तराखंड राज्य सरकार में उनको मंत्री का दर्जा व जेड सुरक्षा भी मुहैय्या करवाई गई थी । धस्माना ने कहा कि देहरादून में गुप्ता बंधुओं के घर इनकम टैक्स के छापे व दक्षिण अफ्रीका में उनके खिलाफ कार्यवाही के बावजूद वे भारत व उत्तराखंड तथा उत्तरप्रदेश में लगातार सक्रिय रह कर जिस प्रकार की गतिविधियां कर रहे हैं यह बिना राजनैतिक व प्रशासनिक संरक्षण के संभव नहीं है। श्री धस्माना ने कहा की सत्येंद्र साहनी आत्महत्या पूरे राज्य के लिए एक चेतावनी है क्यूंकि इस वक्त देहरादून व उत्तराखंड में देश व दुनिया के अनेक अपराध जगत के लोग सफेदपोश बन कर बिल्डर व खनन का काम कर रहे हैं ।
धस्माना ने कहा कि हाल ही में देहरादून में खनन का बड़ा काम बाहर के लोगों की कंपनी को पीछे के दरवाजे से दे दिया गया और इसी रकार जमीनों व बिल्डर का काम भी स्थानीय लोगों के साथ मिल कर अनेक कुख्यात लोग कर रहे हैं इसका एक उदाहरण सत्येंद्र साहनी प्रकरण में सामने आया है। श्री धस्माना ने कहा कि राज्य की सरकार को व पुलिस तथा खुफिया तंत्र को सतर्क रह कर ऐसे लोगों के खिलाफ अपराध घटित होने से पहले करवाही करनी चाहिए अन्यथा किसी भी वक्त कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है।

 

क्रांतिकारी रासबिहारी बोस के योगदान को किया गया याद, फिल्म ‘अनबीटन हीरो रास बिहारी बोस‘ भी दिखाई गयी

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से महान क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस को उनके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दिये गये योगदान को याद किया गया। संस्थान के सभागार में पत्रकार राजू गुसाईं, सामाजिक कार्यकर्ता व शोधार्थी मुकेश सेमवाल तथा सामाजिक इतिहासकार डाॅ. योगेश धस्माना ने उनके स्वतंत्रता संग्राम में दिये गये क्रांतिकारी योगदान व देहरादून से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों पर प्रमाणिक दस्तावेजों व स्लाइड के माध्यम से प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारम्भ में दूरदर्शन के डीडी भारती द्वारा रास बिहारी बोस पर 22 मिनट की फिल्म ‘अनबीटन हीरो रास बिहारी बोस‘ दिखाई गयी।
उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में चार दशक समय की लंबी भूमिका देहरादून और जापान में रही, जहां उन्होंने आईएनए की स्थापना की थी। वह 1906 से 1913 तक देहरादून में रहे। उन्होंने एफआरआई में हेड क्लर्क के रूप में काम किया और पूरे उत्तर भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का बीजारोपण किया और कई क्रांतिकारियों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षित किया। 23 दिसंबर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के काफिले पर बमबारी की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। ब्रिटिश सरकार ने बमबारी के लिए चार क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटका दिया था, हालाँकि, रासबिहारी बोस, जिन्हें मास्टरमाइंड के रूप में नामित किया गया था पर वे इस जाल से बच गए। उन्हें बंगाल क्रांतिकारी आंदोलन और उत्तर भारत के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान प्रसिद्ध गदर विद्रोह को कुचलने के बाद, रासबिहारी बोस 1915 में जापान चले गए और अपना अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क विकसित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने आईएनए का गठन किया और बाद में इसे नेताजी सुभाष बोस को सौंप दिया।
पत्रकार राजू गुसाईं ने कहा कि प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक अध्यक्ष रास बिहारी बोस देहरादून में रहे और यहां वन अनुसंधान संस्थान में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को चुपचाप संचालित किया और इसके लिए वे लाहौर और पंजाब जैसे दूरदराज के स्थानों पर चले जाते थे। रास बिहारी बोस के देहरादून से सम्बन्ध और उनकी गतिविधियों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उन्होंने बातचीत में बोस के दून में बिताए समय, वन अनुसंधान संस्थान में उनके दस्तावेज और अन्य जुड़ी घटनाओं पर बुनियादी जानकारी श्रोताओं की दी। जापान में रास बिहारी बोस के परिवार के सदस्यों से जुड़ने के प्रयासों पर भी उन्होंने प्रकाश डाला।

सामाजिक कार्यकर्ता और शोधकर्ता मुकेश सेमवाल ने उनके दिल्ली षड्यंत्र मामले का विस्तृत विवरण दिया जिसने रास बिहारी बोस को भारत में नायक बना दिया। उन्होंने अपनी बात दिल्ली-लाहौर साजिश मामले पर केन्द्रित की। उन्होंने कहा कि 23 दिसंबर 1912 को जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी बंगाल से दिल्ली स्थानांतरित कर दी थी, तब रासबिहारी बोस और बसंत बिश्वास द्वारा वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया था। यह ब्रितानी पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था कि क्रांतिकारियों का पता लगाए। अंततः कुछ अंदरूनी लोगों की मदद से अंग्रेजों ने पकड़ लिया और क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया और चार लोगों को फाँसी पर लटका दिया गया। इस मामले में व गदर आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने निष्कर्ष निकाला कि इस विद्रोह के प्रमुख नेता रासबिहारी बोस थे।

डाॅ. योगेश धस्माना ने कहा कि रासबिहारी बोस राष्ट्रीय आंदोलन के ऐसे क्रांतिकारी राष्ट्रवादी नेता थे,जिन्होंने देहरादून को अपनी कर्मभूमि बनाते हुए पहले इंडियन इंडिपेंस लीग की स्थापना की फिर जापान में आजाद हिंद फौज का गठन कर देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
उन्होंने कहा कि देश के राष्ट्रीय आंदोलन में रास बिहारी के योगदान को पर्याप्त स्थान नही मिल सका।एफआरआई घोसी गली और दर्शन लाल चौक सहित टैगोर विला में बम बनाने की प्रयोगशाला से जुड़ी उनकी स्मृतियों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए।उन्होंने कहा कि रास बिहारी बोस ने देश की आजादी के लिए आर्य समाज,अरविंदो और खुदीराम बोस के सिद्धांतो को लेकर अंग्रेजो की साम्राज्यवादी नीतियों और विघटनकारी ताकतों के विरुद्ध देश में युवाओं को संगठित किया। इस काम में उन्हें दून घाटी में रह रहे राजा महेंद्र प्रताप का भी सक्रिय सहयोग मिला था।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने अतिथि वक्ताओं व सभागार में उपस्थित लोगों का अभिनंदन किया।इस अवसर पर सभागार में इतिहास के रुचिवान लोग, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी और पुस्तकालय के युवा पाठक सदस्य उपस्थित रहे।

 

यूसर्क द्वारा विद्यार्थियों के लिए दो दिवसीय “वॉटर साइंस एंड टेक्नोलॉजी” कार्यशाला का समापन

उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (यूसर्क) द्वारा स्कूल के विद्यार्थियों के लिए आयोजित की जा रही दो दिवसीय “वॉटर साइंस एंड टेक्नोलॉजी” कार्यशाला का शनिवार को समापन हो गया ।
कार्यक्रम में यूसर्क की निदेशक प्रो (डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा निरंतर विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैँ जिससे विद्यार्थियों के कौशल विकास के साथ साथ अच्छे करियर की दिशा भी प्राप्त हो रही है साथ ही प्रयोगात्मक रूप से सीखने से उनमें वैज्ञानिक अभिरुचि भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि जल विज्ञान के महत्त्व को देखते हुए इस प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन विद्यार्थियों के लिए किया गया है।

तकनीकी सत्र में यूसर्क वैज्ञानिक डॉ. भवतोष शर्मा ने “ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट एवं रिचार्ज में आईसोटोप टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग” विषय पर व्याख्यान दिया तथा बताया कि प्रदूषण के स्रोत का पता भी इस तकनीकी की सहायता से किया जा सकता है। पानी में हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के अलावा कार्बन, नाइट्रोजन, क्लोरीन के विभिन्न आइसोटोप की उपस्थिति एवं उनके भिन्न भिन्न अनुपातों के अध्ययन जल विज्ञान के क्षेत्र बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।

कार्यशाला के दूसरे तकनीकी सत्र में डॉ. भवतोष शर्मा ने विभिन्न शिक्षण संस्थानों से आए 25 प्रतिभागी छात्र छात्राओं द्वारा अपने अपने शिक्षण संस्थान एवं घरों से लाए गए जल नमूनों का विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से परीक्षण करना सिखाया। जल की गुणवत्ता के विभिन्न मानकों नाइट्रेट, फ्लोराइड, कैलसियम, हार्डनेस, क्लोराइड, रेसीडुअल फ्री क्लोरीन, फीकल कोलिफॉर्म, आयरन आदि का परिक्षण करना बताया एवं मानव स्वास्थ्य पर इनके प्रभाव बताये तथा वॉटर ट्रीटमेंट की विधियाँ समझाई।
उपस्थित प्रतिभागियों ने अपने अपने प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. भवतोष शर्मा ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन वैज्ञानिक डॉ. ओम प्रकाश नौटियाल ने किया।

कार्यक्रम में वैज्ञानिक डॉ मंजू सुन्दरियाल, इं. ओम जोशी, राज दीप जंग, राजीव बहुगुणा, सुषमा कोहली, रुचिका रावत, डॉ. प्रियंका त्यागी तथा फूल चंद्र नारी शिल्प गर्ल्स इंटर कॉलेज, एमकेपी इंटर कॉलेज, द ओएसिस शिक्षण संस्थान देहरादून, डी ए वी सैंटेनरी पब्लिक स्कूल हरिद्वार के 25 प्रतिभागियों सहित कार्यक्रम में कुल 40 लोग उपस्थित थे।

 

जी डी गोयंका विद्यालय में ग्रीष्मकालीन शिविर का शुभारंभ

देहरादून, जीडी गोयंका विद्यालय में ग्रीष्मकालीन शिविर का शुभारंभ हो गया। 8 जून तक चलने वाले इस शिविर में बच्चों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए उनकी रुचि के अनुसार के विभिन्न गतिविधियां का आयोजन किया गया है। इसमें भाग लेने वाले सभी बच्चों के लिए आकर्षक संगीत, नृत्य, स्केटिंग, लॉन टेनिस, ताइक्वांडो, क्रिकेट, तैराकी, पोटरी, बास्केटबाल एवं फुटबॉल आदि विविध प्रकार की गतिविधियों को सिखाया जाना निश्चित किया गया है।
कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना एवं आकाश में गुब्बारे छोड़कर किया गया। प्रधानाचार्य अनंत वी.डी. थपलियाल ने बच्चों को संबोधित करते हुए गीष्मकालीन शिविर किस प्रकार बच्चों में आत्मविश्वास को भरने एवं स्वतंत्रता विचारों को विकसित करने में मददगार साबित होगा इस बात को उजागर किया।

 

सिखों के पवित्र तीर्थ श्री हेमकुण्ट साहिब जी के कपाट खुले, हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु

चमोली (हेमकुंट), सिखों का विश्व प्रसिद्ध गुरूद्वारा श्री हेमकुण्ट साहिब जी के कपाट शनिवार को विधिवत् अरदास के साथ श्रृद्धालुओं के लिये खोल दिए गए हैं। इसके साथ ही आज इस शुभ अवसर पर लगभग दो हजार संगतों की उपस्थिति में श्री हेमकुण्ट साहिब जी की पावन यात्रा का भव्य रूप से शुभारंभ हो गया है।मऋषिकेश गुरूद्वारा परिसर से पहले जत्थे के प्रस्थान करने के साथ ही हो गया था। 22 मई को उत्तराखण्ड राज्य के राज्यपाल ने धार्मिक अनुयायियों के साथ मिलकर जत्थे को रवाना किया था जो कि 23 मई को गुरूद्वारा गोबिंद घाट में ठहरकर 24 मई को पैदल चलते हुए गोबिंद धाम (घांघरिया) पहुंचा था ।
रात्रि विश्राम करके आज जत्थे ने हेमकुण्ट साहिब के लिए प्रस्थान किया। प्रातःकाल से ही हजारों की संख्या में देश विदेश से श्रृद्धालु हेमकुण्ट साहिब पहुंचने लगे थे। इस विशेष अवसर पर पंज प्यारों की अगुवाई में जत्थे ने ‘‘जो बोले सो निहाल’’ के जयकारों व ंबैंड बाजों की धुनों के साथ कीर्तन करते हुए यात्रा के अंतिम पड़ाव श्री हेमकुण्ट साहिब पहुंचकर गुरू महाराज के श्री चरणों में अपनी हाजिरी भरी। गुरूद्वारा प्रबंधक सरदार गुरनाम सिंह व मुख्य ग्रंथी भाई मिलाप सिंह द्वारा संगतों के साथ मिलकर प्रातः 9ः30 बजे पवित्र गुरू ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूपों को सुखासन स्थल से दरबार साहिब में लाया गया तथा पावन प्रकाश करते हुए अरदास की और गुरू महाराज का पहला हुकमनामा जारी किया गया। मुख्य ग्रंथी द्वारा प्रातः 10.15 बजे सुखमनी साहिब जी का पाठ किया गया। इसके पश्चात प्रातः 11.30 बजे से रागी जत्थों द्वारा गुरबाणी कीर्तन का गुणगान किया गया जिससे कि दरबार साहिब में उपस्थित संगतें प्रसन्नचित्त होकर निहाल हो गईं। साथ ही निशान साहिब जी के चोले की सेवा भी चलती रही। समस्त गुरूद्वारा परिसर व दरबार हॉल को फूलों व अन्य साजों सामान से सजाया गया।
भारतीय सेना के 418 इंडीपेंडेंट कोर के कर्नल विरेन्द्र ओला जी एवं ब्रिगेडियर एम. एस. ढिल्लों जी भी हेमकुण्ट साहिब में उपस्थित रहे। यात्रा हेतु उनका व साथियों का विशेष योगदान रहा। प्रशासन के साथ गुरूघर सेवादारों ने भी यात्रा की आरंभता के लिए बहुत सहयोग किया। कपाट खुलने के पावन अवसर पर गुरूद्वारा ट्रस्ट के अध्यक्ष सरदार नरेन्द्रजीत सिंह बिन्द्रा जी व गुरूद्वारा गोबिन्द घाट के प्रबंधक सरदार सेवा सिंह जी भी मौजूद रहे। बिन्द्रा जी ने अपने संबोधन में कहा कि हेमकुण्ट साहिब में बर्फ अधिक है इसलिए बुजुर्ग, छोटे बच्चे व बीमार व्यक्ति कुछ समय के लिए यात्रा पर आने से परहेज करें तथा सरकार द्वारा भी दिशा निर्देश जारी किए गए हैं कि यू-ट्यूबर व ब्लॉगर धार्मिक स्थलों पर वीडियोग्राफी या रील्स न बनाएं जिससे कि श्रृद्धालुओं को परेशानी न हो।
गुरूद्वारा ट्रस्ट का कहना है कि श्रृद्धालु निःसंकोच यात्रा पर आएं और गुरू महाराज का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा जो श्रृद्धालु यात्रा पर आने में असमर्थ हैं वे हेमकुण्ट साहिब जी से सीधा प्रसारण पी.टी.सी. सिमरन पर प्रतिदिन प्रातः10 बजे से दोपहर 1 बजे तक देख सकते हैं। साथ ही ट्रस्ट आशा करता है कि आने वाले सभी श्रद्धालु पवित्र भावना व आपसी सौहार्द के साथ प्रशासन एवं गुरूघर सेवादारों को सहयोग करते हुए यात्रा को निर्विघ्न सफल बनाएंगे।

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