मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि महामारी के बाद भारत में डिजिटल ऋण में तेजी से वृद्धि देखी गई है और साथ ही, इसने व्यापार आचरण के कई मुद्दों को भी उठाया है जिस पर केंद्रीय बैंक कड़ी नजर रख रहा है।
उन्होंने एक मीडिया कार्यक्रम में कहा, विभिन्न नियामक दुविधाएँ उभरी हैं जिनमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना पड़ा है। एक तरफ फिनटेक के नवोन्मेषी बिजनेस मॉडल से होने वाले ग्राहक लाभ और दूसरी तरफ उभरते व्यावसायिक आचरण तथा नियामक चिंताओं के बीच संतुलन जरूरी था।
विनियामक उद्देश्य नवोन्वेषी डिजिटल व्यवसाय मॉडल के लाभकारी प्रभावों को बरकरार रखते हुए नकारात्मक कारकों पर लगाम लगाना था।
उन्होंने कहा कि इन दिशानिर्देशों के जारी होने के बाद निजी इक्विटी पर डिजिटल ऋण के आँकड़े भारतीय डिजिटल ऋण कहानी पर निवेशकों के विश्वास को दर्शाते है। यह विश्वास है कि आगे चलकर, आरबीआई की नियामक निगरानी के तहत डिजिटल ऋण फिनटेक क्षेत्र को और अधिक बढ़ावा देगा।
आरबीआई की पर्यवेक्षी संरचना की चपलता, लचीलेपन और विशेषज्ञता को बढ़ाने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन भी लागू किए गए हैं।
बैंक की पर्यवेक्षी प्रणालियों को भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण के साथ वित्तीय क्षेत्र की गतिशीलता के अनुरूप ढालने के लिए पुन: व्यवस्थित किया गया है ताकि संभावित संकटों को पहले ही भांपा जा सके।
ऑन-साइट पर्यवेक्षी संलग्नता की आवृत्ति और तीव्रता अब संस्थानों के आकार के साथ-साथ जोखिम पर भी आधारित है।
दास ने कहा कि ये निरीक्षण भी अधिक गहन और निरंतर हो गए हैं। आरबीआई ने वरिष्ठ प्रबंधन के साथ भी अपना जुड़ाव मजबूत किया है।
उन्होंने कहा, हमने संभावित और उभरते जोखिमों को पकडऩे के लिए पर्यवेक्षी मैक्रो और माइक्रो डेटा एनालिटिक्स को काफी मजबूत किया है। हम बैंकों और अन्य ऋण देने के व्यवसाय मॉडल में गहराई से उतरते हैं।
दास ने कहा कि आरबीआई एक अन्य क्षेत्र साइबर सुरक्षा जोखिम पर भी करीबी नजर बनाए हुए है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, यद्यपि बैंकिंग में आईटी को अपनाने के स्पष्ट लाभ हैं, लेकिन संबंधित जोखिमों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है। हमारी विनियमित और पर्यवेक्षित संस्थाओं के विविधीकरण और जटिलता स्तरों को ध्यान में रखते हुए, हमने विभिन्न संस्थाओं के लिए अलग-अलग साइबर सुरक्षा बेसलाइन नियंत्रण ढांचे जारी किए हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एनपीए में भारी कमी आने के साथ एक उल्लेखनीय बदलाव आया है, जो अब आने वाले वर्षों में भारत की विकास गाथा का समर्थन करने के लिए अच्छी स्थिति में है।
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